पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३५

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उन दिनों रामकटोरा मुहल्ला बनारस के बाहरी अलंग में आता था । भारतेन्दु की हर शाम वहीं रंगीन होती थी। पंचरत्नी की तरंग में वहां बैठे कुछ लोगों पर उन्होंने कविताएं सुनायी । एक वेश्या के मुख पर चेचक का दाग था जब उसने अपने पर कविता सुनाने को कहा तो उन्होंने झट से एक शोर' गढ़ दिया: सूखे आइना पै दिल जो जा जा के फिसलता है खुदाई दाग चेचक से जरा ठहराव मिलता है। हास्य व्यंग्य के क्षेत्र में पैरोडी के शायद वह जन्मदाता थे। उन्होंने उर्दू के नाटक इन्दर सभा के अधार पर बन्दर सभा लिखी थी । भाषा का तेवर भी "इन्दर सभा" वाला ही । शुतुरमुर्ग परी की जवानी: - आई हूँ मैं सभा में छोड़ के घर । लेना है मुझे इन आग में जर । दुनिया में है जो कुछ सव जर है। बिना जर के आदमी बन्दर है। बन्दर, जर हो तो इन्दर है। जर ही के लिए सब को हुनर है। अमीर खुसरों की शैली पर भारतेन्दु ने नये जमाने की मुकरी लिखी थी । वस्तुतः यह 'पैरोडी' साहित्य ही है । इस युग में पैटेसियां भी खूब लिखी गयी, क्योंकि सीधे-सीधे कहना अंग्रेजों का कोपभाजन बनाना था। इन अतिकल्पनाओं ने ऐसी किलेबनिया की जिनके भीतर से करारा प्रहार करते हुए भी सुरक्षित रहा जा सकता था । एक अद्भुत स्वप्न यमलोक की यात्रा स्वर्ग में केशवचन्द्र सेन और स्वामी दयानंद आदि ऐसी ही फैटेसिया है। अंधेरी नगरी और चौपट राजा से अच्छा और प्रभावशाली हिन्दी साहित्य में दसरा फार्स नहीं । भारतेन्दु युग की राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति पर चोट करते हुए भी इसने आज भी न तो अपनी प्रासंगिकता खोयी है और न इसका संदर्भ ही बासी पड़ा है। यह आज भी तरोताजा है। (१२) ऐसे थे भारतेन्दु, अपने जमाने के सबसे शानदार और जानवार रचनाकार । वे मात्र एक साहित्यकार ही नहीं थे, वरन एक ऐसा व्यक्तित्व था, जिसमें अपने युग की चेतना ने अंगड़ाई ली थी। जिसने युग को वाणी दी थी । जिसने लोक चेतना को समझा था । जो पुरातनता का विरोधी न होते हुए भी नवीनता की ओर बढ़ा था । उसके एक ओर गलितरुढ़ियों और अन्ध विश्वासों की ध्वस्त होती दीवार थी और दूसरी ओर नये भारत के सपने थे। उसके व्यक्तित्व की विसंगतियों में भी एक संगति थी । वह गुणियों का सेवक था । चतुरों का चाकर था । कषियों का मित्र था । सीधों के लिए सीधा था, बाकों के लिए महा बांका था । वह निहायत विनम्र होकर भी अभिमानियों से पैर पुजवाता था । वह चाह और परवाह से दूर था । वह प्रेम का दिवाना था । रसिकों का सरबस था और राधारानी का गुलाम था । वह परम वैष्णव था और दूसरों की पीर को अपनी पीर समझता था। भारतेन्द्र समग्र क्यों? भारतेन्दु ग्रंथावली तीन खण्ड़ों में, इसके पूर्व प्रकाशित है । यह सही है कि उसमें भारतेन्दु की बहुत सी रचनाएँ आ नहीं पायी है । कुछ बीनने-बटोरने में छूट गयी होंगी । कुछ मिली ही नहीं होगी। इस ग्रंथ में उन तीनों खण्ड़ों में संकलित रचनाएँ तो है ही, साथ ही भारतेन्दुकालीन पत्न SAore तैंतीस