पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४१३

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सम और न या जग कोई ।। पुरुष- (फिर पैर पर गिरता है) धन्य हैं ! बड़ा (प्रकाश) इस बात पर मौर्य ने क्या कहा? ही आनंद हुआ । आपने हमको आज कृतकृत्य किया पुरुष-आर्य ! इस बात पर चंद्रगुप्त ने उससे कहा कि जिष्णुदास ! हमने धन के हेतु चंदनदास को राक्षस भद्र! उठो । देर करने की कोई नहीं दंड दिया है । इसने अमात्य राक्षस का कुटुंब आवश्यकता हीं। जिष्णुदास से कहो कि राक्षस अपने घर में छिपाया था, और बहुत मांगने पर भी न चंदनदास को अभी छुड़ाता है । दिया, अब भी जो यह दे दे तो छूट जाय, नहीं तो इसको (खंग खींचे हुए 'समर साघ' इत्यादि पढ़ता हुआ इधर प्राणदंड होगा । तभी हमारा क्रोध शांत होगा और दूसरे उधर टहलता है) लोगों को भी इससे डर होगा - यह कह उसको वध पुरुष-(पैर पर गिरकर) अमात्यचरण! स्थान में भेज दिया । जिष्णुदास ने कहा कि 'हम कान प्रसन्न हो । मैं यह बिनती करता हूँ कि चंद्रगुप्त दुष्ट से अपने मित्र का अमंगल सुनने के पहिले मर जाँतो ने पहले शकटदास के वध की आज्ञा दी थी फिर न जाने अच्छी बात है' और अग्नि में प्रवेश करने को वन में कौन शकटदास को छुड़ाकर उसको कहीं परदेश में चले गए । हमने भी इसी हेतु कि उनका मरण न सुने भगा ले गया । आर्य शकटदास के वध में धोखा खाने से यह निश्चय किया कि फाँसी लगाकर मर जायें और चंद्रगुप्त ने क्रोध करके प्रमादी समझदार उन वधिकों इसी हेतु यहाँ आए हैं। ही को मार डाला । तब से वधिक जो किसी को राक्षस- (घबड़ाकर) अभी चंदनदास को मारा वधस्थान में ले जाते हैं और मार्ग में किसी को शस्त्र तो नहीं खींचे हुए देखते हैं तो छुड़ा ले जाने के भय से अपराधी पुरुष-आर्य ! अभी नहीं मारा है, बारंबार अब को बीच ही में तुरंत मार डालते हैं । इससे शस्त्र खींचे भी उनसे अमात्य राक्षस का कुटुंब मांगते हैं और वह हुए आपके यहाँ जाने से चंदनदास की मृत्यु में और भी मित्रवत्सलता से नहीं देते, इसी में इतना विलंब शीघ्रता होगी। (जाता है) राक्षस- (आप ही आप) उस चाणक्य बटु का राक्षस- (सहर्ष आप ही आप) वाह मित्र नीतिमार्ग कुछ समझ नहीं पड़ता क्योंकि- चंदनदास! वाह ! धन्य ! धन्य !! सकट बच्यो जो ता कहै तो क्यों घातक घात । जाल मित्र परोच्छहुँ में कियो सरनागत प्रतिपाल । निरमल भयो का खेल में कछु समझयौ नहिं जात ।। जस सिवि सो लियो तुम या काल कराल ।। (प्रकाश) (सोचकर भद्र ! तुम शीघ्र जाकर जिष्णुदास को जलने से रागे, हम नहिं शस्त्र को यह काल यासों मीत जीवन जाइ है। जो जाकर अभी चंदनदास को छुड़ाते हैं ? नीति सोचें या समय तो व्यर्थ समय नसाइहै ।। आर्य आप किस उपाय से चंदनदास को चुप रहनहू नहिं लोग जब मम हित बिपति चंदन परयौ। तासों बचावन प्रियहि अब हम देह निज बिक्रय करयौ।। राक्षस- (खड्ग मियन से खींचकर) इन (तलवार फेंककर जाता है) दु:खों में एकांत मित्र निष्कृप कृपाण से । समर साध तन पुलकित नित साथी मम कर को । रन महँ बारहिं बार परिछ्यौ जिन बल पर को ।। बिगत जलद नभ नील खड़ग वह रोस बढ़ावत । मीत कष्ट सो सप्तम अंक दुखिहु मोहिं रनहित उमगावत ।। पुरुष-सेठ स्थान - सूली देने का मसान चंदनदास के प्राण बचाने का उपाय मैंने सुना किंतु ऐसे (पहिला चांडाल आता है) टेढ़े समय में इसका परिणाम क्या होगा, यह मैं नहीं चांडाल - हटो लोगो हटो दूर हो भाइयो, दूर कह सकता । (राक्षस को देखकर पैर पर गिरता है। हो । जो अपना प्राण, धन और कुल बचाना हो तो दूर आर्य ! क्या सुगृहीत-नामधेय अमात्य राक्षस आप ही | हो । राज का विरोध यत्नपूर्वक छोड़ो । हैं ? यह मेरा संदेह आप दर कीजिए। करि कै पथ्य विरोध इक रोगी त्यागत प्रान । राक्षस- भद्र ! भर्तृकुल विनाश से दु :खो और | पै विरोध नृप सों किए नसत सकुल नर जान ।। मित्र के नाश का कारण यथार्थ नामा अनार्य राक्षस मैं ही | जो न मानो तो इस राजा के विरोधी को देखो जो स्त्री पुत्र हैं। समेत यहाँ सूली देने को लाया जाता है । (ऊपर छुड़ाइएगा? मुद्रा राक्षस ३६९