पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५०

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06 वाम पाद आकास शंखवर धनुष पिछानौ । वाम चरन मैं अग्र सों तजि के अंगुल चार । गोपद त्रिकोन घट चारि ससि मीन आठ एचिन्हवर । बिना प्रतंचा को धनुष सोभित अतिहि उदार । श्रीराधा-रमन उदार पद ध्यान सकल कल्यानकर ।१ मध्य चरन त्रैकोन है अमृत कलश कहुँ देख । पुष्य लता जव वलय ध्वजा ऊरध रेखा वर । द्वै मंडल को बिंदु नभ चिन्ह अन पैं लेख ।७ छत्र चक्र बिधु कलस चारु अंकुश दहिने धर । अर्घ चंद्र त्रैकोन के नीचे परत लखाय । कुंडल बेदी शंख गदा बरछी रथ मीना । गो-पद नीचे धनुष के तीरथ को समुदाय । वाम चरन के चिन्ह सप्त ए कहत प्रवीना । एड़ी पै पाठीन है दोउ पद जंबू-रेख । ऐसे सत्रह चिन्ह-जुत राधा-पद बंदत अमर । दक्षिन पद अंगुष्ठ मधि चक्र चिन्ह को लेख ।९ सुमिरत अघहर अनघवर नंद-सुअन आनंदकर ।२ छन्त्र चिन्ह ताके तले शोभित अतिहि पुनीत । गर्ग-संहिता के मत सों चरण-चिन्ह वर्णन वाम अँगूठा शंख है यह चिन्हन की रीत ।१० जहँ पूरन प्रागट्य तह उन्निस परत लखाइ । दोहा अंश कला मैं एक दै तीन कहूँ दरसाइ ।११ चक्रांकुश यव छत्र ध्वज स्वस्तिक बिंदु नवीन । बाल-बोधिनी तोषिना चक्र-वर्तिनी जान । अष्टकोन पवि कमल तिल शंख कुंभ पुनि मीन ।१ वैष्णव-जन-आनंदिनी तिनको यहै प्रमान ।१२ ऊरधर रेख त्रिकोन धनु गोखुर आधो चंद । चरन-चिन्ह निज ग्रन्थ मैं यही लिख्यो हरिराय । ए उनीस सुभ चिन्ह निज चरन धरत नँद-नंद ।२ विष्णु पुरान प्रमान पुनि पदा-वचन को पाय ।१३ अन्य मत सों श्रीमती जू के स्कंध-मत्स्य के वाक्य सों याको अहे प्रमान । चरन-चिन्ह वर्णन हयग्रीव की संहिता वाहू मैं यह जान ।१४ केतु छत्र स्पंदन कमल ऊरध रेखा चक्र । श्री राधिका-सहस्रनाम के मत सों अर्ध चंद्र कुश बिन्दु गिरि शंख शक्ति-अति वक्र ।१ चिन्ह को वर्णन लानी लता लवंग की गदा बिन्दु दै जान । कमल गुलाब अटा सु-रथ कुंडल कुंजर छत्र । सिंहासन पाठीन पुनि सोभित चरन बिमान ।२ फूल माल अरु बीजुरी दंड मुकुट पुनि तत्र ११ ए अष्टादश चिन्ह श्री राधा-पद में जान । पूरन ससि को चिन्ह है बहुरि ओढ़नी जान । जा कह गावत रैन दिन अष्टादसौ पुरान ।३ नारदीय के बचन को जानहु लिखित प्रमान १२ जग्य युवा को चिन्ह है काहू के मत सोइ । श्री महाप्रभु श्री आचार्य जी के पुनि लक्ष्मी को चिन्हहू मानत हरि-पद कोइ 18 चरण-चिन्ह वर्णन श्रीराधा-पद मोर को चिन्ह कहत कोउ संत । छप्पय द्वै फल की बरछी कोऊ मानत पद कुश अंत ।५ कमल पताका गदा वज्र तोरन अति सुंदर । श्री मद्भागवत के अनेक टीकाकारन के कुसुमलता पुनि धनुष धरत दक्षिन पद मैं वर । ध्वज अंकुश झष चक्र अष्टदल अंबुद मानौ । श्री चरण-चिन्ह को वर्णन अमृत-कुंभ यव चिन्ह वाम पद मैं पुनि जानौ । तैलंग वंश शोभित-करन विष्णु स्वामि पथ प्रगट कर । लाँबो प्रभु को श्री चरण चौदह अंगुल जान । श्री श्री वल्लभ-पद-चिन्ह ये हृदय नित्य 'हरिचंद' धर ।। षट अंगुल बिस्तार मैं याको अहे प्रमान ।१ दक्षिन पद के मध्य मैं ध्वजा-चिन्ह सुभ जान । श्री रामचन्द्र जी के चरण-चिन्ह वर्णन अगुरी नीचे पद्म है, पवि दक्षिण दिसि जान ।२ स्वस्तिक ऊरध रेख कोन अठ श्रीहल-मूसल । अंकुश वाके अग्र है, जव अंगुष्ठ के मूल । अहि वाणांबर वज़ सु-रथ यव कंज अष्टदल । स्वस्तिक काहू ठौर है हरन भक्त-जन-सूल ।३ कल्पवृक्ष ध्वज चक्र मुकुट अंकुश सिंहासन । तल सों जहँ लौं मध्यमा सोभित ऊरध रेख । छत्र चंवर यम-दंड माल यव की नर को तन । ऊरध गति तेहि देत है जो वाको लखि लेख ।४ चौबीस चिन्ह ये राम-पद प्रथम सुलच्छन जानिए । आठ अंगुल तजि अग्र सों तर्जनि अंगुठा बीच । 'हरिचंद' सोई सिय बाम पद बानि ध्यान उर आनिए । अष्टकोन को चिन्ह लखि सुभ गति पावत नीच ।५ सरयू गोपद महि जम्बू घट जय पताक दर । Ot* *AR भारतेन्दु समग्र १० मत सों