पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/३६

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पत्रिकाओं की फाइलों में दबी पड़ी कुछ ऐसी अलभ्य कृतियां भी हैं, जो अबतक किसी संग्रह में नहीं आयी, और यदि आयी भी हैं, तो किसी कोने अतरे में। यह मात्र ग्रंथावली ही नहीं है, वरन् भारतेन्दु समग्र है । इसमें वह सब उपलब्ध सामग्री दी गयी है जो भारतेन्दु की है और भारतेन्दु के रचना कौशल से कहीं ज्यादा उनके व्यक्तित्व से नयी है । इनमें कविताएँ हैं, पत्र हैं, सम्पादकीय टिप्पणियां हैं, सम्पादक के नाम पत्र हैं, एजूकेशन कमीशन के समक्ष भारतेन्दु की गवाही है। भारतेन्दु द्वारा दिये और प्रकाशित विज्ञापन है तथा कुछ सूचनाएँ और खबरे हैं। अन्त में चन्द्रास्त और भारतेन्दु की संक्षिप्त जीवनी भी है। चन्द्रास्त वह व्यथा भरा भवोद्गार है, जिसे भारतेन्दु जी के अनन्य मित्र पं. रामशंकर व्यास ने भारतेन्दु के निधन की दुखद सूचना काशीवासियों को देने के लिए छपवाकर मुफ्त बटवाया था । व्यास जी भारतेन्दु की टूटती सांसों के चश्मदीद गवाह थे। उन्होंने भारतेन्दु को बड़े करीब से देखा था । इसीसे उनकी लिखी भारतेन्दु की जीवनी भी इस 'समग्न' में आ गयी है। भारतेन्दु जी अपनी पत्रिकाओं के मूल्य आदि की विज्ञप्ति भी कविता में ही छापते थे । बुढ़वा मंगल का निमंत्रण भी कविता में होता था । दोनों की बानगियाँ भी यहां इकट्ठी हैं । घोड़े की चाल के विषय में भी तीन छप्परा दिये गये हैं । जब पहली बार इस देश में आयकर लगा था, उसी समय विलियम म्योर का काशी आगमन हुआ था । गंगा तट पर रोशनी की गयी थी । भारतेन्दु ने एक नाव पर 'Oh Tax' और दूसरी पर एक दोहा लिखवाया था। वह दोहा भी दिया गया है । ऐसी कई फुटकल काव्य रचनाएं उनके सन्दर्मों के साथ दी गयी है जिन्हें भारतेन्दु ने किसी प्रसंग में लिखी या कही हैं। 'दशरथ विलाप' नाम की लम्बी कविता किसी ग्रंथावली में नहीं है, वह इस ग्रंथ में मिलेगी। भारतेन्दु के पूरे पत्र बहुत कम उपलब्ध हैं । ज्यादातर अधूरे ही मिलते हैं, उनमें भी पेन्सिल से लिखे हुए । कुछ पत्रों का प्रसंगवश कहीं जिक्र आया है। उन सबको इस 'समग्र' में लेने की चेष्टा की गयी है, क्योंकि ये पत्र भारतेन्दु के जीवन के बहुत से अनखुले पृष्ठ खोलते हैं । मिसाल के तौर पर भोपाल की बेगम साहिबा से भारतेन्दु की घनिष्टता थी। उनकी कविताएँ प्रकाशित करने के लिए "भारत मित्र" के सम्पादक को उन्होंने एक सिफारिश पत्र भी लिखा था। किन्हीं सन्तोष सिंह को लिखे पत्र से पता चलता है कि बंगला में उपन्यास साहित्य की प्रगति देखकर भारतेन्दु जी का ध्यान उधर भी गया था । वे हिन्दी में भी उपन्यास लिखना चाहते थे। अपने भाई को लिखे पत्र में अपनी प्रेयसि मल्लिका के सम्बन्ध में शायद दो-एक ही वाक्य है. पर बड़ी ईमानदारी से उस पत्र में उसके वरण को स्वीकारा गया है। एक पत्र में कलकत्ता के अपने किसी मित्र को भारतेन्दु जी ने खंग विलास प्रेस के श्री रामदीन सिंह का जिक्र बड़ी आत्मीयता से किया है । यह पत्र इस बात का भी प्रमाण है कि भारतेन्दु जी का शाह खर्च अन्तिम दिनों में आर्थिक दृष्टि से कितना लाचार हो गया था। आली जान वेश्या से भारतेन्दु का लगाव था । आलीजान किन्हीं किसुन सिंह की लड़की थी और कभी हिन्दू थी । भारतेन्दु जी ने उसका शुद्धीकरण कर हिन्द बना उसका नाम माधवी रखा । वह उसके लिए एक मकान भी खरीदना चाहते थे । पैसे का प्रश्न था । इसी बीच उनके एक मित्र ने उन्हें धोखा दिया । लाचार होकर उन्हें पं. बदरीनाथ चौधरी 'प्रेमधन' को लिखना पड़ा। सन् १८८२-८३ में बिट्रिश नेशनल एंथम का अनुवाद करने के लिए एक कमेटी बनी । बीस भाषाओं में उसका अनुवाद अपेक्षित था । संस्कृत में अनुवाद प्रो. मैक्समूलर ने किया था और बंगला अनुवाद श्री यतीन्द्रनाथ ठाकुर ने । हिन्दी अनुवाद का काम भारतेन्दु जी को दिया गया । वे उस समय बीमार थे । फिर भी उन्होंने अनुवाद कितनी सावधानी से किया इसकी जानकारी फेडरिक क. हेन फोड R चौतीस