पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५०

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प्रेम योगिनी melo अपूर्व नाटिका है। पहले इसके दो दृश्य लिखे गये थे। जिसमें पहले में" काशी के बदमाशो" और "बुरे चाल के लोगो का वर्णन है । और दूसरे मे काशी की प्रशंसा करते हुए यहां देखने योग्य स्थान और योग्य महात्माओं का वर्णन है। दोनों दृश्य हरिश्चद्र चंद्रिका खण्ड १संख्या ११ और खण्ड २सं.३,७ सन् १८७४ में प्रकाशित हुए थे। फिर यही काशी के छायाचित्र अर्थात काशी के दो बुरे भले फोटोग्राफ नाम से चंद्रिका से उद्धृत हो हरिप्रकाश प्रेस, बनारस से प्रकाशित हुए। सं. प्रेमजोगिनी उसको नहीं कहते ? क्या माता पिता के सामने पुत्र की नाटिका स्त्री के सामने पति की और बन्धुओं के सामने बन्धुओं श्रीहरिश्चन्द्रलिखिता की मृत्यु उसकी इच्छा बिना ही होती है । क्या सज्जन लोग विद्यादि सुगुण से अलंकृत होकर भी उसके इच्छा. बिना ही दुखी होते हैं और दुष्ट मूखों के अपमान सहते नान्दी मंगलपाठ करता है- हैं, केवल प्राण मात्र नहीं त्याग करते पर उनकी सब भरित नेह नवनीर नित बरसत सुरस अथोर । गति हो जाती है, क्या इस कमलवनरूप भारत भूमि जयति अपूरब घन कोऊ लखि नाचत मन मोर ।। को दुष्ट गजों ने उसकी इच्छा बिना ही छिन्न भिन्न कर और भी दिया ? क्या जब नादिर चंगेज खाँ जैसे ऐसे निर्दयों ने जिन तृन सम किय जानि जिय कठिन जगत बंजाल । लाखों निर्दोषी जीव मार डाले तब वह सोता था ? क्या जयतु सदा सो ग्रंथ कवि प्रमजोगिनी बाल ।। अब भारतखंड के लोग ऐसे कापुरुष और दीन उसकी (मलिन मुख किए सूत्रधार और पारिपार्श्वक आते हैं) इच्छा के बिना ही हो गए ? हा ! (आंसू बहते हैं लोग सु.- (नेत्र से आँसू पोंछ और ठंडी सांस कहते हैं कि ये यह उसके खेल हैं । छि : ऐसे निर्दय भरकर) हा! कैसे ईश्वर पर विश्वास आवै । को भी लोग दयासमुद्र किस मुंह से पुकारते हैं ? पा.- मित्र आज तुम्हें क्या हो गया है और क्या पा.-इतना क्रोध एक साथ मत करो। यह बकते हो और इतने उदास क्यों हो । संसार तो दु:ख रूप आप ही है इसमें सुख का तो (नेत्र से जल की धारा बहती है और रोकने से भी नहीं केवल आभास मात्र है। पा.- (अपने गले में सूत्रधार को लगाकर और | बखेड़ा बनाने कहा था और पचड़ा फैलाने कहा था सू.-आभासमात्र है तो फिर किसने यह आँसू पोंछकर) मित्र आज तुम्है हो क्या गया है ? यह क्या सूझी है ? क्या आज लोगों को यही तमाशा उसपर भी न्याव करने और कृपालु बनने का दावा दिखाओगे। (आँख भर आती है)। सू.- हो क्या गया है क्या मैं झूठ कहता पा.- आज क्या है किस बात पर इतना क्रोध हूँ-इससे बढ़कर और दु:ख का विषय क्या होगा किया है भला यहाँ ईश्वर का निर्णय करने आये हौ कि कि मेरा आज इस जगत के कर्ता और प्रभु पर से नाटक खेलने आए हो? विश्वास उठा जाता है और सच है क्यों न उठे यदि सू.- क्या नाटक खेलें क्या न खेलें ले इसी कोई हो तब न उठे हा ! क्या ईश्वर है तो उसके यही खेल ही में देखो । क्या सारे संसार के लोग सुखी रहें काम है जो संसार में हो रहे हैं । क्या उसकी इच्छा के और हम लोगों का परम बन्धु पिता मित्र पुत्र सब बिना भी कुछ होता है ? क्या लोग दीनबन्धु दयासिन्धु नावनाओं से भावित, प्रेम की एकमात्र मूर्ति, सत्य का भारतेन्दु समग्र ४०६ रुकती ।)