पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४६२

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1 बड़ी वहाँ लहरा है। गप्प पंडित-ठीक शास्त्रि जी, अब मेरे ध्यान बुभु.-भाई बहरीवर मी जाऊन इकडचा में पहुंचा, आजकल शंखोध्यारा का बड़ा माहात्म्य है । बन्दोबस्त कोण करील? भला घर पर यह अब कहाँ सुनने में आवेगा ? क्योंकि गोपाल–ओ: गुरु इतके १५ ब्राह्मणात इसमें धराऊ विशेषण दिया है घबड़ावता । सर्वभक्षास सांगीतले ब्राह्मण जे झाले । गोपाल- आ: हमारा माधव शास्त्री जहाँ है न्यू फांड की पत्ती हैं। वहाँ सब कुछ ठीक ही होगा, इसका परम आश्रय गप्प पंडित क्या परोपकारी की पत्ती हैं ? | प्राणप्रिय रामचंद्र बाबू आपके विदित है कि नहीं ? खाली पत्ती दी है कि और भी कुछ है ? नाहीं तो मैं भी | उसके यहाँ ये सब नित्य कृत्य हैं । चलूं । गप्प पंडित- रामचंद्र हम ही को क्या परंतु माधव शास्त्री-पत्ती क्या बड़ी बड़ी लहरा | मेरे जान प्राय : यह जिसको विदित नहीं ऐसा स्वल्प ही है, एक तो बड़ा भारी प्रदर्शन होगा और नाना रीति के निकलेगा । विशेष करके रसिकों को; उसको तो मैं नाच, नए नए रंग देख पड़ेगे । खूब जानता हूँ। गप्प पंडित क्यों शास्त्री जी मुझे यह बड़ा गोपाल- कुछ रोज हमारे शास्त्री जी भी थे. आश्चर्य ज्ञात होता है और इससे परिहासोक्ति सी देख परंतु हमारा क्या उनका कहिए ऐसा दुर्भाग्य हुआ कि पड़ती है । क्योंकि उसके यहाँ नाच रंग होना सूर्य का अब वर्ष वर्ष दर्शन नहीं होने पाता । रामचंद्र जी तो पश्चिमाभिमुख उगना है। इनको अपने भ्राते के समान पालन करते थे और इनसे गोपाल-पंडित जी ! इसी कारण इनका नाम बड़ा प्रेम रखते थे । अस्तु सारांश पंडित वहाँ रामचंद्र न्यू फांड है । और तिस पर यह एक गुह्य कारण से जी के बगीचे में जायगे । वहाँ सब लहरा देख पडेगी होता है । वह मैं और कभी आप से निवेदन करूंगा, वा और इस मिस से तो भी उनका दर्शन होगा । मार्ग में - बुभु.- अरे पहिले नवे शौखिनाचे इथे जाऊं बुभु.- (सर्वभक्ष नाम अपने लड़के को सब तिथे काय आहे हे पाहूं आणि नंतर रामचंद्राकड़े व्यवस्था कहकर आप पान पलेती और रस्सी लोटा और एक पंखी लेकर) हाँ भाई मेरी सब तैयारी है माधव शास्त्री-अच्छा तसेच होय आजकल माधव गोपाल–चलिए पंडित जी जैसे ही | न्यू फाड शास्त्री यानी ही बहुत उदारता घरली आहे धनतुदिल शास्त्री जी के यहाँ पहुंचेंगे । (सब उठकर बहुत सी पाखरे ही चारली आहेत तो सर्व दृष्ट्रीस बाहर आते हैं। पड़तील पण भाई भी आँत यायचा नाहीं । कारण चंबूभट्ट-मैं तो भाई जाता हूँ क्योकि संध्या मला पाहून त्यांना त्रास होतो । समय हुआ है । (चला जाता है) गोपाल-अच्छा तिथ वर तर चलशील आगे गप्प पंडित-किधर जाना पड़ेगा ? देखा जायगा। माधव शास्त्री- शंखोध्यारा क्योंकि (सब जाते हैं और जवनिका गिरती है) आजकल श्रावण मास में और कहाँ लहरा? धराऊ (इति) कजरी, श्लोक, लावनी, ठुमरी, कटौवल, बोली ठोली घिस्सधिसद्धिज कृत्य विकर्तनी नाम चतुर्थ गांक सब उधर 1 1 ।। प्रथम अंक समाप्त हुआ ।। भारतेन्दु समग्र ४१८