पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४६३

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विषयस्य विषमौषधम् पहली बार यह नाटक" हरिश्चंद्र चंद्रिका" सं. ३सं. १० अक्टूबर सन् १८७६ ई. मे प्रकाशित हुआ। इसके शीर्षक के ऊपर प्राप्त लिखा था। जिसमें लगता है कि यह शीर्षक किसी दूसरे लेखक का रहा होगा। सं. क्या हुआ. होय । . विषस्यविषमौषधम् देते ? राजा होता है प्रभु और "कर्तुमकर्तुमन्यथाकतुं (भाण) समर्थ : प्रभुः" यह प्रभु का लक्षण है, उनकी बकरी थी परतिय-रत रावन दध्यौ, पर-धन-रत तिमि कंस । चाहे जिस घाट पानी पिलाया । हम तो अपने नौकरों से राम कृष्ण जय सूर ससि, करन मोह अधधंस ।।१।। रात दिन जो चाहते हैं काम लेते हैं । और फिर सुख भी (भण्डाचार्य आता है) तो हिंदुस्तान में तीन ही ने किया, एक मुहम्मदशाह ने भण्डाचार्य- (लम्बी सांस लेकर) दूसरे वाजिद अली शाह ने तीसरे हमारे महाराज ने । 'पर नारी पैनी छुरी, ताहि न लाओ अंग । मुहम्मदशाह के जमाने में नादिरशाही हुई, वाजिदअली रावनहू को सिर गयो, पर नारी के संग ।।१।। से लखनऊ ही छूटा, अब देखें इन की कौन गति होती हमारी दशा भी अब रावण की हुआ चाहती है, तो | है। इस का तो यही फल है, पर फिर कौर इस रंग में नहीं है, बड़े बड़े ऋषि मुनि राजा महाराज नए रावन ने दस सिर दिए, जनक-नन्दनी-काज । पुराने सभी तो इस में फंसे हैं । अहा स्त्री वस्तु भी जौ मेरो इक सिर गयो, तो यामें कह लाज ।।३।। ऐसी ही है। देखो पर-स्त्री संग से चन्द्रमा यद्यपि लांच्छित हैं तो पुरुष जनन के मोहन को विधि यंत्र विचित्र बनायो है । भी जगत को आनन्द देता है वैसे ही (मोछों पर हाथ काम अनल लावन्य सुजल बल जाको बिरचि चलायो है। फेरकर) हम बड़े कलंकित सही पर हमी इस नगर की कमर कमानी बार तार सो सुन्दर ताहि सजायो है । शोभा हैं । भला दुष्ट बाबाभट्ट क्या हुआ तुम ने हमारा धरमघड़ी अस रेलहु सों बढ़ि यह सबके मन भायो है।। सब भेद खोल दिया. इस भेद खुलने पर भी हम ने तुम्हें और कृष्णाबाई दोनों को न छकाया तो मेरा नाम यह तो कल के अर्थ में यंत्र हुआ अब हिन्दुस्तानी भण्डाचार्य नहीं । अब भी क्या खंडेराव का राज्य है | तन्त्र का यन्त्र वर्णन सुनिए । कि पहलवानों की पूछ होगी अब तो जो कुछ हमी लोग | पुरुष जनन के मोहन को यह मंगल यन्त्र बनायो है । हैं (ऊपर देखकर)) क्या कहा कि 'इसी उपद्रव से न कामदेव के बीच मन्त्र सों अंकित सब मन भायो है ।। यह गति हुई किसकी किसकी ? महाराज मल्हार राव ग्रहण दिवारी कारी चौदस सानी रात जगायो है। की ? ए भाई जरा हाल तो कहे जाओ (ऊपर देखकर) | सिद्ध भयो सब को मन मोहत नारी नाम धरायो है ।। हैं चला गया, कौन गति हुई, इनता तो हमने भी सुना (ऊपर देखकर) क्या कहा ? इसी यंत्र के अनुष्ठान था कि कुछ दिन हुए एक खबीसन आई थी, क्या जाने का न यह फल हुआ कि सिर पर इतनी सारी जबाबदेही कौन साहेब उसके मालिक थे । उ: अरे वह तो इसी आय पड़ी। किसके किसके ? किसके बल हम कूदते बान पर न आई थी कि महाराज की भेड़ियां उन से | है ! अरे महाराज के ? क्या हुआ (ऊपर देखकर) क्या अच्छी तरह नहीं चराई जातीं, तो फिर इस से क्या ? कहा ? 'तुमको क्या नहीं मालूम' हमको यहां तक तो अपनी नाक ठहरी चाहे जिधर फेर दिया । और फिर | मालूम है कि पहिले एक कमीशन आया था और फिर उस का प्रबन्ध करने तो उनके साढ़े तीन नातेदार आए कुछ आया के आया जाया की गड़बड़ सुनी थी । छि: न थे एक दादा दूसरा भाई तीसरा पति (नौरा) और | छि : स्त्री ऐसी ही वस्तु है उस पर भी कुमारी । बिजली आधी जीजी, क्या उन से भी कुछ न हुआ (ऊपर | को घन का पच्चड़ । स्त्री और बिजली जिससे छू गई देखकर) क्या कहा, होता कहां से मलहर जी कुछ वह गया (ऊपर देखकर) क्या कहा 'गया भी ऐसा कि करने देते तब तो । अजी बावले हुए हो करने क्या । फिर न बहुरैगा' अरे कौन कौन ? क्या कहा ? वही HOKAR -MURS विषयस्य विषमौवधम ४१९