पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४५९

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पड़ता। जोबन मदमाती झलझलाती हुई बारबिलासिनी काशी चलें तो सही। देवदर्शन वैद्य ज्योतिषी गुणीगृहगमन जार मिलन वि.पं.-आप लाहोर क्यों गए थे। गानभावण उपवनभ्रमण इत्यादि अनेक बहानों से सु-(लंबी साँस लेकर) कुछ न पूछिए योंही राजपथ में इधर-उधर झूमती घूमती नैनों के पटे सैर को गया था। फेरती बिचारे दीन पुरुषों को ठगती फिरती हैं। और कहाँ तक कहैं काशी काशी ही है। काशी सी नगरी द.-(सुधारकर से) का गुरु। कुछ पंडितजी से तैलोक्य में दूसरी नहीं है। आप देखिएगा तभी बोहनी बाड़े का तार होय तो हम भी साथै चलूंचैं। जानिएगा बहुत कहना व्यर्थ है। सु-तार तो पंडितवाड़ा है कुछ विशेष नहीं जान वि.प.- वाह वाह ! वाह ! आपने वर्णन से मेरे द.-तब भी फोक सऊड़े का मालवाड़ा । कहाँ चित्त का काशी दर्शन का उत्साह चतुर्गुण हो गया । यो तो मैं सीधा कलकत्ते जाता पर अब काशी बिना देने तक न लेऊचियै । कहीं न जाऊंगा । आपने तो ऐसा वर्णन किया मानों सु.- अब जो पलते पलते पले । चित्र सामने खड़ा कर दिया । कहिए वहाँ और कौन वि.--यह इन्होंने किस भाषा में बात की कौन गुणी और दाता लोग हैं जिनसे मिलूं । सु.- यह काशी ही की बोली है, ये दलाल हैं, सु- मैं तो पूर्व ही कह चुका है कि काशी गुणी | सो पूछते थे कि पंडितजी कहाँ उतरेंगे । और धनियों की खान है यद्यपि यहाँ के बड़े बड़े पंडित वि.- तो हम तो अपने एक सम्बन्धी के यहाँ जो स्वर्गवासी हुए उनसे अब होने कठिन हैं. तथापि नीलकंठ पर उतरेंगे। अब भी जो लोग है दर्शनीय और संस्मरणीय हैं । फिर ठीक है. पर मैं आपको अपने घर अवश्य इन व्यक्तियों के दर्शन भी दुर्लभ हो जायेंगे और यहाँ के ले जाऊंगा। दाताओं का तो कुछ पूछना ही नहीं। चूड़ की वि.- हाँ हाँ इसमें कोई संदेह है ? में अवश्य कोठीवालों ने पंडित काकाराम जी के ऋण के हेतु एक चलूंगा। साथ बीस सहन मुद्रा दी । राजा पटनीमल के बाँधे (स्टेशन का घंटा बजता है और जवनिका गिरती है। धर्मचिन्ह कर्मनाशा का पुल और अनेक धर्मशाला, इति प्रतिच्छवि-वाराणसी नामक तीसरा गांक कएँ, तालाब, पुल इत्यादि भारतवर्ष के प्राय : सभी समाप्त हुआ । तीर्थों पर विद्यमान हैं । साह गोपालदास के भाई साह भवानीदास की भी ऐसी उज्ज्वल कीर्ति है और भी दीवान केवलकृष्ण, चम्पतराय अमीन इत्यादि बड़े बड़े दानी इसी सौ वर्ष के भीतर हुए हैं । बाबू राजेन्द्र मित्र की बाँधी देवी पूजा गुरु दास मित्र के यहाँ अब भी बड़े प्रथम अंक धूम से प्रतिवर्ष होती है । अभी राजा देवनारायणसिंह चतुर्थ गर्भाक ही ऐसे गुणज्ञ हो गए हैं कि उनके यहाँ से कोई खाली स्थान- हाथ नहीं फिरा । अब भी बाबू हरिश्चंद्र इत्यादि बुभुक्षित दीक्षित की बैठक गुणग्राहक इस नगर की शोभा की भाँति विद्यमान हैं । (बुभुक्षित दीक्षित, गप्प पंडित, रामभट्ट, गोपालशास्त्री, अभी लाला बिहारीलाल और मुंशी रामप्रताप जी ने चंबूभट्ट. माधव शास्त्री आदि लोग पान बीड़ा खाते और कायस्थ जाति का उद्धार करके कैसा उत्तम कार्य भाँग बूटी की तजबीज करते बैठे हैं ; इतने में महाश किया । आप मेरे मित्र रामचंद्र ही को देखिएगा । कोतवाल अर्थात निमंत्रण करनेवाला आकर चौक में से उसने बाल्यावस्था ही में लक्षावधि मुद्रा व्यय कर दी दीक्षित को पुकारता है) है । अभी बाबू हरखचंद मरे हैं जो एक गोदान नित्य करके जलपान करते थे । कोई भी फकीर यहाँ से खाली महाश-काहो, बुभुक्षित दीक्षित आहेत ? नहीं गया । दस पंद्रह रामलीला इन्हीं काशीवालों के बुभुक्षित- (इतना सुनते ही हाथ का पान व्यय से प्रति वर्ष होती हैं और भी हजारों पुण्यकार्य यहाँ रखकर) कोण आहे ? (महाश आगे बढ़ता है) वाह हुआ ही करते हैं। आपको सबसे मिलाऊँगा आप महाश तु आहेश काय ? आय बाबा आज किति ब्राह्मण प्रम योगिनी ४१५