पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४४५

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क्या । (खवरदार इत्यादि कहता हुधा फिरता है) बेलपत्र । हाय हमने इतना पुकारा नुम कुछ नहीं' (नेपथ्य में) बोलते !(जोर से) भेटा सांझ भई. सब विद्यार्थी लोग हाय ! कैसी भई! हाय बेटा हमें रोती छोर के कहा घर फिर आए तुम अब तक क्यों नहीं आए।(आगे चले गए! हाय! हावरें! शव देखकर) हाय हाय रे! अरे मेरे बाल को सांप ने ह.-बह! किसी दीन स्त्री का शब्द है और सचमुच रस लिया ! हाय लाल! हाय मेरे आँखों के शोक भी इस को पत्र का है । हाय हाय ! हम को भी | उजियाले को कोन हो गया ! हाच ! मेरा बोलता हुआ भाग्य ने क्या ही निर्दय और वीभत्स कम सौंपा है। सुग्गा कहा उड़ गया ! बेटा अभी तो बोल रहे थे अभी इससे भी वस्त्र मांगना पड़ेगा क्या हो गया ! हाय मेरा यसा पर आज किसने उजाड़ (रोती हुई शेळ्या रोहिताश्व का मरना लिये आती है।) दिया ! हाय मेरी कोख में किस ने आग लगा दी ! हाय शै.-- (रोती हुई) हाय ! बेटा जब बाप ने छोड़ | मेरा कलेजा किसने निकाल लिया ! निष्णा दिया तब तुम भी छोड़ नाले ! हाय हमारी विपत और चिल्लाकर रोती है) हाय लाल कता गए ! अरे अब में बुटौती को और भी तुम मे न देखा ! हाय ! हायरल किसका मुंह देख के गीगी रे ! हाय अब मा कहके हमारी कोन गति होगी! (रोती है) मुझको कौन पुकारेगा! अरे आव किस थैरी की छाती ह.-- हाय ! हाय ! इसके पति ने भी इसको छोर ठंडी भई रे ! अरे तेरे सकभार अंगों पर भी काल को दिया है। हा! इस तस्विनी को निष्करण विधि ने शनिक दवा न आई! भर बेटा आँख खोलों! हाय में बड़ा ही रख दिया है सब विपत तुम्हारा ही मुंह देखकर सहली थी सो अब .-(रोती हुई) हाय बेटा ! अरे आज मुझे कैसे जीती रहोगी ! अरे लाल एक बेर तो बोलो (राती किसने जूट लिया ! हाय मेरी बोलती चिड़िया कहा उड है) गई ! हाय अष में किसका मुंह देख के जीऊंगी ! हाय ह.-न जाने क्यों इसके रोने पर मेरा कोजा मेरी अपी को लकरी कीन छीन ले गया ! हाय मेरा फटा जाता है। ऐसा संदर खिलोना किसने तोर राला! और बेटा ने तो शै.- (रोती हुई) हा नाथ ! अरे अपने गोद के मरे पर भी सर लगता है ! हायर ! अरे बोलता क्यों | खेलाए बच्चे को यह दशा क्यों नहीं देखते ! हाय! अरे नहीं : बेटा जल्दी धोत, देख मा कब की पुकार रही है ! तुम ने तो इसको हमें सौपा था कि इसे अच्छी तरह बच्चा त तो एक ही दफे पुकारने में दौड़कर गले से पालना सो हमने इसकी यह दशा कर दी! हाय! भरे लपट जाता था. आज क्यों नहीं बोलता! से समय में भी भाकर नहीं सहाय होते ! भला एक (शव को बारबार गले लगाती, देखती और चूमती है। पर लड़के का मुह तो देख जाओ! अरे में किस के .- हाय हाय ! इस दुखिया के पास तो खड़ा मरोमे अब जीऊगी। नहीं इञा जाता। ह.- हाय हाय ! इसकी बातों से प्राण मुह को शै.-(पागल की भांति) यह क्या हो रहा है। चले आते है और मालूम होता है कि संसार उलटा बेटा कसा गए हो आओ जल्दी ! अं अंकले इस मसान जाता है । यहां से हट को (कुछ दूर हटकर उसकी में मुझे डर लगती है यहां मुझ को कौन ले आया है रे ! और देखता खड़ा हो जाता है)। पेटा जल्दी आओ । क्या कहते हो. में गुरु को फूल लेने शै.-रोती हुई) सय ! यह विपत का समुद्र गया था वहा काले सांप ने मुझे काट लिया ! हाय हाय कहा से उमड़ पड़ा! अरे छलिया मुझे छलकर कहा रे! कहाँ काट लिया ' अरे कोई दौड़ के किसी | भाग गया ! (देखहर) अरे आयुस की रेखा ले इतनी गुनी को बुलाओ जो जिलाचे बच्चे को । अरे वह साप लम्बी है फिर अभी से यह वन कहां से टूट पड़ा ! अरे कहा गया! हम को क्यों नहीं काटता काटरे काट, प ऐसा सुंदर मुंह, बड़ी २ आख, लम्बी लम्बी भुजा, चोड़ी क्या उस सुकभार बच्चे ही पर बल दिखाना था ? हमें छाती, गुलाब सा रंग ! हाय मरने के तुझ में कौन से काटा । हाय हम को नहीं काटता । भर दिया तो कोई लच्छन थे जो भगवान ने तुझे मार डाला ! हाय लाल! साप वाप नहीं है, मेरे लाल भूठ बोशना कब से अरे पड़े २ जोतसी गुनी लोग तो कहते थे कि तुम्हारा सीखे हाय हाय में इतना पुकारती और तम खेलना बेटा बड़ा प्रतापी चक्रवर्ती राजा होगा, बहुत दिन जोयेगा, नहीं छोड़ते " बेटा गुरूजी पुकार रहे हैं उनके होम की । सो सब भूल निकला ! हाय ! पोथी. पत्रा, पूज पाठ, 'बेला निकली जाती है। देखो बड़ी देर से वह | अन, जप होम, कुछ भी काम न आया ! हाय तुम्हारे तुम्हारे आसरे बैठे हैं। दो जल्दी इनको दुव और | बाप का कठिन पुत्र भी तुम्हारा सहाय न भया और तुम सत्य हरिश्चन्द्र ४०१