पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३३०

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को दूल्हा चांद का टुकड़ा मिले तो मैं सुखी होऊ सो मैंने (गाती ठुमरी) कहीं से खोजकर उसे अपने घर में रक्खा है पर यहां | मेरे तन अति बाढ़ी बिरहपीर अब नहिं सहि जाई हो । तो वही दशा है जाके हित चोरी करो वही बनावै चोर । अब कोउ उपाय मोहि नहि लखाय, दुख कासों कछु वि.- तो फिर वे छिप के क्यों आए हैं। कहि न जाय, मन ही विरह की अगिनि बरै घूआं न ही.मा.-आपकी प्रतिज्ञा तो संसार में सब पर | दिखाई हो ।। दईमारी लाज बैरिन सी आज, कहो विदित ही है सो प्रत्यक्ष बाद करने में जो कोई हारे तो आवत मेरे कौन काज, पिय बिन मेरो जियरा तड़पै कछु प्रेम भंग होय और परस्पर संकोच लगै इस हेतु छिप के | नाहिं बसाई हो ।। आए हैं। (राग बिहाग) वि.- उनका रूप कैसा है। चावत मो मैं काम कमान । ही. मा.- उनका रूप वर्णन के बाहर है। बेधत है जिय मारि गारि के तानि श्रवन लगि बान ।। (गाती है, राग -बिहाग)। पिया बिना निसिदिन डरपावत मोहि अकेली जान । कहै को चन्द बदन की शोभा । तुमरे बिन को धीर धरायै पीतम चतुर सुजान ।।१।। जाको देखत नगर नारि को सहजहि तें मन लोभा ।। ही.मा.- (हंस कर) वाह वाह यह अनुराग हम मनु चन्दा आकास छोड़ि के भूमि लखन को आयो। नहीं जानती थीं। कैंधौं काम बाम के कारन अपुनो रूप छिपायो ।। (गाती है-राग-कलिंगड़ा) भौंह कमान कटाक्ष बान से अलक भ्रमर घुघुरारे । अहो तुम सोच करो मति प्यारी । देखत ही बेधत है मन मृग नहिं बचि सकत विचारे ।। तुम्हरो प्रीतम तुमहिं मिलें है करि अनेक उपचारी ।। वि.- तो मला उन को एक बेर किसी उपाय से | अति कुम्हिलाने कमल बदन को प्रफुल्लित करि हो वारी देख भी सकती है? चदहि जो चाहे तो लाऊं यह तो बात कहारी ।। ही. मा.- वाह वाह यह तुम ने अच्छी कही । वि.-तो मैं आप छत पर उसकी आशा पहिले राजा रानी से कहे वह देख सुन के जांच लें तो देखूगी । जवनिका गिरती है। पीछे तुम देखना। वि.-नहीं. ऐसा न होने पावे, पहिले में देख लू ।। प्रथम अंक समाप्त हुता ।। तब और कोई देखे। ही.मा.-मैं कैसे पहिले तुम्हें दिखला दूं, यह राजा का घर है चारों ओर चौकी पहरा रहता है यहां मक्खी तो आही नहीं सकती भला वह कैसे आ सकते हैं | जो कोई जान जायगा तो क्या होगा? प्रथम गाक वि.- सो में कुछ नहीं जानती जैसे चाहो वैसे एक बेर मुझ को उन का दर्शन करा दो । तू आप चतुर है कोई न कोई उपाय सोच लेना और जो तू मेरा मनोरथ । (विथा बेठी है और चपला पंखा हाकती है और पूरा करेगी तो मैं भी तेरा मनोरथ पूरा कर दूंगी। ही. मा.- यह तो मैं भी समझती हूं पर में सुलोचना- सोचती हूं कि किस रीति से उसे ले आऊ, हा एक | बात पूर्वी पर जो बताओ। उपाय यह तो है कि वह इस वृक्ष के नीचे ठहरे और तुम अपनी अटारी पर से देख लो। कौन सी बात है जो तुम लोगों से छिपी है । वि.- हाँ ठीक है, यह उपाय बहुत अच्छा है । और कुछ नहीं मुझे केवल इतना पर कब आज या कल? पूछना है कि कई दिन से तुम्हारी ऐसी दशा क्यों हो रही ही.मा.-कल उन को लाऊंगी (हंसकर) एक, है, सर्वदा अनमनी सी बनी रहती हो, और खान पान बात में कह देती हूं कि उन को एक बेर देख के फिर सब छूट गया है, और दिन दिन शरीर गिरा पड़ता है, भूल न जाना। | रात दिन मुह सूखा रहता है, इसका कारण क्या है ? वि.-मूल जाऊंगी वि.- (मुह नीचा कर लाज से चुप रह जाती है) दूसरा अंक स्थान -विद्या का महल सुलोचना पाना का डब्बा लिए खड़ी है) । 1- (बीड़ा देकर) राजकुमारी, एक वि.- क्यों सखी क्यों नहीं पूछती, मेरी ऐसी सुलोचना- बाय! भारतेन्दु समग्र २०८