पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सत्य हरिश्चन्द्र सन् १८७६ में निउ मेडिकल हाल प्रेस, बनारस से छपा यह नाटक सम्भवतः बच्चों के लिए लिखा गया था। संस्कृत साहित्य में आर्य क्षेमेश्वर कृत चंडकौशिक और रामचंद्र कृत सत्य हरिश्चन्द्र नाम के दो रूपक मिलते हैं। जो राजा हरिश्चंद्र की आख्यायिका को लेकर लिखे गये हैं। मारतेन्दु का यह नाटक इन दोनों में से किसी का अनुवाद तो नहीं था। पर पहले का कुछ भाग इसमें अनुदित अवश्य है। सं. सत्य हरिश्चन्द्र एक रूपक चार खेलो मे चन्द्रावली इत्यादि नाटको के कवि श्री हरिश्चन्द्र लिखित श्रीयुत या बालेश्वरप्रसाद बी. ए. की आशानुसार काशी पत्रिका नामक पाक्षिक हिन्दी पत्र से संगृहीत होकर बनारस निउ मेडिकल हाल प्रेस में छापा गया सन् १८७६ ई. उपक्रम है। अनुमान होता है कि इस नाटक को बने चार सौ बरस से ऊपर हुए क्योकि विश्वनाथ कविराज मेरे मित्र आधु पालेशवरप्रसाद धी.ए. ने मुझसे कहा कि आप कोई ऐसा नाटक भी लिखें जो लड़कों को पढ़ने मेशिक विश्वामित्र का नाम है। हरिश्चन्द्र और ने अपने साहित्य प्रथ में इसका नाम लिखा है। पढ़ाने के योग्य हो क्योंकि अंगार रस के आप ने जो नाटक लिखे से वे बड़े लोगों के पढ़ने के है लड़को को विश्वामित्र दोनों' शब्द व्याकरण की रीति से स्वयं सिद्ध है । विश्वामित्र कान्यकुच का क्षत्रिय राजा उनसे कोई लाभ नहीं । उन्हीं की इच्छानुसार मैने बाह वा । यह सत्य हरिश्चन्द्र नानक रूपक लिखा है। इस में सूर्य एक बेर संयोग से वशिष्ठ के आश्रम में गया और जब पशिष्ठ ने सेन समेत उसकी जफत अपनी शवला नाम कुरा सम्भूत राजा हरिश्चन्द्र की कथा है। राना श्री कामधेनु गऊ के प्रताप से बड़े धूमपान से को तो हरिश्चन्द्र सूर्य वंश का प्राइसवाँ राजा रामचन्द्र के ३५ पीढ़ी पहले राजा त्रिशंकु का पुत्र था । इसने विश्वामित्र ने वह कामधेनु सोनी नाही । जब हजारों | शौभपुर नामक एक नगर बसाया था और बढ़ा तो विश्वामित्र ने गऊ छोन लेनी चाही । वशिष्ठ . घोड़े और गऊ के बदले भी वशिष्ठ ने गऊन दी ही दानी था। इसकी क्या शास्त्रों में बहुत प्रसिद्ध है और संस्कृत में राजा महिपाल देव के की आज्ञा से कामधेनु ने विश्वामित्र को सब सेना समय में आर्ण क्षेमीश्वर कवि ने चंडकौशिक | नाश कर दिया और विश्वामित्र के सो पुत्र भी। नामक नाटक इन्ही हरिश्चन्द्र के चरित्र में बनाया वशिय ने शाप से जला दिए । विश्वामित्र इस भारतेन्दु समग्र ३८०