पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३३६

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.- होगा क्या 'चोर का धन बठमार लूटै' । | नखरे आते हैं । पुरुष में तो यह दशा है जो स्त्री होता तो वि. भगवान ऐसा न हो कि मुझे उससे विचार न जाने क्या करता, चल तू बड़ा छलिया है - हाय करना हो। हाय मुझे कैसा धोखा दिया. भला तू ने यह विद्या कहां सुं. -जी महाराज विचार करने की आज्ञा देंगे तो सीखी (कुछ ठहर कर) हां तब – तब क्या हुआ ? करना ही होगा। सुं. -- तब क्या हुआ सो तो तुम जानती होगी पर वि.- हां यह तो ठीक है - हाय हाय मैं बड़े | राजा ने कुछ निश्चय नहीं किया । द्विविधे में पड़ रही हूँ कि क्या करूंगी। वि. यह बड़ा आनन्द हुआ मानों आज मेरे सुं.- तुम्हें किस बात का सोच है, पुराना कपड़ा छाती पर से एक बोझा उतर गया, मुझे आज रात को उतारा नया पहिना, सोच तो मुझे है । नींद सुख से आवैगी कल मैंने मालिन से हंसी में यह वि.- (उदास होकर) चलो सब समय हंसी नहीं बात उड़ा तो दी थी पर भीतर मेरा जीही जानता था और अच्छी होती "पुराना उतारा नया पहिना'" यह तो | मैंने आप से भी कई बेर कहना चाहा पर सोचती थी कि पुरुषों का काम है स्त्री बिचारी तो एक बेर जिस की हुई | कैसे कहूं । जन्म भर उसी की हो रहती है। (सुलोचना आती है। •-(हंस कर) ऐसा मत कहो क्योंकि स्त्रियों सुलो.- राजकुमारी, रात बहुत गई जो बहुत के चरित्र अत्यन्त विलक्षण होते हैं। जागोगी तो कल दिन को जी आलस में रहेगा। वि.- मैं तो नये पुरुषों का मुख भी नहीं देखने वि.- नहीं सखी अब जाती हूं (सुलोचना जाती पाती मैं नई पुरानी क्या जानूं आपही नित्य नई स्त्री को | है और विद्या सुंदर मी उठकर चलते हैं। पर एक बेर देखते हैं आप जानें । मुझे भी उस रूप का दर्शन करा देना क्योंकि मुझे भी सुं.- तो क्या हुआ इतने दिन तक राजसुख भोग | तो जोगिन बनना है । किया अब जोगिन का सुख भोग करना । सुं. प्यारी, उस प्रेम के जोगी की जोगिन होना वि.- यह बात कैसे हो सकती है कि जिस के तुम्हीं को शोभा देता है । वियोग में एक पलक प्रलय सा जान पड़ता है उस को वि.- नाथ, तुम जो कही सो सब उचित है । छोड़ कर मैं जोगिन हूंगी- हा! मैं संन्यासिनी (जवनिका पतन) हूंगी -हे भगवान तू ने कर्म में क्या लिखा है ! दूसरा अंक समाप्त हुआ । (अत्यन्त शोच करती है और लम्बी सांस लेती है)। सुं.- (हंसकर) और जो वह संन्यासी हमी तीसरा अंक वि. यह बात कैसी? सुं.-नहीं मैंने एक बात कही जो वह संन्यासी हमी होयं । (विमला और चपला आती हैं) वि.- तो फिर तुम्हारे लिये तो मैं जोगिन आप विमला- वाहरे वाहरे कैसी दौड़ी चली आती है ही हो रही हूं इस में क्या कहना - जो यह बात सच्च | देख कर भी बहाली दिये जाती है । होय तो शीघ्र ही कहो तुम्हें मेरी सौगन्द है चपला- (देखकर) नहीं बहिन नहीं मैंने तुम्हें मैंने उस का समाचार सुना है तब से मुझे रात को नींद | नहीं देखा क्षमा करना । नहीं आती। विम.-मला मैने क्षमा तो किया पर अपनी सुं.- (हंसकर) जो तुम्हें दु:ख होता है तो मैं | कुशल कहो ? कहता हूं पर किसी से कहना मत, अपनी सखियों च.- कुशल में क्या कहूं उस दिन के तो से भी न कहना । देखो मैं राजसमा देखने को संन्यासी | समाचार तूने सुने ही होंगे। बन के गया था और मैंने विचार कि यहां विचार की विम.-कौन समाचार राजकन्या के-बड़े चरचा निकालें देखें क्या फल होता है। घर की बात? वि.- हाय हाय अब मेरे प्राण में प्राण च.- अरे चुप चुप भाई धीरे धीरे -जो कोई। आए - अरे तू बड़ा बहुरूपिया है और तुझे बड़े बड़े | सुन ले तो कहै कि यह सब ऐसे ही हनवास की बाते stik भारतेन्दु समग्र २९४ होय । प्रथम गाक -जब से