पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४६५

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मलहर ने बिगाड़ कर लिया । ठीक है ठीक है अरे । सनद लेली और इधर गोबिन्दा ने महाजी सेधिया के भाई अपने हिन्दुस्तानियों का चाल व्यवहार जितना | पूना आने पर उनके द्वारा सनद पायी । इसी बखेड़े में हिन्दुस्तानी समझेंगे उतना और कोई क्या समझेगा ? माणिकराव आपही मर गया तब भी नाना ने गोबिन्द को वरच ऐसे मामलों का अन्त सार हिन्दुस्तानी ही पहिली नजर दिए बिना जाने न दिया, देखो इन्हीं लोग जानते हैं, "सहवासी विजानीयत चरितंसह अँगरेजों ने पहिले तै हुई बात के विरुद्ध समझ कर उस वासिन :" । हाय ! ऐसे बड़े वंश की यह दुर्दशा ! समय गोविन्दा की सहायता की और नाना को समझाया सच है, कुपुत्र बुरा होता है । इनका पुरखा दमाजी कि सालपी में जो तै हो चुका है उसके बरखिलाफ अब गायकवाड़ कैसा प्रतापी था, जिसके बल से पेशवा नया तापी के दक्षिण का मुल्क बिचारे गोविन्दा से क्यों रघुनाथराव निशंक रहता था । सन् १९६८ में जब मांगते हो और इन्हीं के बदौलत बिचारा गोबिन्दा सन माधवराव रघुनाथराव से जूती उछली थी तो इसी १७९२ दिसम्बर को १९ तारीख को राजा हुआ और दमा ने अपने बेटे गोविन्दराव को भेजा था । सुना है कि सन १७९९ मै बम्बई के गवर्नर डंकन साहब से दमा के ४ बेटे थे, बड़ा, पर छोटी रानी से तो सियाजी मिलकर शिष्टाचार करके सूरत का चौथाई हिस्सा और छोटा, पर बड़ी रानी से गोविन्दराव । सब से छोटकी चौरासी परगना दिया (ऊ. दे.) क्या कहा ? हाँ कुछ रानी से फते सिंह और माणिक जी । यही गोविन्दराव | बड़ोदा का हाल और भी कहो ? सुनो, हम तो इस वंश बाप के मरने पर साढ़े पचास लाख रु. देकर हर साल के पुराने पुरोहित हैं सब शाखोच्चार करें । हां तो उनहत्तर हजार रुपया और तीन हजार सवार, समय सबसे पहिले गोबिन्दा राज गद्दी पर बैठे. फिर आबा पड़े पांच हजार देने के करार पर सैना खास खेल हुआ | शेलूकर जो नाना के साथ कैद में पड़ा था सो सेंधिया को (ऊपर देख कर) क्या कहा ? फतेसिंह भी तो लड़ा दस लाख रु. देकर छूटा और अहमदाबाद का हाकिम था ? हां सिया जी को राजा बनाकर लड़ता भिरता रहा, हुआ, बाजीराव ने गोबिन्दराव से और उससे बिगाड़ पर बाजीराव ने पेशवा होकर गोविन्दराव को पक्का न कराया जिससे इन दोनों में रात दिन धौल धप्पड़ होती कर दिया, वरञ्च हरिफड़ के चयव के समय फौज | रही पर डंकन साहब से गोविन्दराव से मेल होने से लेकर आप बड़ौदे गया और गोविन्दराव को राजा बनाया। आबा मन्द पड़ गया, बिचारा गोबिन्दराव १८१० सन् सरि ही ने तो इन दोनों की कलह मिटाई थी जिसमें तै में मर गया, कूछ मल्हारराव की पुरुषार्थी नहीं है 1 कर दिया था कि २६ लाख रु. तो तीन महीने में गोबिन्दराव के उस समय से यह बात है क्योंकि वह गायकवाड़ पेशवा रघुनााथ को दे और पेशवा उसको दश चार औरस और ७ दासी पुत्र छोड़ गए थे, आनन्दराव लाख की दक्षिण में जागीर दे और दो लाख तेरह हजार सब में बड़ा था उसी को राजवाले मालिक समझते थे की जमीन गायकवाड़ सर्कार को दे (ऊ. दे.) क्या कहा ? कभी कर्नल गाड ने बड़ोदे का भी तो कुछ पर वह बुद्धिमान नहीं था इससे दूसरे हिस्सेदारों ने अपना तार जमाना चाहा गोबिन्दराव ने दूसरे लड़के हिस्सा ले लिया था ? हा फतेसिंह ने कुछ गड़बड़ कान्हों जी को फसादी जानकर अपने सामने से कैद किया था पर उस पर कर्नल गाड ने हुमायूं का जहर ले किया था । पर पीछे आनन्दराव से बहुत मिन्नत करके लिया था (ऊपर देखकर) क्या कि फिर क्या हुआ? और फौज के अफसरों को बीच में डालकर छूटा और फिर यह तै हुआ कि मायी नदी के उत्तर की पृथ्वी | मुख्य दीवान हुआ पर उस पर संतोष न कर के सारे पेशवा फतेसिंह ले और सरि को भरोच अठाविशी के राज पर सत्ता बढ़ाने लगा अन्त में रावजी आपा परभू अठाइसो परगने, शिनोर परगना और कुछ जमीन पुराने कारिन्दे ने प्रबल होकर उसको पदच्युत किया । मिलै । यह फतेसिंह नानाफड़नवीस के दौर दौरा में इन दोनों ने सर्कार से सहायता चाही । जिस में साढ़े पंद्रह लाख रु. दीवान को देकर सैना खास खेल | कान्होजी ने पुराने करार के सिवाय चिखली का परगना हुआ । बिचारा सन् १७९१ ई. में गिर कर मर गया देने को कहा । आनन्दराव और उसके दीवान आपा की और उस का छोटा भाई मानिक जी सिया जी को नांव मदद को सात हजार अरब सवार थे क्योकि आपा का का राजा बना कर राज चलाने लगा । पर गोविन्द राव भाई बाबा जी उनका सरदार था, कान्होवा का पक्षपाती .ने. जो तब खेड़े गांव में पूने के पास रहता था, पेशवा से | कड़ी का जमीदार मल्हारराव गायकवाड़ था और यह कहा कि हमारा राज अब हम को मिलै । यह सुनतेही | मनुष्य शूर चतुर था, इसने आनन्दराव के राज में जब माणिक जी ने तैतीस लाख तेरह हजार रूपया नजर बहुत उपद्रव किया और बहुत से किले भी ले लिए तब | और ३८ लाख की बाकी देकर फड़नवीस से राज की आपा ने बम्बई के गवर्नर को मदद के वास्ते लिखा और Son विषयस्य विषमौवधम् ४२१