पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३४

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  • ROS

When I go Sir, molakat ko, these chaprasis Trouble me much. How can I give daily Inam, ever they ask Me I say such Some time they give me gardaniya And tell bahar niklo tum; Dena na lena muft ke aye yaha hain Bane Darban Ki dum. हास्य व्यंग भारतेन्दु के खून में था । वे बनारसी की मौजमस्ती के प्रतीक थे । भरत ने हास्य रस को श्रृंगार की अनुकृति कहा है । अनुकृति यदि मनोरंजन में समर्थ है तो वह अवश्य ही हास्य का उत्पादन करेगी । विकृत आकार, वाणी वेष-भूषा आदि हास्य का कारण बनेगे । भारतेन्दु इन सब में माहिर थे। हास्य के व्यंजनात्मक पत्र पर जोर देने वाले पश्चिम के साहित्य शास्त्री उनके पांच भेद मानते है। १-हयूमर (शुद्ध हास्य) २-विट (हाजिर जवाबी) ३-सेटायर (व्यंग्य) ४-आइरनी (वक्रोत्ति) ५फार्स (प्रहसन) । इनके अतिरिक्ति सरकास्टिक रिमार्क, फैटेसी और पैरोड़ी को भी लोग व्यंग्य की एक शैली के रुप में ही मानते हैं। हास्य भारतेन्दु की जीवन शैली थी विनोदी ऐसे कि राजा और रक किसी को नहीं छोड़ते थे। उनके व्यंग्य विनोद के अनेक किस्से आज तक असंग्रहीत है । वे कामदानी टोपी और बनारसी रंगीन कपड़े का अंगरखा पहनते थे । उनका राजसी पहनावा उनके मौजी व्यक्तित्व को रेखांकित करता था। वे काशी नरेश के परम आत्मीय थे। उन दिनों काशी नरेश और महाराज विजयानगरम में चलती थी । भारतेन्दु जी काशी नरेश के साथ महाराज विजयानगरम के यहां गये थे। भारतेन्दु की वेशभूषा पर व्यंग्य करते हुए महाराज विजयानगरम ने कहा, "आज तो बलि के बकरा की तरह बने हो बबुआ।" भारतेन्दु ने तुरन्त कहा, "तो चढ़ा तो न अपनी मैया पर ।" यह उक्ति अश्लीलता की परिधि का भले ही स्पर्श करती हो, पर इतनी जीवंत हाजिर जवाबी किसी बनारसी के ही मुख से निकल सकती है । शिवप्रसाद "सितारे हिन्द" और भारतेन्दु का सम्बंध जगजाहिर था. फिर भी उसमें खटास नहीं थी एक प्यारी मिठास वो वे विश्वास करते थे: "दुश्मनी शाख हो, खत्म न हो रिश्ता, दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए।" एक दिन उन्होंने "सितारे हिन्द" से उनका फोटो अपनी विनोद प्रियता के कारण यह लिखत हुए मांगा था: - "कमाल शोके मुलाकात उसने लिखा है, चलू मैं अये ही कासिद जवाब के बदले।" मजा यह कि राजा साहब ने भी चलु को काटकर "चाला" बना दिया और फ के रूप में यह खत लौटा दिया। काटकर चाला" बना दिया और फोटो के साथ जबान MORRoHAK बत्तीस