पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५२

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दो गुजराती आयो । 3 रामचन्द्र नायक ठी ठी बहुत भवा दुइ चार कवित्त बनाय लिहिन बस होय चुका । छ.- अरे कवित्त तो इनके बापौ बनावत रहे कवित्त बनावे से का होथे और कवित्त बनावना कुछ अपने लोगन का काम थोरे हय ई भाँटन का काम है। पहिला गर्भाक मा.-ई तो हई है पर उन्हें तो जैसी सेखी है कि स्थान-मंदिर का चौक सारा जमाना मूरख है और मैं पंडित थोड़ा सा कुछ पढ़ (फपटिया इधर उधर घूम रहा है) बढ़ लिहिन हैं। म.-आज अभी कोई दरसनी परसनी नहीं आयें छ.- पढ़िन का है पढ़ा वढ़ा कुछ भी नहिनी, और कहाँ तक अभहिंन तक मिसरो नहीं आयें अभहीं एहर ओहर की दुइ चार बात सीख लिहिन किरिस्तानी तक नींद न खुली होइहैं । खुले कहाँ से आधी रत तक मते की अपने मारग की बात तो कुछ जनबै कतै अबहीं बाबू किहाँ बैठ के ही ही ठी ठी करा चाहै, फिर सबेरे कल के लड़का हैं । नोंद कैसे खुले। मा.-और का। (दोहर माथे में लपेटे आँखें मलते मिश्र आते (बालमुकुन्द औ मलजी आते हैं) देखकर) दोनो- (छक्कू की ओर देखकर । जय झ.--का हो मिसिरजी तोरी नींद नहीं खुलती श्रीकृष्ण बाबू साहब । देखो शंखनाद होय गवा मुखिया जी खोजत रहे । छ.- जय श्रीकृष्ण, आओ बैठो कहो नहाय मि.-चले तो आई थे ; अधियै रात के शंखनाद होय तो हम का करें तोरे तरह से हमहू के घर में से बा.-जी भय्याजी का तो नेम है कि बड़े सबेरे निकस के मंदिर में घुस आवना होता तो हम नहा कर फूलघर में जाते है तब मंगला के दर्शन जल्दी अउते । हियाँ दारानगर से आवना पड़त है । करेक तब घर में जायकर सेवा में नहाते हैं और अबहीं सुरजौ नाहीं उगे। मैं तो आज कल कार्तिक के सबब से नहाता हूँ तिस झ.--भाई सेवा बड़ी कठिन है, लोहे का चना पर भी देर हो जाती है रोकड़ मेरे जिम्मे काकाजी चाबए के पड़थै, फोकटै थोरे होथी । ने कर रखा है इससे बिध बिध मिलाते देर हो जाती मि.-- भवा चलो अपना काम देखो । (बैठ गया) | है फिर कीर्तन होते प्रसाद बँटते व्यालू वालू कूर्ते (स्नान किये तिलक लगाये दो गुजराती आते हैं) बारह कभी एक बजते हैं । पहिला-मिसिरजी जय श्रीकृष्ण कहो का छ.- अच्छी है जो निबही जाय कहो कातिक समय है। नहाये बाबू रामचंद जाये कि नाही ! मि.

- अच्छी समय है मंगला की आधी समय है बा.- क्यों जाते क्यों नहीं अब की दोनों भाई

बैठो। जाते हैं कभी दोनों साथ कभी आगे पीछे कभी इनके प.- अच्छा मथुरादासजी वैसी जाओ । (बैठते साथ मसाल कभी उनके मुझको अकशर करके जब मैं जाता हूँ तब वह नहाकर आते रहते हैं। (धोती पहिने १ धोती ओढ़े छक्कूजी आते हैं और उसी छ.-मसाल काहे ले जाथै मेहरारुन का मुंह बेस से माखनदास भी आये) देखै के? छ- (माखनदास की ओर देखकर) काहो बा.--(हंसकर) यह मैं नहीं कह सकता । माखनदास एहर आयो । छ.-को मलजी आज फूलघर में नाहीं गयो मा.- (आगे बढ़कर हाथ जोड़कर) जैसी किष्ण हिंअई बैठ गयो? साहब । म.-आज देर हो गई दर्शन करके जाऊंगा। छ. जै श्रीकृष्ण बैठो कहो आजकल गबू छ.- तोरे हियां ठाकुर जी आगे होहिहे कि रामचंद का क्या हाल है। मा.-- हाल जौन है, तौन आप जनतै हौ, दिन म.-जागे तो न होंगे पर अब तैयारी होगी मेरे। दना रात चौ गूना । अभई कल्हो हम ओ रस्ते रात के हियाँ तो स्त्रियाँ जगाकर मंगल भोग धर देती हैं । फिर आवत रहे तो तबला ठनकत रहा । बस रात दिन हा हा जब मैं दर्शन करके जाता हूँ तो भोग सराकर आरती नाही? भारतेन्दु समग्र ४०८