पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५०६

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Rec.. आशा-मेरे बात किसी ने भी प्राण दिया है। है सत्यानाश फौजदार को तो भेजो । ले चलो : अभी जिलाती हूँ। (नेपथ्य में से 'जो आज्ञा' का शब्द सुनाई पड़ता है) (दोनों उठाकर भारत को ले जाती है। देखो में क्या करता है। किधर किधर भागेगे । तीसरा अंक (सत्यानाश फौजदार आते है। स्थान -मैदान सत्या. फौं.- (फौज के डेरे दिखाई पड़ते है ! भारतदुदैव ? आता है। हमारा नाम हे सत्यानास । आए है राजा के हम पास ।। भारतदु.-कहाँ गया भारत मूर्ख! जिसको धरके हम जाखों ही भेस । किया चौपट यह सारा देस। अब भी परमेश्वर और राजराजेश्वरी का भरोसा है। नहु हमने फैलाए धर्म । बढ़ाया हुआछूत का कर्म । देखो तो अभी इसकी क्या क्या दुर्दशा होती है। होके जयचंद हमने एक बार । खोल ही दिया हिंदका (नाचता और गाता हुआ) द्वार। अरे! | हलाक चंगेजो तैमूर । हमारे अदना अदना सूर । उपजा ईश्वर कोप से श्री आया भारत श्रीच । दरानी अहमद नादिरसाह । फोज के मेरे तुच्छ सिपाह। छार सार सब हिंद करूं मैं, तो उत्तम नदिनीच । है हममें सीनों कल मल छल । मझे तुम सहज न जानो जी. मुझे इक राक्षस मानो जी। इसी से कुछ नहिं सकती चाल । कौड़ी कौड़ी को करूं मैं सबको मुहताव पिलायेंगे हम खूब शराब । करेंगे सबको आज सराय। भूखे प्रान निफा इनका, तो में सच्चा राय । मुझे. भारतद्-अहा सत्यानाशजी आए । आओ, काल भी लाऊं महंगी लाऊँ, और बुलाऊं रोग । देखो अभी फौज को हुक्म दो कि सब लोग मिल के पानी उलटा कर बरसाऊ, छाऊँ जग में सोग । मुझे. बारों ओर से हिंदुस्तान को घेर ले । जो पहले से घर है | फूट वैर और कलह बुलाऊँ, ल्याऊँ सुस्ती जोर । | उनके सिवा औरों को भी आज्ञा दो कि बढ़ चले । घरघर में आलस फैलाऊँ. माऊँ दुख घनघोर । मुझे. सत्या. पौ.-- महाराव इंद्रजील सन जो कछु काफर काला नीच पुकारूं, तोई पेर' और हाथ । भाषा, सो सब जनु पहिणहि करि राधा । जिनको , इनको संतोष खुशामद, कायरता भी साथ । मुझे. आशा हो हो चुकी है थे तो अपना काम कर ही चुके हैं और | मरी बुलाऊँ देस उजाई. महंगा करके अन्न। जिनको जो हुक्त हो, कर दिया जाय । सबके ऊपर टिकस लगाऊँ, धन है मुझको धन्न । भारतदु.-किसने फिसने क्या क्या किया | मुझे तुम सहजन जानो ची. मुझे इक राक्षस गानो जी।" (नाचला है) सत्या. पी. महाराज! धर्म ने सबके पहिजे अब भारत कहा जाता है. ले लिया है । एक तस्सा सेवा की | बाकी है. अबकी हाथ में वह भी साफ है । भला हमारे रचि बहु विधि के वाक्य पुरानन माहि घुमाए । बिना और ऐसा कोन कर सकता है कि अंगरेजी शेष शाक्त पैष्णव अनेक मत प्रगटि चलाए ।। अमलदारी में भी हिंदू न सुधर : लिया भी तो अंगरजी जाति अनेकन करी नीच अस ऊंच बनायो । से औगुन ! हा हाहा ! कुछ पढ़े लिखे मिलकर देश खान पान संबध सबन सो परजिछुडायो ।। सुधारा चाहते है " हा हहा ! एक चने से भाइ | जन्मपत्र विधि मिले ब्याह नहि होन देत शव । फोड़ेंगे । ऐसे लोगों को नमन करने को में जिले के बालकपन में ब्याहि प्रीतिवल नास कियो सब ।। | जाकिमों को न हुक्म देगा कि इनको डिसलायल्टी में करि कुलान के बहुत व्याह पल बीरज मारयो । पकड़ा और ऐसे लोगों को हर तरह से खारिज करके विधवा याह निषेध कियो विभिचार प्रचार्यो ।। जितना जो बड़ा मेरा मित्र हो उसको उतना बड़ा मेडल | रोकि बिगावतगमन और खिताब दो । है ! हमारी पालिसी के विरुट उद्योग औरन को संसर्ग दाइ प्रचार घटायो ।। कूपमंद्रक करते है. मूर्ख ! यह क्यों ? मै अपनी फौज ही मेज के बहु देवी देवता रसव चौपट करता है (नेपथ्य की ओर देखकर) वर । ईश्वर सो सव विमुख किए हिंन्द्र घबराई ।। १. कूर, अधा किस्तानी आधा मुसलमानी वेष, हाथ में नंगी तलवार लिए। बनायो । भूत प्रेतादि पुजाई । 8 भारतेन्दु समग्र ४६२