पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५३

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06 ध.- कर्ता हैं। चरणामृत लगाए ही जे में पलक बाजी खूब चले, हाँ छ.-कहो तोसे रामचंद से घोलाचाली है कि एक पलक एहरो। नाही? ब.-- (हँसकर) भाई साहेब अपने तो वैष्णव म.-बोलचाल तो हैं पर अब यह बात नहीं है आदमी हैं. वैष्णविन से काम रक्खित है। आगे तो दर्शन करने का सब उत्सवों पर बुलावा आता घ..- तो भला महाराज के कबौं समर्पन किए है था अब नहीं आता तिस्में बड़े साहब तो ठीक ठीक, कि नाही. छोटे चित्त के बड़े खोटे हैं। ब. कौन चीज? (नेपथ्य में घ. अरे कोई चौकाली ठुल्ली मावड़ी पामरी गरम जल की गागर लाओ। ठोली अपने घरवाली। झ.-- (गली की ओर देखकर जोर से) अरे कौन ब. अरे भाई गोसाइन पर तो ससुरी सब आपै जलरिया है एतनी देर भई अभहीं तोरे गागर लिआवै भहराई पड़ थी पवित्र होवै के वास्ते, हमका पहुँचैंबै । की बखत नाही भई ? सड़सी से गरम जल की गगरी ध.-गुरु इन सबन का भाग बड़ा तेज है, मालो उठाये सनिया लपेटे जलघरिया आता है) लूटे मेहररुवो लूटै । झ. कहो जगेसर ई नाही कि जब शंखनाद ब.-भाई साहब, बड़ेन का नाम बेचपैं और इन होय तब झटपट अपने काम से पहुँच जावा करो। सबन में कौन लच्छन हैं. न पढ़ना जाने न लिखना, ज.- अरे चल्ले तो आवधई का महराय पड़ी का रात दिन हा हा ठी ठी यै है कि और कुछ ? सुत्तल थोड़े रहली हमहूँ के झापट कंधे पर रख के एहर और गुरु इनके बदौलत चार जीवन के ओहर घूमै के होत तब न । इहाँ तो गगरा ढोवत ढोवत और चैन है एक तो भट दूसरे इनके सरबस खवास कधा छिल जाला । (यह कहकर जाता है) तिसरे बिरकत और चौथी बाई । (मैली धोती पहिने दोहर सिर में लपेटे. टेकचंद आए) ब.-कुछ कहे की बात नाहीं है । भाई मंदिर में टे.- (मथुरादास की ओर देखकर) कहो मथुरा रह से स्वर्ग में रहै । खाए के अच्छा पहिरै के परसादी दास जी रुडा छो? से महाराज कब्बौं गाढ़ा तो पहिरबै न करियें, मलमल म.- हाँ साहेब. अच्छे हैं । कहिए तो सही आप | नागपुरी ढाँके पहिरियै. अतरै फुलेल केसर परसादी इतने बड़े उच्छव में कलकत्ते से नहीं आए । हियां बड़ा | बीड़ा चाभो सब से सेवकी ल्यौ, ऊपर से ऊ बात का सुख हुआ था. बहुत से महाराज लोग पधारे थे । षट सुख अलगै है। रुत छपन भोग में बड़े आनंद हुए। क्या कहै भाई साहब हमरो जनम हियई टे. .- भाई साहब, अपने लोगन का निकास घर से बड़ा मुसकिल है । येक तो अपने लोगन का रेल के ब. अरे गुरु गली गली तो मेहरारू मारी सवारी से बड़ा बखेड़ा पड़ता है. दुसरे जब जौन काम के | फिरथीं तौहें एह पर रोने बना है । अब तो मेहरारू टके बास्ते जाओ जब तक ओका सब इन्तजाम न बैठ जाय सेर है । अच्छे अच्छे अमीरनौ के घर की तो पैसा के तब तक हुँवा जाए से कौन मतलब है और कौन सुख तो वास्ते हाथ फैलावत फिरथी । भाई साहब श्री गिरिराज जी महाराज के आगे जो जो घ.- तो गुरु हम तो ऊ ताार चाही थे जहाँ से देखा है सो अब सपने में भी नहीं है । अहा ! वह श्री गोविंदराय जी के पधारने का सुख कहाँ तक कहे । ब.-भाग होय तो ऐसियो मिल जायं । देखो (धनदास और बनितादास आते हैं) लाडली प्रसाद के और बच्चू के ऊ नागरनी और ध.-कहो यार का तिगयौ ? बम्हनिया मिली है कि नाही! ब.-भाई साहेब, बड़ी देर से देख रहे हैं. कोई ध.- गुरु, हियों तो चाहे मुड़ मुड़ाये हो चाहे मुंह पच्छी नजर नाहीं आया । में एक्को दाँत न होय पताली खोल होय. पर जो हथफेर ध.-भाई साहेब, अपनो तो ऊ पच्छी काम का दे सो काम की। जे भोजन सोजन दुनो दे। ब.- तोहरी हमरी राय ई बात में न मिलिये 1 ब.- तोहरे सिद्धांत से भाई साहेब हमारा काम (रामचन्द्र ठीक इन दोनों के पीछे का किवाड़ तो नहीं चलता। खोलकर आता है) ध. तबै न सुरमा घुलाय के आँख पर छ.- (धीरे से मुंह बना के) ई आएँ । (सब

प्रेम योगिनी ४०९ होता । उलटा हमै मिले।