पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३५५

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बैठे हैं। शैव-महाराज, वैष्णव तो नहीं खाते और शैवों तृतीय अंक को भी न खाना चाहिए परंतु अब के नष्ट बुद्धि शैव स्थान राजपथ खाते हैं। पुरो. महाराज, वैष्णवों का मत तो जैनमत की (पुरोहित गले में माला पहिने टोका दिए बोतल लिए उन्मत्त सा आता है। एक शाखा है और महाराज दयानंद स्वामी ने इन सबका पुरो.. खूब खण्डन किया है, पर वह तो देवी की मूर्ति भी | नित्य हो. अहा ! राजा धन्य है कि ऐसा धर्मानष्ठ है, •- (घूमकर) वह भगवान करै ऐसी पूजा तोड़ने को कहते हैं । यह नहीं हो सकता क्योंकि फिर आज तो मेरा घर मांस मदिरा से भर गया । अहा ! बलिदान किसके सामने होगा ? (नेपथ्य में) नारायण और आज की पूजा की कैसी शोभा थी. एक ओर ब्राह्मणों का वेद पढ़ना. दूसरी ओर बलिदानवालों का राजा--कोई साधू आता है । (धूशिरोमणि गंडकीदास का प्रवेश) कूद-कूदकर बकरा काटना 'वाचं ते शुधामि', तीसरी ओर बकरों का तड़पना और चिलाना, चौथी ओर मदिरा राजा--आहए गंडकीदास जी । के घड़ों की शोभा और बीच में होम का कुंड, उसमें पुरो. गंडकीदासजी हमारे बड़े मित्र हैं । यह मांस का चटचटाकर जलना और उसमें से चिहिन और वैष्णवों की तरह जंजाल में नहीं फंसे हैं। यह की सुगन्ध का निकलना, वैसा ही लोहू का चारों ओर आनंद से संसार का सुख भोग करते हैं। फैलना और मदिरा की छलक, तथा ब्राह्मणों का मद्य गंडकी--(धीरे से पुरोहित से) अजी. इस सभा पीकर पागल होना. चारों ओर घी और चरबी का में हमारी प्रतिष्ठा मत बिगाड़ो । वह तो एकांत की बात बहना, मानो इस मंत्र की पुकार सत्य होती थी। 'वृतं घृतपावान : पिबत बसां वसापावान : ।' पुरो. वाह जी इसमें चोरी की कौन बात है? अहा ! वैसी ही कमारियों की पूजा - गंडकी-- (धीर से) यहाँ वह वैष्णव और शैव 'इम ते उपस्थं मधुना सृजामि प्रजापतेर्मुखमेतद- द्वितीयं तस्या योनि परिपश्यति घीरा: ।' पुरो.-- वैष्णव तुम्हारा क्या कर लेगा ! क्या अहा हा! कुछ कहने की बात नहीं है सब बातें किसी की डर पड़ी है? उपस्थित थीं। विदु.-- महाराज. गंडकीदासजी का नाम तो 'मधूवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धव : रंडादासजी होता तो अच्छा होता । ऐसे ही मदिरा की नदी बहती थी । (कुछ ठहर कर) राजा-- क्यों? जो कछ हो मेरा तो कल्याण हो गया. अब इस धर्म के विदू.- यह तो रडा ही के दास हैं। आगे तो सब धर्म तच्छ हैं और जो मांस न खाय वह तो आशंखचक्रांकितबाहृदण्डा गृहे समालिगितबालरण्डा : । हिन्द नहीं जैन है वेद में सब स्थानों पर बलि देना लिखा है । ऐसा कौन सा यज्ञ है जो बिना बलिदान का अथच -भण्डा भविष्यन्ति कलौ प्रचण्डाः । है और ऐसा कौन देवता है जो मास बिना ही प्रसन्न हो रण्डामण्डलमण्डनेषु पटवो धूर्ता : कलौ वैष्णवा : । शैव, वैष्णव और वेदांती-- अव हम लोग जाता है. और जाने दीजिए इस काल में ऐसा कौन है जो आज्ञा लेते हैं । इस सभा में रहने का हमारा धर्म मास नहीं खाता ? क्या छिपा के क्या खुले-खुले, नहीं। अंगौछे में मांस और पोथी के चोंगे में मद्य छिपाई जाती विदू. दंडवत. दंडवत जाइए भी किसी है । उसमें जिन हिंदुओं ने थोड़ी भी अंगरेजी पढ़ी है वा जिनके घर में मुसलमानी स्त्री है उनकी तो कुछ बात ही तरह । नहीं. आजाद है । (सिर पकड़कर) है माथा क्यों घूमता (सब जाते हैं) है ? अरे मदिरा ने तो जोर किया । (उठ कर गाता विद्व.-महाराज, अच्छा हुआ यह सब चले गए । अब आप भी चलें । पूजा का समय हुआ । है)। जोर किया जोर किया जोर किया रे.आज तो मैंने राजा ठीक है। नशा जोरे किया रे । साँझहि से हम पीने बैठे पीते पीते (जर्वानका गिरती है) भोर किया रे ।। आज तो मैंने. (गिरता पड़ता नाचता है) रामरस पीओ रे भाई. जो पीए सो अमर होय जाई वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ३१३