पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४६६

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'पाँच पल्टन इस शर्त पर मांगी कि उन का खर्च वह वाले कहते थे कि हम ने जो बहुत से पेशवा के काम देगा । बम्बई के गवर्नर ने बिना गवर्नर जेनरल से पूछे | किए हैं उसके बदले हमी को अभी कुछ चाहिए, पूरी मदद कैसे दें यह सोचकर मेजर बाकर साहब की गंगाधरशास्त्री पट्टवर्धन को गायकवाड़ ने साकर की मुहतमी में १६०० आदमी भेजे जो आनन्दराव पल्टन रक्षा में पेशवा के यहां भेजा । पेशवा ने कछु बात ते से मिल के कड़ी पर चढ़ दौड़े । उस समय मल्हारराव नहीं की और शिष्टाचार में लगा कर शास्त्री को लेकर ने, मुझ से चूक हुई हम सब फेर देंगे, यह कह के मेल अपने सलाही त्रिंवक जी डेगला के साथ पंडरपुर गया का पैगाम डाला । पर उस के जी में छल था । इसी से और वहां छल से १८१५ की चौदहवीं जुलाई को जब ये लोग बेखबर थे तब छापा मारा पर बाकर साहब शास्त्री को किसी सिपाही से मरवा डाला । सरकार ने की बुद्धिमानी से फौज बच गई । थोड़े दिन में मालूम इस बात पर अत्यन्त क्रोध किया और चारों ओर से हुआ कि मल्हार ने आनन्दराव के बहुत से लोग मिला पेशवा पर फौज भेजी जिस से पेशवा ने अन्त में हार कर लिए जिस से वाकर साहब को उस समय अपनी रक्षा त्रिवक को सरकार के हवाले किया और आगे से के सिवा और कुछ न सूझी और बम्बई कुमक भेजने को बड़ोदावालों को छेड़ने का हाथ उठाया । हाय ! यह लिखा । एप्रिल को २३ तारीख को बम्बई से कुछ वही बड़ोदा है जिस पर सरकार की सदा से ऐसी छाया लोगों को मदद आ गई और वे लोग खाई खोद कर कड़ी रही। का किला घेर कर पड़े रहे । गायकवाड़ और सरि की (ऊपर देख कर) क्या कहा 'हां कहे चलो' जाने दो फौज ने मिल कर कड़ी जीत लिया जिस में ११३ इन पुराने पचड़ों को लेकर कौन रोवै पर भाई आर्चसन सर्कारी आदमी मरे, मल्हारराव सर्कार के आधीन हुआ साहब ने अपने अहदनामों में लिखा है कि खंडेराव और और सवा लाख रु. साल नरियाद की आमदनी में से मल्हारराव के सिवाय पीलजी गायकवाड़ के असली और देकर वहीं उस को नजरबन्द रखा और कड़ी का किला नसली वंश में और कोई नहीं है ; तब मल्हारराव का गायकवाड़ के अधिकार में आया । मल्हारराव का वंश राज पर बैठने से रोका जाय यह तनिक अनुचित पक्षपाती गणपतराव गायकवाड़ बड़ोदे के पास लड़ता | मालूम होता है । अनुचित काहे को है सन् १८०२ में था सो संकरे के किले में बन्द हुआ । सर्कार ने वह जो अहदनामें हुए हैं उनमें तो सर्कार को गायकवाड़ की किला भी छीन लिया और गणपतराव और गोविन्दराव | खानगी बातों में बिलकुल अधिकार है । फिर यह रोना का दासीपुत्र मुरारराव ये दोनों धार भाग गए और वहां क्या । हम तो जानते हैं कि जब मल्हारराव ने के पवार राजा के आश्रय में रहे, थोड़े दिन पीछे अरब लक्ष्मीबाई से विवाह किया तभी से उसकी बड़ी बहिन लोगों ने अपनी तनखाह न मिलने के बहाने बड़ा उपद्रव दरिद्राबाई भी इनके ताक में भी और समय पाकर किया आनन्दराव को कैद कर लिया और कान्होवा को अपनी बहिन के पास आ गई । शास्त्रों में लिखा है कि कैद से छोड़ दिया । मेघर बाकर ने पहिले तो उन्हें लक्ष्मी दरिद्रा दोनों बहिन है । पर भाई ! यह कन्या बहुत समझाया फिर दस दिन तक खूब लड़े और अन्त फली नहीं मुद्राराक्षस की विषकन्या हो गई । अत्त भी में जब किले की दीवार तोड़ा तब अरब लोगों ने हार कर तो बड़ी हुई । सुना है कि जब महाराज शहर के अमीरों मेल करना चाहा । इस लड़ाई में अच्छे अच्छे अंग्रेजी के घर में जाते थे तो उनके डर के मारे औरतें कुएँ में सरदार मारे गए । सवा सत्रह लाख तनखाह बाकी उतारी जाती थीं । क्या हुआ सनातन से चली आई है । देकर इस करार कर मेल हुआ कि वे लोग अपने देश या अग्नि वर्ण भी तो ऐसा ही था। राज के बाहर चले जायं । उस में बहुत तो चले गए पर 'अंकमंकपरिवर्तनोचिते तस्य निन्यतुरशून्यताभुभे । आबू जमादार राज पिपली गांव में कान्होवा से जा बल्लकींच हृदयंगमस्वना वल्गुवागपिच वामलोचना'। मिला । कान्होवा ने फिर मार धाड़ लूट खसोट शुरु और नहीं तो क्या । या बगल मा महाताब हो या की, पर अन्त में होभ्स साहब से हार कर उज्जैन में जा आफताब या साकी हो या शराब । मला रावन इन से रहा । हां हां इस के सिवा एक बात और भी है । एक बढ़ के था कि ये रावन के बढ़ के ? एक बात में ये दफे बड़ोदा के वकील बाप मैराल को बाजीराव ने कहा रावन से बढ़ गये कि ऐसे काल में और सरकार के कि बड़ौदा वालों के यहां हमारा एक करोड़ा रुपया राज्य में इन्होंने ऐसा उपद्रव किया ! धन्य भारत बाकी है । सो उसमें से सत्रह लाख हम छोड़ देते हैं | भूमि ! तुझै ऐसी ही पुत्र प्रसव करने थे । हाय ! बाकी इनसे दिलवा दो । बाजीराव ने केवल दगाबाजी मुहम्मदशाह और वाजिदअलीशाह तो मुसलमान हो के से बड़ोदे पर हाथ डालने को यह युक्ति की थी, बड़ोदे छूटे मल्हारराव का कलंक हिन्दुओं से कैसे भारतेन्दु समग्र ४२२