पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४७

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स्वस्तिक सों पुनि शांत को रस नित करत उदोत । कर-पद-मुख आनंदमय प्रभु सब रस की खान । ताते नव रस चिन्ह यह धारत पद भगवान ७ दस चिन्ह को मिलि कै वर्णन तहाँ वेणु, शंख, गज, कमल, यव, रथ, गिरि, गदा, वृक्ष, मीन को भाव वर्णन बेनु बढ़ावत श्रवन को, शंख सुकीर्तन जान । गज सुमिरन को कमल पद, पूजन कमल बखान ।१ भोग रूप यव अरचनहि, बंदन गिरि गिरिराज । गदा दास्य हनुमान को, सख्य सारथी-साज ।२ तर तन मन अरपन सबै, प्रेम लक्षना मीन । दस बिधि उद्दीपन करहि भक्ति चिन्ह सत तीन ।३ मत्स्य, अमृत-कुंभ, पर्वत, वज्र, छत्र, धनुष, बान, वेणु, अग्निकुंड और तरवार के चिन्ह को एक मैं वर्णन प्रगट मत्स्य के चिन्ह सों विष्णु मत्स्य अवतार । अमृत-कृभ सो कच्छ है भयो जो मथती वार ११ पर्चत सो बाराह भे धरनि-उधारन-रूप । बज्र चिन्ह नरसिंह के जे नख बज-सरूप ।२ बामन जू है छन्न सों जो है बटु को अंग । परशुराम धनु चिन्ह है गए जो धन के संग ।३ वान चिन्ह सौ प्रगट श्री रामचंद्र महराज । बेनु-चिन्ह हलधर प्रगट व्यूह रूप सह माज ।४ अग्निकंड सों बुध भए जिन मख निंदा कीन । कलकी असि मों जानिये म्ौच्छ-हरन-परवीन १५ भीर परत जब भक्त पर तब अवतारोह लेत । अवतारी श्रीकृष्ण पद दसौ चिन्ह एहि हत । ग्यारह चिन्ह को मिलि के वर्णन तहाँ शक्ति, अग्निकुंड, हाथी, कुंभ, धनुष चंद्र, जव,वृक्ष, त्रिकोण, पर्वत, सर्प को भाव वर्णन श्रीतनु नवधा भक्तिमय सोइ नवकोन लखाइ । वृक्ष महावट वृक्ष है रहत जहाँ सुरराइ ।५ नेत्र रूप वा शुल को रूप त्रिकोनहि जान । पर्वत सोइ कैलास है जहँ बिहरत भगवान ।६ सर्प अभूखन अंग के कंकन मैं वा सेस । एहि बिधि श्री शिव बसहि नित चरन माहि सुभ बेस ।७ को इनकी सम करि सकै भक्तन के सिरताज । आसुतोष जो रीझि कै देहिं भक्ति सह साज । जिन निज प्रभु कों जा दिवस आत्म-समर्पन कीन । चंदन-भूषन-बसन-भष-सेज आदि तजि दीन ।९ भस्म-सर्प-गज-छाल विष परबत माहि निवास । तबसों अंगीकृत कियो तज्यो सबै सुखरास ।१० अन्य मत से चिन्हन को रंग वर्णन स्वस्तिक पीवर वर्ण को, पाटल है अठ-कोन । स्वेत रंग को छन्त्र है, हरित कल्पतरु जौन ।१ स्वर्ण वर्ण को चक्र है, पाटल जव की माल । ऊरध रेखा अरुण है, लोहित ध्वजा विसाल ।२ बज बीजुरी रंग को, अंकुश है पुनि स्याम । सायक त्रय चित्रित बरन, पद्म अरुण अठ-धाम ।३ अस्व चित्र रंग को बन्यौ, मुकुट स्वर्ण के रंग । सिंहासन चित्रित बरन, सोभित सुभग सुढंग ।४ व्योम चवर को चिन्ह है नील वर्ण अति स्वच्छ । जब अगष्ठ के मूल मैं पाटल वर्ण प्रतच्छ ।५ रेखा पुरुषाकार है पाटल रंग प्रमान । ये अष्टादश चिन्ह श्री हरि दहिने पद जान । जे हरि के दक्षिन चरन ते राधा-पद वाम । कृष्ण वाम पद चिन्ह अब सुनह विचित्र ललाम ।७ स्वेत रंग को मत्स्य है, कलश चिन्ह है लाल । अर्ध चंद्र पुनि स्वेत है. अरुण त्रिकोण बिसाल 1८ स्याम बरन पुनि जंबु फल, काही धनु की रेख । गोखुर पाटल रंग को शंख श्वेत रंग देख ।९ गदा स्याम रंग जानिये, बिंदु चिन्ह है पीत । खंग अरुन षटकोन, जम दंड श्याम की रीत ।१० त्रिबली पाटल रंग की पूर्ण चंद्र घृत रंग । पीत रंग चौकोन है पृथ्वी चिन्ह सुढंग ।११ तलवा पाटल रंग के दोउ चरन के जान । कृष्ण वाम पद चिन्ह सो राधा दक्षिन मान ।१२ या विधि चौतिस चिन्ह हैं जुगल चरन जल जात । छाडि सका भव-जाल को भजौ याहि हे तात ।१३, श्री स्वामिनी जी के चरण चिन्ह के भाव वर्णन श्री शिव हरि-वरन में करत सर्वदा बास । आयुध भूषन आदि सह ग्यारह रूप प्रकास । शक्ति जानि गिरि-नंदिनी परम शक्ति जो आप । अग्निकट तीजो नयन अथवा धूनी थाप ।२ गज जानौ गज को चरम धरन जाहि भगवान । कभ गंग-जल को कही रहत सीस अस्थान ।३ धनप पिनाहि मानियै सब आयुध को ईस । चंद्र नानि चूड़ारतन जेहि धारन शिव सीस १४ भक्त सर्वस्व ७