पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४८

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कुसुम चिन्ह श्रीराधिका धारत यह मति मोर २ नेत्र कमल के छप्पय कीरतिमय सौरभ सदा या सों प्रगटित होय त्रि चक्र ध्वज सता पुष्प कंकण अंबुज पुनि । हित चिन्ह सुपुष्प को रहयो चरन-तल सोय ।१ अंकुश ऊरध रेख अर्ष ससि यव आएँ गुनि । 'पाश गा रथ यज्ञवेदि अरु कुडल जानी । पाय पलोटन मान में चरन न होय कठोर । बहुरि मत्स्य गिरिराज शंख दहिने पद मानौ । श्रीकृष्ण प्राणप्रिय राधिका चरण चिन्ह उन्नीसवर । सब फल याही सो प्रगट सेजो येहि चित लाय । 'हरिचंद' सीस रावत सदा कलिमल-हर कल्याणकर ।१ पुष्प चिन्ह श्रीराधिका पद येहि हेत लखाय ।३ कोमण पद लखि के पिया कुसुम पाँवड़े कीन । छन्न के चिन्ह को भाव वर्णन सोइ श्रीराधा कमल पद कुसुमित चिन्ह नवीन ।४ दोहा कंकण के चिन्ह को भाव वर्णन सब गोपिन की स्वामिनी प्रगट करन यह अन्न । पिय-बिहार में मुखर सखि पद तर दीनो डारि । गोप-छत्रपति-कामिनी धरौ कमल-पद छन ।। १ कंकन को पद चिन्ह सोइ धारत पद सुकुमारि ।१ प्रीतम-बिरहातप-शमन हेत सकल सुखधाम । पिय कर को निज चरन को प्रगट करन अति हेत । छात्र चिन्ह निज कंज पद धरत राधिका बाम ।। २ मानिनि-पद में वलय को चिन्ह दिखाई देत ।२ यदुपति ब्रजपति गोपपति त्रिभुवनपति भगवान । कमल के चिन्ह को भाव वर्णन तिनहूँ की यह स्वामिनी छत्र चिन्ह यह जान ।३ कमलादिक देवी सदा सेवत पददै चित्त । चक्र के चिन्ह को भाव वर्णन कमल चिन्ह श्रीकमल पद धारत एहि हित नित्त ।१ एक-चक्र ब्रजभूमि में श्रीराधा को राज । अति कोमल सुरुमार श्री चरन कमल है आप । चक्र चिन्ह प्रगटित करन यह गुन चरन विराज ।। के दृष्टि की सोई मानी छाप ।२ मान समें हरि श्राप ही चरन पलोटत आय । कमल रूप वृदा विपिन यसत चरन में सोइ । कृष्ण कमल कर चिन्ह सो राधा-चरन लखाय ।२ अधिपतित्व सूचित करत कमाल कमल पद होइ ।३ दहन पाप निज जनन के हरन हृदय-तम घोर । नित्य चरन सेवन करत विष्णु जानि सुख-सय तेज तत्व को चिन्ह पद मोहन चित को चोर ।३ पादिक अयुधन के चिन्ह सोई पद-पद्य ।४ ध्वज के चिन्ह को भाव वर्णन पद्मादिक सब निधिन को करत पत्र-पद दान । परम विजय सब नियत सो श्रीराधा पद जान । याते पहा-चरन मैं पद चिन्ह पहिचान ।५ अर्ध रेखा के चिन्ह को भाव वर्णन यह दरसावन हेतु पद घ्यन को चिन्ह महान ११ अति सुधो श्री चरन को यह मारग निरपाधि । लता चिन्ह को भाव वर्णन ऊरथ रेखा चरन मैं ताहि लेहु आराधि । पिया मनोरथ की लता चरन बसी मनु आय । शरन गए ते तरहिंगे यह लीक कहि दीन । पाता चिन्ह रे प्रगट सोइ राधा-चरन दिखाय ।१ ऊरष रेखा चिन्ह है सोई चरन नवीन ।२ करि अनय श्रीकृष्ण को रहत सदा निरधार । लाता-चिन्ह एहि हेत सो रहत न बिनु आधार ।२ अंकुश के चिन्ह को भाव वर्णन देवी चा विपिन की प्रगट करन यह बात । बाहु-नायक पिय-मन-सुगज मति औरन पे जाय । खता चिन्ह श्रीराधिका धारत पद-जलजात ।३ या हित अंकुश चिन्ह श्री राधा-पद दरसाय ।१ सकत महोषधि गगन की परम देवता आप । अर्द्ध-चंद्र के चिन्ह को भाव वर्णन सोइ मष रोग महौषधी चरन आता की छाप ।४ | पूरन दस ससि-नखन सो मनहुँ अनादर पाच । लता चिन्ह पद आपके वृक्ष चिन्ह पद श्याम । मनहूँ रेख प्रगदित करत यह संबंध लाम १५ सूचि चंद्र आपो भयो सोई चिन्ह लखाय ।। चरन परत जा भूमि पर तहाँ कुंजमय होत । अ अ-भका कु-रसिक कुटिल ते न सकहिं इत आय । | अर्घ-चंद्र को चिन्ह येहि हेत चरन दरसाय ।२ पाग चिन्ह मानहुँ रहयो लपटि राता आकार । मानिनि के पद-पद्म में बुधजन लेड विचार ।७ | राहु ग्रसै पूरन ससिहि प्रसे न येहि कान्छि पक्र । | अर्ध-चंद्र को चिन्ह है या हित करत समृद्धि । पुष्प के चिन्न को भाव वर्णन अर्ध-चंद्र को चिन्ह पद देखत जेहि शिव-सक्र 1४/ लता चिन्ह श्री कमल पद या हित करत उदोत । निष्काक जग-बंद्य पुनि दिन दिन याकी वृद्धि । भारतेन्दु समग्र ८