पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४३०

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दूसरा अंक 'आशीर्वाद देकर बैठते हैं)। धर्म का हठ करैगा । और फिर कोई परीक्षा लेता तो ना.- तो अब हम जाते हैं, क्योंकि पिता के मालूम पड़ती । इन्हीं बातों से तो नारद जी बिना बात पास हमें किसी आवश्यक काम को जाना है। ही अप्रसन्न हुए। वि.. यह क्या ? हमारे आते ही आप चले, वि.-मैं अभी देखता हूँ न । जो हरिश्चन्द्र को भला ऐसी रुष्टता किस काम की । तेजोभ्रष्ट न किया तो मेरा नाम विश्वामित्र नहीं । भला ना.- हरे हरे! आप ऐसी बात सोचते हैं, राम मेरे सामने वह क्या सत्यवादी बनेगा और क्या दानीपने राम भला आप के आने से हम क्यों जायगे । मैं तो का अभिमान करेगा। जाने ही को था कि इतने मो आप आ गये । (क्रोध पूर्वक उठकर चला चाहते हैं कि परदा इ.-(हंसकर) आपकी जो इच्छा । ना.-(आप ही आप) हमारी इच्छा क्या अब तो गिरता है। ।। इति प्रथम अंक ।। आप ही की यह इच्छा है कि हम जायं, क्योंकि अब आप तो विश्व के अमित्र जी से राजा हरिश्चन्द्र को दुःख देने की सलाह कीजिएगा तो हम उसके बाधक क्यों हों पर इतना निश्चय रहे कि सज्जन को दुर्जन लोग जितना कष्ट देते हैं उतनी ही उनकी सत्य कीर्ति तपाए स्थान -राजा हरिश्चन्द्र का राजभवन । सोने की भांति और भी चमकती है क्योंकि बिपत्ति रानी शैव्या बैठी हैं और एक सहेली.२ बिना सत्य की परीक्षा नहीं होती । (प्रगट) यद्यपि 'जो बगल में खड़ी है। इच्छा' आप ने सहज भाव से कहा है तथापि परस्पर में रा.- अरी ? आज मैंने ऐसे बुरे-२ सपने देखे हैं ऐसे उदासीन बचन नहीं कहते क्योंकि इन वाक्यों से | कि जब से सो के उठी हूं कलेजा कांप रहा है । भगवान रूखापन झलकता है । मैं कुछ इसका ध्यान नहीं कुसल करे। करता, केवल मित्र भाव से कहता हूं। लो जाता हूं महराज के पुन्य प्रताप से सब कुसल ही और यही आशीर्वाद देकर जाता हूँ कि तुम किसी को होगी आप कुछ चिन्ता न करें । भला क्या सपना देखा कष्टदायक मत हो क्योंकि अधिकार पाकर कष्ट देना है मैं भी सुनूँ? रा. महाराज को तो मैंने सारे अंग में भस्म यह बड़ों की शोभा नहीं सुख देना शोभा है । इ.- (कुछ लज्जित होकर प्रणाम करता है)। लगाए देखा है और अपने को बाल खोले, और (आखों (नारदजी जाते हैं। में आंसू भर कर) रोहितास्व को देखा है कि उसे साप वि. .- यह क्यों? आज नारद भगवान ऐसी काट गया है। स. चली कटी क्यों बोलते थे, क्या तुमने कुछ कहा था । राम ! राम ! भगवान सब कुसल करेगा। इ.-नहीं तो। राजा हरिश्चन्द्र का प्रसंग भगवान करे रोहितास्व जुग जुग जिए और जब तक निकला था सो उन्होंने उसकी बड़ी स्तुति की और | गंगा जमुना में पानी है आप का सोहाग अचल रहे । हमारा उच्च पद का आदरणीय स्वभाव उस परकीर्ति भला आप ने इसकी शांति का भी कुछ उपाय किया है । को सहन न कर सका इसी में कुछ बात ही बात ऐसा | है देखो वह क्या करते हैं । रा.- हा गुरुजी से तो सब समाचार कहला भेजा सन्देह होता है कि वे रुष्ट हो गए। वि.- तो हरिश्चन्द्र में कौन से ऐसे गुण हैं ? स.- हे भगवान हमारे महाराज महारानी कुंअर सब कुसल से रहैं, मैं आंचल पसार के यह रदान (सहज ही भृकुटी चढ़ जाती है)। मांगती हूँ। इ.-(मृषि का भ्रूभंग देखकर चित्त में संतोष (ब्राह्मण आता है)३ करके उनका क्रोध बढ़ाता हुआ) महाराज सिपारसी ब्रा.- (आशीर्वाद देता है) लोग चाहे जिसको बढ़ा दें चाहे घटा दें। भला सत्य स्वस्त्यस्तुतेकुशलमस्तुचिरायरस्तु धर्म पालन क्या हंसी खेल है। यह आप ऐसे गोवाजिहस्तिधनधान्यसमद्विरस्तु महात्माओ ही का काम है जिन्होंने घर बार छोड़ दिया ऐश्वर्यमस्तुकुशलोस्तुरिपुक्षयोस्तु है । भला राज करके और घर में रह के मनुष्य क्या सन्तानवृद्धिसहिताहरिभक्तिरस्तु ।। १. लंहगा, साड़ी, सब जनाना गहिना, बन्दी बेना इत्यादि । २. साड़ी, सादा सिंगार । ३. धोती, उपरना, सिर पर चुन्दी वा सिर भर बाल, डाढ़ी हाथों में पवित्री, तिलक, खड़ाऊ भारतेन्दु समग्र ३८६