पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३५७

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काम कगात का मंत्री-- महाराज. ब्राह्मो को कौन कहे हम लोग भट्टी नहिं सिल लोढा नही धारधार तो वैदिक धर्म मानकर सौत्रामणि यज्ञ करके मदिरा पलकन की फेरन में चढ़त धुआंधार ।। पी सकते हैं। पीने वध क. । राजा-. सच है. देखो न कनवारिन मदमाती मदिरा को तो अंत अरु आदि राम को नाम । भरि भरि दन पियलवा महा ठटान ।। तासों तामैं दोष कर नहिं यह बुद्धि ललाम । पीने अवध.. तिष्ठ तिष्ठ क्षण मद्य हम पियें न जब नौं नीच । घरी गुलाबी गाल लिए गुलाबी हाथ । यह कहि देवी क्रोध सो हत्यौ शुभ रन बीच ।। मोहि दिखाव मद की झलक चनक पियाला साथ ।। मद पी विधि जग को करत, पालत हरि करि पान । पीने वध.r माह पीक नाश सब करत शभ भगवान ।। बहार आई है भर दादा गुलग से पैमाना । विष्ण वासनी. पाट पुरुषोत्तम मद्य मरि । रह लाखों बरस माकी तंग आबाद मखाना ।। शापिन शिव, गौड़ी गिरिश. ब्रांडी ब्रह्म विचारि ।। सम्हल बैठो और मस्नो जग हशियार हो जाना। मंत्री-.और फिर महाराज. ऐसा कौन है जो कि साकी हाथ में मैं का लिा पैमाना आता है। मद्य नहीं पीता. इससे तो हमी लोग न अच्छे जो उड़ाता खाक सिर पर भूमता मस्ताना आता है । | विधिपूर्वक वेद की रीति से पान करते हैं और यों पील अवधू के यहाँ हाँ हाँ ।। छिपक इस समय में कौन नहीं करता। यह पाठरंग है लोग चतुरंग ही गाने है । ब्राह्मण क्षत्री वैश्य अस सैयद सेख पठान । न चाय न जाय मो सों मदवा भरीलो न जाय नत्र फिर कहां से-- दे बताइ मोहि कौन जो करत न मदिरा पान ।। डिक डीप और टेस्ट नॉट द पीरियन स्प्रिंग । पियत भट्ट के ठट्ट अस, गवर्गातन के बंद ।। Drink deep or taste not the Pierian spring गोतम पियत अनंद सों पियत अन के नंद ।। पीले अवधू के मतवाले प्याला प्रम हरा रस का।। ब्राह्मण सब छिपि छिपि पियत जामें जानि न जाय । (एक दसरं के सिर पर धौल मालकर ताल कर पाथी के चौगान भरि बोतल बगल छिपाय ।। | नाचने हैं । फिर एक पुरोहित का सिर पकड़ता है वैष्णव मोग कहावही कंठी मद्रा धारि । दसरा पैर और उसको लेकर नाचते हैं।) छिप छिपि क मदिरा पिहिं यह जिय माझि विचारि । (जवनिका गिरती है होटा में दिग पियें. चोट लगे नहि खात्र । कनाट गा ठाद रहत टोटन दवे काज ।। राजा राजकुमार मिलि बाबू लीने संग। बार-बधन ने बाग में पीअन भर उमंग ।। गजा-मच है इसमें क्या संदह है। स्थान —यमपुरी मंत्री-- महाराज. मेरा सिर घूमता है और पसी (यमराज बैठे हैं. और चित्रगान पास खद ह) इन्छा होती है कि कछ नाचं और गाऊं । (चार दत राजा. पुरोहित. मत्री. गडकीदास. शैव और राजा-ठीक है मैं भी नाच-गाऊंगा, तम प्रारंभ वैष्णव को पकड़ कर लाते हैं) करा । १ दूत-- (राजा के सिर में धौल मारकर) चल वे (मंत्री उठकर राजा का हाथ पकड़ कर गिरता-पड़ता चल, अब यहाँ नेरा राज नहीं है कि छत्र-चंवर होगा. नानना और गाता है) फूल के पैर रखता है. चल भगवान यम के सामने और पील अवध कं मनवाले प्याला प्रेम हरी रस कार । अपने पाप का फल भुगत, बहुत कूद-कूद के हिंसा की ननन ननन ननन ननन में गाने का है चमका ।। और मदिरा पी. सौ सोनार की न एक लोहार की । (दो निनि धध पप मम गग रिरि सासा भरले सुर अपने बस धौल और लगाता है) 1 कार । २ दूत- (पुरोहित को घसीटकर) लिए धिधिकट घिधिकट धिधिकर धाधा बज मृदंग थाप | पुरोहितजी. दक्षिणा लीजिये. वहां आपने चक्र-पूजन | कम कार ।। किया था. यहां चक्र में आप में लिए दखिए पीले अवधू क. बलिदान का कैसा बदला लिया जाता है।

वैदिकी हिंमा हिंसा न भवति३१५ 23 चतुर्थ अंक