पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४३८

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कियो ।। (विश्वामित्र आते हैं) इक हमहीं संग जात तजत सब पितु सुत नारी ।।। ह.- (पैर पर गिर के प्रणाम करता है) सो हम नित धित इक सत्य मैं जाके बल सब जियो ।। बि.-ला दे दक्षिणा । अब सांझ होने में कुछ सोइ सत्य परिच्छन नृपति को आजु भेस हम यह कियो।।। देर नहीं है। ह.- (हाथ जोड़कर) महाराज आधी लीजिए आश्चर्य से आप ही आप) सचमुच इस राजर्षि के आधी अभी देता हूं। (सोना देता है) समान दूसरा आज त्रिभुवन में नहीं है । (आगे बढ़कर बि.- हम आधी दक्षिणा लेके क्या करें ! दे चाहे प्रत्यक्ष) अरे हरजनवाँ ! मोहर का संदूख ले आवा है न? जहां से सब दक्षिणा । (नेपथ्य में) धिक् तपो धिक ब्रतमिदं धिक ज्ञान धिक् बहुश्रुतम् । नीतवान सत्य.-क चौधरी मोहर ले के का करबो ? सियब्रह्मन् हरिश्चंद्रमिमा दशां । धर्म.- तोहसे का काम पूछे से ? बि.-(बड़े क्रोध से) आ : हमको धिक्कार देने (दोनों आगे बढ़ते हुए फिरते हैं) वाला यह कौन दुष्ट है ? (ऊपर देखकर) अरे ह.- (अरे सुनो भाई सेठ साहूकार इत्यादि दो विश्वेदेवा (क्रोध से जल हाथ में लेकर) अरे क्षत्रिय के | तीन बेर पुकार के इधर उधर घूमकर) हाय ! कोई पक्षपतियो ! तुम अभी बिमान से गिरो और क्षत्रिय के | नहीं बोलता और कुलगुरु भगवान सूर्य भी आज हमसे कुल में तुम्हारा जन्म हो और वहाँ भी लड़कपन ही में रुष्ट हो कर शीघ्र ही अस्ताचल जाया है ब्राह्मण के हाथ से मारे जाओ' । (जल छोड़ते हैं) (घबराहट दिखाता है)। (नेपथ्य में हाहाकार के साथ बड़ा शब्द होता है) धर्म.- (आप ही आप) हाय हाय ! इस समय (सुनकर और ऊपर देखकर आनंद से) हहहह ! अच्छा इस महात्मा को बड़ा ही कष्ट है । तो अब चलें आगे । हुआ ! यह देखो किरीट कुंडल बिना मेरे क्रोध से | (आगे बढ़कर) अरे अरे हम तुम को मोल लेंगे । लेव बिमान से छूट कर बिश्वेदेवा उलटे हो-२ कर नीचे यह पचास से मोहर लेव । गिरते हैं। और हमको धिक्कार दें। ह. (आनन्द से आगे बढ़कर) वाह कृपा- ह.- (ऊपर देखकर भय से) वाह रे तप का निधान ! बड़े अवसर पर आए । लाइये । (उसको प्रभाव । (आप ही आप) तब तो हरिश्चन्द्र को अब तक पहिचान कर) आप मोल लोगे ? शाप नहीं दिया है यही बड़ा अनुग्रह है। (प्रकट) धर्म. - हां हम मोल लेंगे । (सोना देना चाहता भगवन यह स्त्री बेच कर आधा धन पाया है सो लें और आधा हम अपने को बेचकर अभी देते हैं । (नेपथ्य में) ह. आप कौन हैं? अरे अब तो नहीं सही जाती। धर्म. हम चौधरी डोम सरदार । बि.-हम आधा न लेंगे चाहे जहाँ से अभी सब अमल हमारा दोनों पार ।। सब मसान पर हमारा राज । ह.- (अरे सुनो माई सेठ साहूकार इत्यादि कफन मांगने का है काज ।। पुकारता हुआ घूमता है) फूलमती के दास । (चांडाल के भेष में धर्म और सत्य आते हैं। पूर्जे सती मसान निवास ।। धर्म.- (आप ही आप) धनतेरस औ रात दिवाली ।। हम प्रत्तच्छ हरिरूप जगत हमरे बल चालत । बल चढ़ाय के पूर्जे काली ।। जल थल नभ थिर मो प्रभाव मरजाद न टालत ।। सो हम तुमको लेंगे मोल । हमही नर के मीत सदा सांचे हितकारी । देंगे मुहर गाठ से खोल ।। १. यही पांचों विश्वेदेवा बिश्वामित्र के शाप से द्वापर में द्रोपदी के पांच पुत्र हुए थे जिन्हें अश्वत्थामा ने बालकपन ही मैं मार डाला । २. काछ कछे, काला रंग, लाल नेत्र, सिर भर छोटे छोटे चूंघराले बाल और शरीर नंगा, बातों से, मतवालापन झलकता हुआ ।। ३. प्राचीन काल में चांडालों की कुल देवी चंडकात्यायनी थी परंतु इस काल में फूलवती इन लोगों की कुलदेवी हैं। भारतेन्दु समग्र ३९४