पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/४९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विश्वासघातक ; क्यों इतनी छात ठोंक और हाथ उठा मेरे सिर की सौंह जो रोवै । उठाकर कर लोगों को विश्वास दिया ? आप ही सब मा.-सखी मैं तेरे हाथ जोई मत रोवै। सखी हम मरते चाहे जहन्नुम में पड़ते, और उस पर तुर्रा यह है सबन को जीव भय आवै है। कि किसी को चाहे कितना भी दुरी देखें आपको कुछ बि. सखी जो तू कहेगी हम सब करेगी । हम घृणा तो आती ही नहीं, हाय हाय कैसे कैसे दुखी लोग भले ही प्रियाजी की रिस सहगी पर तो सूं हम सब काढू हैं - और मजा तो यह है कि सब धान बाइस बात सों बाहर नहीं। पसेरी । चाहे आपके वास्ते दु:खी हो, चाहे अपने मं. हाय हाय ! यह तो मान ही नहीं (आँसू संसार के दु:ख से, आपको, दोनों उल्लू फंसे हैं। इसी पोंछ कर) मेरी प्यारी मैं हाथ जोइँ हा हा खाऊमानि से तो "निर्दय हृदय कपाट यह नाम है । भला क्या जा। काम था कि इतना पचड़ा किया ? किसने इस उपद्रव का.म.-सखी यासों मति कछु कहौ । आओ और जाल करने को कहा था ? कुछ न होता तुम्ही तुम हम सब मिलि के विचार करे जासों याको काम हो । रहते बस चैन था केवल आनन्द था फिर क्यों यह बि.-सखी हमारे तो प्राणताई यापैं निछावर हैं विषमय संसार किया । बखेड़िये । और इतने बड़े पर जो कछू उपाय सूझै । कारखाने पर बेहयाई परलेसिरे की । नाम बिकै, लोग चं.- [रो करसखी एक उपाय मुझे सूझा है जो झूठा कहैं, अपने मारे फिरें, आप भी अपने मुंह झूठे | तुम मानो । बनें, पर वाहरे शुद्ध बेहयाई और पूरी निर्लज्जता । मा. सखी क्यों न मानेगी तू कहै क्यों नहीं । बेशरमी हो तो इतनी तो हो । क्या कहना है लाज को चं.-सखी मुझे यहां अकेली छोड़ जाओ। जूतों मार के पीट पीट के निकाल दिया है। जिस मां.-तौ तू अकेली यहां का करेगी ? मुहल्ले में आप रहते हैं उस मुहल्ले में लाज की हवा चं.-जो मेरी इच्छा होगी। भी नहीं जाती । जब ऐसे हो तब ऐसे हों । हाय एक बेर मां.-भलो तेरी इच्छा का होयगी हमहूं सुने ? भी मुंह दिखा दिया होता तो मतवाले मतवाले बने क्यों चं.-सखी वह उपाय कहा नहीं जाता। लड़ लड़कर सिर फोड़ते । अच्छे खासे अनूठे निर्लज्ज मां.-तौ का अपनी प्रान देगी । सखी हम ऐसी हो, काहे को ऐसे बेशरम मिलेंगे, हुकुमी बेहया हो, भोरी नहीं हैं के तोहि अकेली छोड़ जायंगी । कितनी गाली दूं बड़े भारी पूरे हो, शरमाओगे थोड़े ही बि.- सखी तु व्यर्थ प्राण देन को मनोरथ करै है कि माथा खाली करना सुफल हो । जाने दो – हम तेरे प्राण तोहि न छोड़ेंगे । जौ प्राण तोहि छोड़ जायंगे तो भी तो वैसी ही निर्लज्ज और झूठी हैं । क्यों न हो । इनको ऐसी सुन्दर शरीर फिर कहां मिलैगो । जस दुलह तस बनी बराता । पर इसमें भी मूल का. म.- सखी ऐसी बात हम सू मति कहै, उपद्रव तुम्हारा ही है, पर यह जान रखना कि इतना और जो कहै सो २ हम करिये'को तयार हैं, और या और कोई न कहेगा क्योंकि सिफारशी नेतिनेति कहेंगे, बात को ध्यान तू सपनो हु मै मति करि । जब ताई सच्ची थोड़े ही कहेंगे । पर यह तो कहो कि यह हमारे प्राण है तब ताई तोहि न मरन देयगी पीछे भलेई दुखमय पचड़ा ऐसा ही फैला रहेगा कि कुछ तै भी जो होय सो होय । होगा वा न तै होय । हम को क्या ? पर हमारा तो चं.- [रो कर] हाय ! मरने भी नहीं पाती । पचड़ा छुड़ाओ । हाय मैं किससे कहती हूं । कोई यह अन्याय । सुनने वाला है । जंगल में मोर नाचा किसने देखा । मा.-सखी अन्याय नहीं यही न्याय है। नहीं नहीं वह सब देखता है, वा देखता होता तो अब का मं.- जान दै मधवी वासों मति कछ् पूछ । तक मेरी खबर न लेता । पत्थर होता तो वह भी आओ हम तुम मिल के सल्लाह करें अब का करनो पसीजता । नहीं नहीं मैंने प्यारे को इतना दोष व्यर्थ चाहिए। दिया । प्यारे तुम्हारा दोष कुछ नहीं । यह सब मेरे बि.-'हां माधवी तू ही चतुर है तू ही उपाय कर्म के दोष है । नाथ मैं तो तुम्हारी नित्य की सोच । अपराधिनी हूँ। प्यारे छमा करो । मेरे अपराधों की मां...मेरे जी में तो न भाव है। ओर न देखो अपनी ओर देखो (रोती है) हम तीनि हैं सो तीनि काम बाटि लें । प्यारी जू के मा.. हाय हाय सखियो यह तो रोय रही है। मनाइब को मेरो जिम्मा । यही काम सब में कठिन है। का.म.-सखी प्यारी रोवै मती । सखी तोहि और तुम दो उन मैं सो एक याके धरकेन सों याकी श्री चन्द्रावली ४५३