पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४६१

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गप्प पडित देते हैं) गप्प पडित- क्यों महाश! इस सभा में कोई अच्छा, जो होय मुझे उसके गौड पंडित भी हैं वा नहीं । नाम से क्या काम । व्यक्ति मैंने जानी परन्तु माधव जी महाश- हाँ पंडित जी, वह बात छोड़ दीजिए, आप कहते हैं और मुझसे उनसे भी पूर्ण परिचय है और इसमें तो केवल दाक्षिणात्य द्राविण और क्वचित तैलंग उनको उनका नाम सच शोभता है, परंतु भाई वे तो बड़े भी होंगे, परन्तु सुना है कि जो इसमें अनुमति करेंगे वे आढ्य मान्य हैं और कंजूस भी हैं - और क्या तुमसे भी अवश्य सभासद होंगे । उनसे मित्रता मुझसे अधिक नहीं है । यहाँ तक गप्प पडित- इतना ही न, तब तो मैंने शयनासन तक वे तुमको परकीय नहीं समझते । पहिले ही कहा है, माधव शास्त्री ! अब भाई यह सभा माधव शास्त्री-पंडित जी ! वह सर्व ठीह है, दिलवाना आपके हाथ में है। परंतु अब वह भूतकालीन हुई । कारण 'अति सर्वत्र माधव-हाँ पंडित जी, मैं तो अपने शक्त्य वज्येत'- नुसार प्रयत्न करता हूँ, क्योंकि प्राय : काका धनतुंदिल बुभु.- हाँ पडित जी ! अब क्षण भर इधर बूटी शास्त्री जो कुछ करते हैं उसका सब प्रबंध मुझे ही सौंप को देखिए. लीजिए । (एक कटोरा देकर पुन : दूसरा देते हैं । (कुछ ठहर कर) हाँ. पर पंडित जी, अच्छा स्मरण हुआ, आपसे और न्यू फांड (New fond) गप्प पंडित-वाह दीक्षित जी, बहुत ही शास्त्री से बहुत परिचय है, उन्हीं से आप प्रवेश बढ़िया हुई। कीजिए, क्योंकि उनसे और काका जी से गहरी मित्रता चंबूभह- (सब को बूटी देकर अपनी पारी आई देखकर) हाँ हाँ दीक्षित जी, तिकड़ेच खतम करा मी गप्प पंडित- क्या क्या शास्त्री जी ? न्यू - आज कल पीत नाहीं। क्या ? मैंने यह कहीं सुना नहीं । गोपाल माधव-काँ भट जी! पुरे आतां हे गोपाल-कभी सुना नहीं इसी हेतु न्यू फांड । नखरे कुठे शिकलात, या - प्या - हवेने व्यर्थ थंडी गप्प पंडित-मित्र ! मेरा ठट्टा मत करो। होते। मैं यह तुम्हारी बोली नहीं समझता । क्या यह चंबूभ- नाहीं भाई मी सत्य सांगतो, भला किसी का नाम है ? मुझे मालूम होता है कि कदाचित सोसत नाहीं । तुम्हाला माझे नखरे वाटतात पण हे यह द्रविड़ त्रिलिंग आदि देश के मनुष्य का नाम होगा । प्राय : इथले काशीतलेच आहेत. वा अपल्या क्योंकि उधर की बोली मैंने सुनी है उसमें मूर्दन्य वर्ण सारख्यांच्या परम प्रियतम सफेत खड़खड़ीत उपर्णा प्राय : बहुत रहते हैं 1 पाँघरणार अनाथा बालानींच शिकविलेन बरें। माधव शास्त्री-ठीक पंडित जी. अब आप (सब आग्रह करके उसके पिलाते हैं। का तर्कशास्त्र पढ़ना आधा सफल हुआ । अस्तु ये इधर महाश-का गुरु दीक्षित जी अब पलेती ही के हैं जो आपके साथ रामनगर गये थे, जिन्होंने घर जमविली पाहिजे । में तमाशेवाले की बैठक की थी- बुभु. हाँ भाई, घे तो बंटा आणि लाव तर एक गप्प पंडित- हाँ हाँ, अब स्मरण हुआ, परन्तु दोन चार । उनका नाम परोपकारी शास्त्री है और तुम क्या भांड महाश-(इतने में अपना पान लगाकर खाता है कहते हो? और दीक्षित जी से) दीक्षित जी, १५ ब्राह्मण ठोक्याच्या गोयाल शास्त्री- वह पंडित जी, भांड नहीं कमर्यात पाटवा, दाहा बाजता पाने मांडलो जातील, कहा फांड कहा – न्यू फांड अर्थात नये शौखीन । आणि आज रात्री बसंतपूजेस १० ब्राह्मण लवकर सारांश प्राचीन शौखीन लोगों ने जो जो कुछ पदार्थ पाठवा कारण मग दूसरे तड़ाचे ब्राह्मण येतील (ऐसा उत्पन्न किए. उपभुक्त किये उन ही उनके उच्छिष्ट कहता हुआ चला जाता है) पदार्थ का अवलंबन करके वा प्राचीन रसिकों की चाल बुभु.- (उसको पुकारते हुए जाते हैं) महाश ! चलन को अच्छी समझ हमको भी लोक वैसा ही कहे दक्षिणा कितनी ? (महाश वहीं से चार अंगुली दिखाकर आदि से खींच खींच के रसिकता लाना, क्या शास्त्री जी गडा कहकर गया । ऐसा न इसका अर्थ? माधव- दीक्षित जी! क्या कहीं बहरी ओर माधव शास्त्री-भाई, मुझे क्यों नाहक चलिएगा? इसमें डालते हो गोपाल- (दीक्षित से) हाँ गुरु, चलिए आज प्रम योगिनी ४१७

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