पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५०७

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Log भारततु.-आहा! हाहा! शाबाश! शाबाश! गया, बराबरी का झगड़ा उठा, धाय पाय गिनी' हाँ और भी कुछ धर्म ने क्रिया। गई. वर्णमाला कंठ कराई.२ बस हाथी के खाए कैच * सत्या, फौ.-हाँ महाराज। हो गए । धन की सेना ऐसी भागी कि कों में भी न अपरस सोल्हा ठूत रचि, भोजनप्रीति छुड़ाय अची, समुद्र के पार ही शरण मिली । किए तीन तेरह मये. चौका चौका छाब ।। भारतदु.- और मला कुछ लोग छिपाकर मी भारतदु.-और भी कुष्ठ दुश्मनों की ओर भेजे थे? सत्या. पौ.- हाँ। सत्या. पौ.- हाँ. सुनिए । फूट, डाह, लोभ, रचिके मत वेदांत को, सबको ब्रह्म बनाय । भय, उपेक्षा, स्वार्थपरता, पक्षपाल, हठ, शोक, हिंदुन पुरुषोत्तम कियो, तोरि हाच अरु पाय ।। अवमान और निकलता इन एक दरजन इती और दतों महाराज. वेदात ने बना ही उपकार किय । सब हिंद को शत्रुओं की फौज में हिला मिलाकर ऐसा पंचामृत ब्रह्म हो गए। किसी को इतिकर्तव्यता बाकी ही न बनाया कि सारे शत्रु बिना मारे घटा पर के गरुट हो रही । जानी बनकर (श्वर से विमुख हुए. रुक्ष गए. गए । फिर अंत में भिन्नता गई । इसने ऐसा सबको अभिमानी हुए और इसी से स्नेहशून्य हो गए । जब काई की तरह फाड़ा कि भाषा, धर्म, चाल, व्यवहार, स्नेह ही नहीं तबदेशोद्वार का प्रयत्न कहाँ! बस, जय खाना, पीना सब एक एक योजन पर अलग अलग कर कर की दिया । अब आवे बचा ऐक्य ! देखें आही के क्या करते भारतदु.- अच्छा, और किसने किसने क्या है। किया भारततु.-मला भारत का शस्य नामक सत्या. फो. -महाराज, फिर संतोष ने भी फौजदार अभी जीता है कि मर गया । उसकी पलटन बड़ा काम किया । राजां प्रजा सबको अपना बेला चना | कैसी है, लिया । अब हिंदुओं को खाने मात्र से काम, देश से सत्या. फौ.- महाराव! उसका बल तो कुछ काम नहीं । राव न रहा, पेनसन ही सही। आपकी अतिपूष्टि और अनावृष्टि नामक फौजों ने रोजगार न रहा. सृद ही सही । वह भी नहीं, तो वर ही | बिलकुल बेड दिया । शाही, कीरे टिकी और पाना का सही, 'संतोष परम सुखं' रोटी ही को सराह सराह इत्यादि सिपाहियो' ने खूब ही सहायता की । बीच में के खाते हैं। उद्यम की ओर देखते ही नहीं निरुद्यमता नील ने भी नील बनकर अच्छा लकाबहन किया । ने भी संतोष को पड़ी सहायता दी । इन दोनों को भारतदु.- वाह ! वाह ! बड़े आनन्द की बात बहादुरी का मेडल जरूर मिले । व्यापार को इन्हीं' ने सुनाई । तो अच्छा तुम जाओ । कुछ परवाह नहीं, अब मार गिराया। ले लिया है। बाकी साकी अभी सपराए डालता है। भारततु.- और किसने क्या किया ? अब भारत कहाँ जाता है । तुम होशियार रहना और सत्या. पो.--फिर महाराजजो धन की सेना रोग महर्ष, कर, मद्य, आलस और अंधकार को बरा बची थी उसको जीतने को भी मैने बड़े बांके वीर भेजे । क्रम से मेरे पास भेज दो। अपव्यय, अदालत, पैशन और सिफारिश इन चारों सत्या. फौ. जो आज्ञा । (जाता है) ने सारी दुश्मन की फौज तितर बितर कर दी। भारततु. अब उसको कहीं शरण न अपव्यय ने खूब लूट मचाई । अदालत ने भी अच्छे हाथ | मिलेगी । धन, बल और विद्या तीनों गई । अब साफ किए । फेशन ने तो बिल और टोटल के इतने किसके कल कडेगा ? गोजे मारे कि अंटाधार कर दिया और शिफारिश ने भी सूच ही छकाया । पूरब से पच्छिम और पच्छिम से (जवनिका गिरती है) पूरब तक पोछा करके खूब भगाया । तुडफे घूस और पटोतोलन नंद के ऐसे बम के गोले चलाए कि 'बम बोल गई बाबा की चारों दिसा घूम निकल पड़ी । मोटा भाई बना बनाकर मुंह लिया । एक तो खुद ही यह सब पैडिया के - ताऊ, उस पर चुटकी बजी. खुशामद हुई. डर दिखाया य १. सलामी मिली। क २. पी. अई.. आदि उपाधियाँ मिली। MEROre भारत दुर्दशा ४६३