पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४२

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भक्त-सर्वस्व श्री गिरिधर गोविंद पुनि बालकृष्ण सुख-धाम । जग-पावनि गंगा प्रगट याही सों इहि हेत । गोकुलपति रघुपति जयति जदुपति श्री घनश्याम ।१४ | चिन्ह सुजल के तत्व को धारत रमा-निकेत ।३ जै जै श्री शुकदेव जिन समुझि सकल श्रुति-पंथ । शक्ति चिन्ह भाव वर्णन हम से कलिमल ग्रसति हित कयौ भागवत ग्रंथ ।१५ बिना मोल की दासिका शक्ति स्वतंत्रा नाहिं । बंदौं पितु-पद जुग जलज हरन हृदय-तम घोर । सकल नेह-भाजन बिमल मंगलकरन अथोर ।१६ शक्तिमान हरि, याहि तें शक्ति चिन्ह पद माँहि ।१ कविजन-उड़गन-मोद-कर पूरन परम अमंद । भक्तन के दुख दलन की विधि की लीक मिटाइ । परम शक्ति यामें अहै सोई चिन्ह लखाइ ।२ सुत-हिय-कुमुद-अनंद-भर जयति अपूरब चंद ।१७ जुगल चरन जग-तम-हरन भक्त्तन-जीवन-प्रान । सिंहासन चिन्ह भाव वर्णन बरनत तिन के चिन्ह के भाव अनेक बिधान ।१८ श्री गोपीजन के सुमन यापैं करें निवास । बरनन श्री हरिराय किय तिनको आवस पाई। या हित सिंहासन धरत हरि निज चरनन पास ।।१ चरन-चिन्ह हरिचंद कछु कहत प्रेम सों गाइ ।१९ | जो आवै याकी शरण सो जग राजा होइ । भक्तन को सर्वस्व लखि बरनन या थल कीन । या हित सिंहासन सुभग चिन्ह रह्यौ दुख खोइ ।२ प्रम-सहित अवलोकिहे जे जन रसिक प्रबीन ।२० अंकुश चिन्ह भाव वर्णन कह हरि-चरन अगाध कहँ मोरी मति थोर । मन-मतंग निज जनन के नेकु न इत उत जाहिं। ताप कृपा-बल लहि कहत छमिय ढिठाई मोर ।२१ एहि हित अंकुस धरत हरि निजपद कमलन माँहि ।। याको सेवक चतुरतर गननायक सम होई । wer या हित अंकुस चिन्ह हरि चरनन सोहत सोइ ।२ स्वास्तिक स्यदन संख सक्ति सिंहासन सुंदर । ऊरध रेखा चिन्ह भाव वर्णन अंकुस ऊरध रेख अब्ज अठकोन अमलतर । बाजी बारन बेनु बारिचर बन बिमलवर । | कबहुँ न तिनकी अधोगति जे सेवत पद-पद्म । कुंन कुमुद कलधौत कुंभ कोदंड कलाधर । ऊरध रेखा चिन्ह पद येहि हित कीनो सा ।१ ऊरधरेता जे भये ते या पद को सेइ । असि गदा छत्र नवकोन जव तिल त्रिकोन तरु तीर गृह । ऊरध रेखा चिन्ह यों प्रगट दिखाई देइ ।२ हरिचरन चिन्ह बत्तिस लखे अग्निकुंड अहि सैल सह ।१ यातें ऊरध और कछु ब्रह्म अंड मैं नाहिं । स्वस्तिक चिन्ह भाव वर्णन ऊरध रेखा चिन्ह है या हित हरि-पद माँहि ।३ दोहा कमल के चिन्ह को भाव वर्णन जो निज उर मैं पद धरत असुभ तिन्हें कहु नाहिं । सजल नयन अरु हृदय मैं यह पद रहिबे जोग । या हित स्वस्तिक चिन्ह प्रभु धारत निज पद मांहिं ।१ या हित रेखा कमल की करत कृष्ण-पद भोग ।१ श्री लक्ष्मी को वास है याही चरनन-तीर । रथ को चिन्ह वर्णन या हित रेखा कमल की धारत पद बलबीर १२ बिधि सों जग, बिधि कमल सों, सो हरि सों प्रगटाइ । निज भक्तन के हेतु जिन सारथिपन हूँ कीन । राधावर-पद-कमल मैं या हित कमल लखाइ ।३ प्रगटित दीन-दयालुता रथ को चिन्ह नवीन ।१ फूलत सात्विक दिन लखे सकुचत' लखि तम रात । माया को रन जय करन बैठहु यापै आइ । या हित गोपाल-पद जलज चिन्ह दरसात ।'४ यह दरसावन हेत रथ चिन्ह चरन दरसाइ २ श्री गोपीजन-मन-भ्रमर के ठहरन की ठौर । शंख चिन्ह के भाव वर्णन या हित जल-सुत-चिन्ह श्री हरिपद जन सिरमौर ।५ भक्तन की जय सर्वदा यह दरसावन हेतु । बढ़त प्रम-जल के बढ़े घटे नाहिं घटि जात । शंख चिन्ह निज चरन मैं धारत भव-जल-सेतु ।१ यह दयालुता प्रगट करि पंकज चिन्ह लखात । परम अभय पद पाइहौ याकी सरनन आइ । काठ ज्ञान वैराज्ञ मैं बध्यो बेधि उड़ि जात । मनहुँ चरण यह कहत है शंख बजाइ सुनाइ ।२ याहि न बेधत मन-भ्रमर या हित कमल लखात ।७ भारतेन्दु समग्र २