पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४९६

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।। माध. हिंडोरा ही नहीं भूलता । हृदय में वाला नहीं क्योंकि संसार में जो कोई नहीं देखता सब प्रीतम को सुलाने के मनोरथ और नैनों में पिया की ऊपर ही की बात देखते हैं । हाय ! मैं तो अपने पराये मूर्ति भी झुल रही है । सखी आज सांवला ही की मेंहदी सब से बुरी बन कर बेकाम हो गई । सव को छोड़ कर और चूनरी पर तो रंग है। देख बिजुरी की चमक में तुम्हारा आसरा पकड़ा था सो तुमने यह गति की । | उसकी मुखछबि कैसी सुन्दर चमक उठती है और वैसे हाय ! मैं किसी की होके रहूं, मैं किस का मुंह देख कर पवन भी बार बार घूघट उलट देता है। देख - जिऊं। प्यारे मेरे पीछे कोई ऐसा चाहने वाला न इलति हिये मैं प्रान प्यारे के बिरह सूल मिलेगा । प्यारे फिर दीया लेकर मुझको खोजोगे । हा फूलति उमंग भरी मूलति हिंडोरे पै । तुमने विश्वासघात किया । प्यारे तुम्हारे निर्दयीपन की गावति रिझावति हंसावति सबन हरि- भी कहानी चलेगी । हमारा तो कपोतव्रत है । हाय स्नेह चंद चाव चौगुनों बढ़ाइ घन घोरे पै लगा कर दगा देने पर भी सुजान कहलाते हो । बकरा वारि वारि डारौं प्रान हंसनि मुरनि बत- जान से गया पर खाने वाले को स्वाद न मिला । हाय रान मुंह पान कजरारे दृग डोरे पै ।। यह न समझा था कि यह परिणाम करोगे । वाह खूब ऊनरी घटामैं देखि दूनरी लगी है आहा निबाह किया । बधिक भी बध कर सुधि लेता है, पर कैसी आजु चूनरी फवी है मुखगोरे पै।। तुमने न सुधि ली । हाय एक बेर तो आकर अंक में चं.-सखियो देखो कैसो अंधेर गजब है कि या लगा जाओ । प्यारे जीते जी आदमी का गुन नहीं मालूम रुत में सब अपनो मनोरथ पूरो करे और मेरी यह होता । हाय फिर तुम्हारे मिलने को कौन तरसेगा और दुरगति होय ! भला काहुवै तो दया आवती । (आंखों में कौन रोवेगा । हाय संसार छोड़ा भी नहीं जाता सब आंसू भर लेती है।) दु:ख सहती है पर इसी में फंसी पड़ी हूं । हाय नाथ ! माध. सखी तू क्यों उदास होय है । हम सब चारों ओर से जकड़ कर ऐसी ऐसी बेकाम क्यों कर कहा करै हम तो आज्ञाकारिणी दासी ठहरी, हमारो का डाली है । प्यारे योंही रोते दिन बीतेंगे । नाथ यह हवस अखत्यार है तऊ हममें सों तो कोऊ कछ्र तोहि नायं मन की मन ही में रह जायगी । प्यारे प्रगट होकर कहै। संसार का मुंह क्यों नहीं बंद करते और क्यों शंका द्वार का.मं.- भलो सखी हम याहि कहा कहेंगी याहू | खुला रखते हौ । प्यारे सब दीनदयालुता कहां गई ! तो हमारी छोटी स्वामिनी ठहरी । प्यारे जल्दी इस संसार में छुड़ाओ । अब नहीं सही विला.- हां सखी हमारी तो दोऊ स्वामिनी जाती । प्यारे जैसी हैं, तुम्हारी हैं । प्यारे अपने कनौड़े हैं । सखी बात यह है कै खराबी तो हम लोगन की है, ये को जगत की कनौड़ी मत बनाओ । नाथ जहां इतने गुन दोऊ फेर एक की एक होयगी । लाठी मारवे सों पानी सीखे वहां प्रीति निबाहना क्यों न सीखा । हाय ! थोरों हूँ जुदा हो जायगो, पर अभी जो सुन पावै कि मंझदार में डुबा कर ऊपर से उतराई मांगते हो, प्यारे ढिमकी सखी ने चन्द्रावलियै अकेलि छोड़ि दीनी तो फेर सो भी दे चुकी अब तो पार लगाओ । प्यारे सब की हद होती है । हाय हम तड़पै और तुम तमाशा देखो । जन माध.- हम्बे बीर । और केर कामहू तौ हमीं | कुटुम्ब से छुड़ा कर यों छितर बितर करके बेकाम देना सब बिगारै । अब देखि कौन नै स्वामिनी सों चुगली यह कौन बात है । हाय सब की आंखों में हलकी हो खाई । हमारेई तुमारे में सों बहू है । सखी चन्द्रावलियै गई । जहां जाओ वहां दूर दूर, उस पर यह गति । हाय जो दु:ख देयगी वह आप दु:ख पावैगी । "भामिनी ते भौंडी करी मानिनी तें मौड़ी करी कौड़ी (आप ही आप) हाय ! प्यारे हमारी यह करी हीरा तें कनौड़ी करी कुलतें" तुम पर बड़ा क्रोध दशा होती है और तुम तनिक नहीं ध्यान देते प्यारे फिर आता है और कुछ कहने को जी चाहता है । बस अब मैं यह शरीर कहां और हम तुम कहां ? प्यारे यह संयोग | गाली दूंगी । और क्या कहूं, बस आप आप ही हो ; को तो अब की ही बना है फिर यह बातें दुर्लभ हो | देखो गाली में भी तुम्हें मैं मभ वाक्य कहूंगी - झूठे, जायेंगी । हाय नाथ ! मैं अपने इन मनोरथों को किस | निय, निर्गुण, निर्दय हृदय कपाट" बखेड़िये और को सुनाऊ और अपनी उमगै कैसे निकालूं । प्यारे रात निर्लज्य ये सब तुम्हें सच्ची गालियां हैं ; भला जो कुछ छोटी है और स्वांग बहुत हैं । जीना थोड़ा और उत्साह | करना ही नहीं था तो इतना क्यों फूठ बके ? किसने बड़ा । हाय ! मुझ सी मोह में डूबी को कहीं ठिकाना | बकाया था ? कूद कूद कर प्रतिज्ञा करने बिना क्या डूबी नहीं । रात दिन रोते ही बीतते हैं । कोई बात पूछने | जाती थी ? झूठे ! झूठे !! झूठे !!! झूठे ही नहीं वरच भारतेन्दु समग्न ४५२ देखो तमासा ।