पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३५६

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चौके भीतर मुरदा पाकै जवेलै नहाय कै ऐसन जनम जर मंत्री-महाराज पुरोहित जी आनंद में हैं । ऐसे जाई ।। रामरस पीओ रे भाई ही लोगों को मोक्ष मिलता है। अरे जो बकरी पत्ती खात है ताकी कादी खाल । राजा-सच है। कहा भी है- अरो जो नर बकरी खात है तिनको कौन हवाल ।। पीत्वा पीत्वा पुन : पीत्वा पतित्वा धरणीतले । रामरस पीओ रे भाई उत्थाय च पुन : पीत्वा नरो मुक्तिमवाप्नुयात । यह माया हरि को कलवारिन मद पियाय राखा बौराई । मंत्री-महाराज, संसार के सार मदिरा और एक पड़ा भुइँया में लोटै दूसर कहै चोखो दे माई ।। मांस ही हैं। रामरस पीओ रे भाई 'मकारा : पञ्च दर्लभा : ।' अरे चढ़ी है सो चढ़ी नहिं उतरन को नाम । राजा-- इसमें क्या संदेह । भर रही खुमारी तब क्या रे किसी से है काम ।। वेद वेद सबही कहैं, भेद न पायो कोय । रामरस पीओ रे भाई | बिन मदिरा के पान सो. मुक्त्ति कहो क्यों होय । मीन काट जल धोइए खाए अधिक पियास । मंत्री-महाराज, ईश्वर ने बकरा इसी हेतु अरे तुलसी प्रीत सहिए. मुए मीत की आस । बनाया ही है, नहीं और बकरा बनाने का काम क्या रामरस पीओ रे भाई | था ? बकर केवल यज्ञार्थ बने हैं और मद्य पानार्थ । अरे मीन पीन पाठीन पुराना भरि भरि भार कंहारन राजा-यज्ञो वै विष्णु : यज्ञेन यज्ञमयजंति देवा : आना। यज्ञाद्भवति पर्जन्य:, इत्यादि श्रुतिस्मृति में यज्ञ महिष खाई करि मदिरा पाना अरे गरजा रे कुंभकरन की कैसी स्तुति है और "जीवो जीवस्य जीवन" जीव बलवाना ।। रामरस पीओ रे भाई | इसी के हेतु हैं क्योंकि "मांस भात को छोड़िके का ऐसा है कोई हरिजन मोदी तन की तपन बुझावैगा । नर सैहे घास? पूरन प्याला पिये हरी का फेर जनम नहिं पावैगा । मंत्री और फिर महाराज, यदि पाप होता भो रामरस पीओरे भाई हो तो मुखों को होता होगा । जो वेदांती अपनी आत्मा में अरे भक्तों ने रसोई की तो मरजाद ही खोई । रमण करनेवाले ब्रह्मस्वरूप ज्ञानी हैं उनको क्यों होने कलिए की जगह पकने लगी रामतरोई रे । लगा? कहा है न- रामरस पीओरे भाई यावदतोस्मि हतास्मीत्यात्मानं मन्यते स्वदक । भगतजी गदहा क्यों भयो । तावदेवाभिमानज्ञो वाध्यबाधकतामियात । जब से छोड्यो मांस-मछरिया सत्यानाश भयो । गतासूनगतासूश्च नानुशोचति रामरस पीओ रे भाई नैनं छिदति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।। अरे एकादशी मछली अच्छेद्योयामदयोयमक्लेद्यो शोष्य एव अरे कबों मरे बैकले जाई। न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।। रामरस पीओ रे भाई इससे हमारे आप से ज्ञानियों को तो कोई बंधन अरे तिल भर मछरी खाइबो कोटि गऊ को दान । नहीं है । और सुनिए मदिरा को अब लोग कमेटी ते नर सीधे जात है सुरपुर बैठि बिमान । करके उठाया चाहते हैं वाह वे वाह ! रामरस पीओ रे भाई राजा-छि : अजी मद्यपान गीता में लिखा कंठी तोड़ो माला तोड़ो गंगा दह बहाई । है "मद्याजी मां नमस्कुरु । अरे मदिरा पीयो खाइ के मछरी बकरा जाह चबाई ।। मंत्री-और इस संसार में मांस और मद्य रामरस पीओरे भाई से बढ़कर कोई वस्तु है भी तो नहीं । ऐसी गाढी पीजिए ज्यौं मोरी की कीच । राजा-अहा ! मदिरा की समता कौन करेगा घर के जाने मर गए आप नशे के बीच । जिसके हेतु लोग अपना धर्म छोड़ देते हैं । देखो - रामरस पीओ रे भाई मदिरा ही के पान हित. हिंदू धर्माह छोड़ि । (नाचता नाचता गिर के अचेत हो जाता है) बहुत लोग ब्राह्मो बनत, निज कल सों मुख मोड़ि ।। (मतवाले बने हुए राजा और मंत्री आते हैं) ब्रांडी को अरु ब्राह्म को, पहिलो अक्षर एक राजा-मंत्री पुरोहितजी बेसध पड़े हैं। तासों ब्राह्मो धर्म में, यामें दोस न नेक ।। न पंडिता: ।। . खाई। भारतेन्दु समग्र ३१४