पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दुस नहीं है. क्योकि वह लोग तो यही सोचते है कि | घरी ।। इसी कृतन चंद्रगुप्त ने राज के लोभ से अपने पितृकुल मलय.- अमात्य! जो अब आप ऐसा बाड़ाई का नाश किया है, पर क्या करें उनका कोई आश्रय नहीं का समय देखते है तो देर करके क्यों बैठेहै? हे इससे चंद्रगुप्त के आसरे पड़े है । जिस दिन आपको देखिए- अनु के नाश में और अपने पक्ष के उद्वार में समर्थ देखेंगे इनको ऊंची सोस है, वाको उच्च करार । उसी दिन गंदगुप्त को छोड़कर आपसे निश जायंगे, श्याम दोऊ. वह जल सपत, ये गंडन मधुधार ।। इसके उदाहरण हमी लोग है उते अंधर को शब्द, इत भंवर करत गुंजार । मलय.-आर्य ! चंद्रगुप्त पर चढ़ाई करने का निज सम सेहि लखि नासिहे. दंतन तोरि कछार ।। एक यही कारण है कि कोई और भी है। सीस सोन सिंदूर सों ते मतग बल रूप । राक्षस और बहुत क्या ढोंगे एक यही बड़ा | सोग सहज ही चौलिहे निश्चय जानहु आप । भारी है और भी मलय.- क्यों जार्य ! यही क्यों प्रधान है गरवि गरजि गमीर रव, परसि वरसि मधु धार । क्या चंद्रगुप्त और मंत्रियों या आप अपना काम सनु-नगर गज घेरिहे. घन जिमि विविध पक्षार ।। करने में असमर्थ है। (शस्त्र उठाकर भागुरायण के साथ जाता है) राक्षस-निरा असमर्थ है। 1 राक्षस-कोई है, मलय.-क्यों? (प्रियंवदक आता है। राक्षस-यो कि जो आप राज्य संभालते है या प्रियंबवक-जाज्ञा । जिनका राव राजा और मंत्री दोनों करते हैं वह राजा राक्षस-देख तो द्वार पर कौन भिक्षुक खड़ा ऐसे हों तो हो में : परंतु चंद्रगुप्त तो कदापि ऐसा नही है। है, चंद्रगुप्त एक तो दुरात्मा है. दूसरे वह तो सचिष ही के प्रिय.-जो अशा । (माहर जाकर फिर आता भरोसे सब काम करता है. इससे वह कुछ व्यवहार | है) अमात्य ! एक क्षपणक भिक्षुक । जानता ही नहीं, तो फिर वह सब काम कैसे कर सकता राक्षस- (असगुन जानकर आप ही आप) है क्योकि पहिले ही वपनक का दर्शन हुजा । लक्ष्मी करत निवास अति प्रवत्त सचिव नृप पाद प्रिय.-जीवसिद्धि है। पै निव बाल सुभाष सो इकहि तजत अकुलाय ।। राक्षस अच्छा बोजाकर ले आ। और भी- जो गप बालक सो रहत सदा सचिव के गोद । (जाता है) (शपणक आता है) बिन कछु जग देखे सुने सो नहिं पायत मोद ।। क्षपणक- मलय.- (आप ही आप तो हम अच्छे हैं कि पहिले कटु परिणाम मधु, ओषध-सम उपदेस । सचिव के अधिकार में नहीं । (प्रकाश) अमात्म! मोह व्याधि के वैद्य गुरू, तिनको सुनहु निवेश ।। यद्यपि यह ठीक है नचापि वहाँ शत्रु के अनेक छिद्र है (पास जाकर) उपासक! धर्म लाभ हो! तहाँ तक इसी सिदि से सब काम न निकलेगा राक्षस-कुमार के सब काम इसी से सिद्ध होगे राक्षस - ज्योतिषीजी, बताओ. अब हम लोग प्रस्थान किस दिन करें। देखिए. चाणक्य से अधिधार इट्यो चंद्र है राज नए । क्षप.- कुछ सोचकर) उपासक ! महूर्त तो पुर नंद में अनुरक्त तुम निज बल सहित चढ़ते भए ।। देखा । आज भद्रा तो पहर पहिले ही छूट गई है और जब आप हम-कहकर सजा से कुछ ठहर जाता तिथि भी संपूर्णचंद्र पौर्णमासी है । आप लोगों को उत्तर है) से दक्षिण जाना है और नक्षत्र भी दक्षिण ही है। तुव बस सकल उथम सहित रन मति करो। अथइ सूरहि, चद के उदए गमन प्रधास्त ।। वह कौन सी नृप ! बात जो नहि सिद्धि दवे हे ता घरी।। पाइ लगन बुध केतु तो उदयो हु भी अस्त ।।' प्रिय.-खो आज्ञा १. भद्रा छूट गई अर्थात कल्याण को तो आप ने जब चंद्रगुप्त का पक्षा छोड़ा तभी छोड़ा और संपूर्ण-चंद्र पोर्णमासी है अर्थात नंद्रगुप्त का प्रताप पूर्ण व्याप्त है । उत्तर नाम. प्राचीन पक्ष होड़कर दक्षिण अर्थात् यम की दिशा SEM मारतेन्दु समग्र ३५८