पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५

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या हित तरु को चिन्ह पद पुरवत रस को सोय ।३ यहाँ कल्पतरू सों अधिक भक्त मनोरथ दान । वृक्ष चिन्ह निज पद धरत यातें श्री भगवान 1४ श्री गोपीजन-मन-बिहँग इहाँ करै विनाम । या हित तरु को चिन्ह पद धारत हैं घनश्याम ।५ केवल पर-उपकार-हित वृक्ष-सरिस जग कौन । तातें ताको चिन्ह पद धारत राधा-रौन ।६ प्रम-नयन-जल सों सिंचे सुद्ध चित्त के खेत । बनमाली के चरन में वृक्ष चिन्ह येहि हेत ७ पाहन मारेहु देत फल सोइ गुन यामै जान । वृक्ष-चिन्ह श्रीकृष्ण-पद पर-उपकार-प्रमान ।८ बाण के चिन्ह को भाव वर्णन सब कटाक्ष ब्रज-जुबति के बसत एक ही ठौर । सोई बान को चिन्ह है कारन नहिं कछु और ।१ गृह के चिन्ह को भाव वर्णन केवल जोगी पावहीं नहिं यामैं कछु नेम । या हित गृह को चिन्ह जिहि गृही लहैं करि प्रेम ११ मति ड्रबौ भव-सिंधु मैं यामैं करी निवास । मानहु गृह को चिन्ह पद जनन बोलावत पास ।२ शिव जू के मन को मनहुँ महल बनाये स्याम । चिन्ह होय दरसत सोई हरि-पद कंज ललाम ।३ गृही जानि मन बुद्धि को दंपति निवसन हेत । अपने पद कमलन दियो दयानिकेत निकेत ।४ अग्निकुंड के चिन्ह को भाव वर्णन श्री वल्लभ हैं अनल-वपु तहाँ सरन जे जात । ते मम पद पावत सदा येहि हित कुंड लखात ।१ श्री गोपीजन को बिरह रह्यौ जौन श्री गात । एक देस में सिमिट सोइ अग्निकुंड दरसात ।२ मत तपि कै मम चरन मैं क्वथित धान सम होइ । तब न और कछु जन चहै अग्निकुंड है सोइ ।३ जग्य-पुरुष तजि और को को सेवै मतिमंद । अग्निकुंड को चिन्ह येहि हित राख्यौ ब्रजचन्द ।४ सर्प चिन्ह को भाव वर्णन निज पद चिन्हित तेहि कियो ताको निज पद राखि । काली-मदन-चरन यह भक्त्त-अनुग्रह-साखि ।१ नाग-चिन्ह मत जानियो यह प्रभु-पद के पास । भक्त्तन के मन बाँधिबे हित राखी अहि पास 1२ श्री राधा के बिरह मैं मति त्रि-अनिल दुख देइ । सर्प-चिन्ह प्रभु सर्वदा राखत हैं पद सेइ ।३ याकी सरनन दीन जन सर्पहि' आवहु धाय । सर्प-चिन्ह एहि हेतु पद राखत श्री ब्रजराय ।४ सैल चिन्ह को भाव वर्णन सत्य-करन हरिदास वर श्री गिरिवर को नाम । सैल-चिन्ह निज चरन मैं राख्यो श्री घनस्याम ।१ श्री राधा के बिरह में पग पग लगत पहार । सैल-चिन्ह निज चरन मैं राख्यौ यह विचार २ श्री गोपालतापिनी श्रुति के मत से चरण-चिन्ह वर्णन परम ब्रह्म के चरन मैं मुख्य चिन्ह ध्वज-छन । ऊरध अध अज लोक सों सोई द्वै पद अत्र ११ ध्वजा दंड सो मेरु है बन्यो स्वर्णमय सोय । सूर्य-चंद्र की कांति जो ध्वज पताक सो होय ।२ आत पत्र को चिन्ह जोइ ब्रहमलोक सो जान । येहि बिधि श्रुति निरनै करत चरन-चिन्ह परमान ।३ रथ बिनु अश्व लखात है मीन चिन्ह द्वै जान । धनुष बिना परतंच को यह कोउ करत प्रमान ।४ मिलि कै चिन्हन को भाव वर्णन दो चिन्ह को मिलि कै वर्णन तहाँ हाथी के और अंकुश के चिन्ह को भाव वर्णन काम करत सब आपु ही पुनि प्रेरकहू आप । या हित अंकुश-हस्ति दोउ चिन्ह चरन गत पाप ।१ तिल और यव के चिन्ह को भाव वर्णन देव-काज अरू पितर दोउ याही सों सिधि होइ । याके बिन कोउ गति नहीं येहि हित तिल-यव दोइ ।१ देव-पितर दोउ रिनन सो मुक्त होत सो जीव । जो या पद को सेवई सकल सुखन को सीव १२ कुमुद और कमल के चिन्ह को भाव वर्णन राति दिवस दोउ सम अहै यह तो स्वयं प्रकास । या हित निसि दिन के दोऊ चिन्ह कृष्ण-पद पास ।१ तीनि चिन्ह को मिलि कैवर्णन तहाँ पर्वत, कमल और वृक्ष के चिन्ह को भाव वर्णन श्री कालिंदी कमल सों गिरि सों श्री गिरिराज । श्री वृन्दाबन वृक्ष सों प्रगटत सह सुख साज ।१ भक्त सर्वस्व ५