पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५५

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आई। यार लोग तो रोजे कड़ाका करथें ऐ दौड़े बंदर बने मुछंदर कुर्दै चढ़े अगासी ।। पैजामा । घाट जाओ तो गंगापुत्तर नोचै दै गल फाँसी । ग.-ई तो झूठ कह्यौ, सिंहा, करें घाटिया बस्तर-मोचन दे देके सब झाँसी ।। भू.-तू सच बोल्यो, मामा ।। राह चलत भिखमंगे नौचैं बात करें दाता सी। ग-तौहैं का, तू मार पीट के करधौ अपना मंदिर बीच मॅडेरिया नोचैं करै धरम की गाँसी । कामा ।। सौदा लेत दलालो नोचे देकर लासालासी । कोई का खाना, कोई की रंडी, कोई का पगड़ी जामा ।। माल लिये पर दुकानदार नोचैं कपड़ा दे र ।। भू-ऊ दिन खीपट दूर गए अब सोरहो दंड चोरी भए पर पूलिस नोचें हाथ गले बिच एकासी । गए कचहरी अमला नोचै मेचि बनावें घसी।। ग भूखे पेट नहिं सुतत. ऐसी है ई कासी ।। फिरै उचक्का दे दे धक्का लूटै माल मवासी । भू-जब से आए नए मजिस्टर तब से आफत कैद भए की लाज तनिक नहिं बे-सरमी नंगा सी ।। साहेब के घर दौड़े जावें चंदा देहि निकासी । जान छिपावत फिरीथै खटमल - चढ़े बुखार नाम मंदिर का सुनतहि होय उदासी ।। दू.-ई तो सच है भाई ।। घर की जोरू लड़के भूखे बने दास औ दासी । दाल की मंडी रंडी पूजै मानो इनको मासी ।। भू-ई है ऐसा तेज गुरू बरसन के देथै लदाई । आप माल कचरौं छानै उठि भोरहिं कागाबासी । गोविन पालक मेकलौडो से एकी जबर दोहाई ।। बाप के तिथि दिन बाम्हन आगे धरै सडा औ बासी ।। जान बचावत छिपत फिरीथै घुस गई सब बदनामी । आप माल कचरै छानै उठि भोरहिं कागाबासी । ग-भूखे पेट कोई नहिं सुतत, ऐसी है ई बाप के तिथि दिन बाम्हन आगे धरै सड़ा औ बासी ।। कासी ।। करि बेवहार साक बांधै बस पूरी दौलत दासी । घालि रुपैया काढ़ि दिवाला माल डेकारै ठांसी ।। तोरे आँख में चरबी छाई माल न पायो गोजर । काम कथा अमृत सी पी समुझै ताहि बिलासी । कैसी दून की सूझ रही है असमानों के उप्पर ।। रामनाम मुंह से नहिं निकसै सुनतहि आवै खांसी ।। जन न भए हो पैदा करके, घर के माल चुतरे तर । देखी तुमरी कासी भैया, देखी तुमरी कासी । बछिया के बाबा, पैडिया के ताऊ, मू-कहो ई सरवा अपने शहर की एतनी निन्दा धुसनि के घुसघुस झरझर ।। कर गवा तूं लोग कुछ बोलत्यौ नाही? कहां की ई तूं बात निकास्यो खासी सत्यानासी ।। ग भैया, अपना तो जिजमान है अपने न भूखे पेट तो कोइ नहिं सुतता, ऐसी है ई कासी ।। बोलेंगे चाहे दस गारी भी दे ले । (गाता हुआ एक परदेसी आता है) भं-अपनो जिजमाने ठहरा । द. और अपना भी गाहके है प- देखी तुमरी कासी, लोगो, देखी तुमरी कासी । और भाई हमहूँ चार पैसा एके बदौलत जहाँ विराज विश्वनाथ विश्वेश्वरजी अविनासी ।। पावा । आधी कासी भाट भेडेरिया बाम्हन औ संन्यासी । झू.- तूं सब का बोलबो तूं सब निरे दब्बू चप्पू आधी कासी रंडी मुंडी रॉड खानगी खासी ।। हौ, हम बोलवै । (परदेसी से) ए चिड़ियाबावली के लोग निकम्मे भंगी गंजड़ लुच्चे बे-बिसवासी । परदेसी फरसी । कासी की बहुत निन्दा मत करो मुंह महा आलसी झूठे शुहदे बे-फिकरे बदमासी ।। बस्सैये का कहै के साहिब मजिस्टर हैं नाहीं तो निंदा आप काम कुछ कभी करै नहिं कोरे रहैं उपासी । करना निकास देते। और करे तो हंसें बनावै उसको सत्यानासी ।। प.-निकास क्यों देते ? तुमने क्या किसी का अमीर सब झूठे और निंदक करें घात विश्वासी । ठीका लिया है? सिपारसी डरपुकने सिट्ट बोलें बात अकासी ।। झू- हाँ हाँ, ठीका लिया है मटियाबुर्ज । मैली गली भारी कतवारन सड़ी चमारिन पासी । प-तो क्या हम झूठ कहते हैं ? नीचे नल से बदबू उबले मनो नरक चौरासी ।। भू-राम राम तू भला कबौं झूठ बोलबो तू तो कुत्ते भुंकत काटन दौडै सड़क सांड सों नासी ।। निरे पोथी के बेठन हो। MAK प्रम योगिनी ४११ 29 1