पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५०९

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wa सिजदे से गर विहिश्त मिले दर कीजिए शराबुनतहरा और आपटेजिंग वाईन । मला कोई कहाँ दी जब ही सही सिर का मुहाना नही अच्छा ।। तो इनको अशुद्ध ? या जो पशु है उन्होंने उशुद्ध कहा ही मिल जाय हिंद खाक में हम काहिलों को क्या तो क्या हमारे चाहनेवालों के आगे वे लोग बढ़त होंगे। ऐ मीरे फर्श रख उठाना नहीं अच्छा ।। तो फी सेकड़े दस होंगे, जगत में तो सम व्याप्त है। हमारे चेले लोग सदा यही कहा करते है। और फिर और क्या । काजी जी दबले क्यों कहें शहर के सरकार के राज्य के तो हम एकमात्र भूषण है। अंदेशे से । अरे 'कोक नप होठ हमें का हानी, चेरि दृप सूरा दहि सूरा, सूरा अन्न धन धाम खोड नहि होउप रानी ।' आनंद से जन्म बिताना । वेद सुरा ईश्वर सुरा, सुरा स्वर्ग को नाम ।। 'अजगर करे न चाकरी, पंछी कर न काम । दास जाति सुरा विद्या सुरा, बिन मद रहे न कोय । मनूचा कह गए. सपके दाता राम ।। "जो पड़तष्य सो सुधरी आजादी सुरा, जगत् सुरामय होय ।। मरतव्यं, जो न पढ़तव्यं सो भी मरतव्यं, तब फिर ब्राहमण क्षत्री वैश्य अरु, शेयद सेख पठान । दंतकटाकट कि कर्तव्य ?' भई जात में ब्राह्मण, धर्म देबताइ मोहि कोन जो. करत त्र मदिरा पान ।। में पौरागी, रोजगार में सूद और दिल्लगी में गप सब से पियत भट्ट के ठट्ट अस. गुजरातिन के द । अच्छी । घर बैठे उन्म विताना. न कहीं जाना और न गौतम पियत अनंद सो, पिक्त आन के नंद ।। कहीं अना सब खाना, हगना, मूतना, सोना, बात | होटल में मदिरा पिएं, चोट लगे नहिं लाज । बनाना, तान मारना और मस्त रहना । अमीर के सर लोट लए साढ़े रहत, टोटल देवे काज।। पर और क्या सुरखाव का पर होता है, जो कोई काम न कोठ कहत मद नहि पिएं जो क लिख्यो न जाय । १ वही अमीर । 'तषगरी बदिलस्त बमाश।" कोउ कहत हम मद्य बल, करत वकीली जाय ।। तो मस्त हैं या मालमस्त या हालमस्त मद्यहि के परमाय मो, रचत अनेकन ग्रंथ । (भारतदुर्देव को देखकर उसके पास जाकर प्रणाम मद्यहि के परकास सों, लखत धरम को पंग ।। करके महाराज! मैं सुख से सोया था कि आपकी आज्ञा मद पी विधिजग को करत, पालत हरि करि पान । पहुंची ज्यो त्यो कर यहाँ हाजिर हुआ । अब हुक्म मद्यहि पी के नाश सप, करत शंभु भगवान् ।। भारततु.- तुम्हारे और साथी सब हिंदुस्तान विष्णु वारुणी. पोर्ट पुरुषोत्तम, मद्य मुरारि । | की ओर भेजे गए है. तुम भी वहीं जाओ और अपनी शापिन शिष गौड़ी गिरिश. नाडी ब्रह्म विचारि ।। जोगनिद्रा से सब को अपने वश में करो। मेरी तो धन बुद्धि मल. कुल लज्जा पति गेह । आलस्य.- बहुत अच्छा । (आप ही आप) | माय बाप सूत धर्म सब, मदिरा ही न संदेह ।। अहरे वप्पा ! अब हिंदुस्तान में जाना पड़ा । तब चलो सोक हरन आनंद करन, उमगाधन सब गात । धीरे धीरे चलें । हुक्म न मानेंगे तो लोग कहेंगे हरि में तपबिनु लय करनि, केवल मद्य लखात ।। 'सरबस खाइ भोग करि नाना, समरभूमि मा दुरलम सरकारहि मंजूर जो मेरा होत उपाय । प्राना ।' अरे करने को देव आप ही करेगा. हमारा | तो सब सो बढ़ि मद्य पे देती कर बैठाय ।। कोन काम है. पर चले। हमही को या राज की, परम निसानी जान । (यही सब बुडबुड़ाता हुआ जाता है) कीर्ति संभ सी जग गडी, जबलों चिर ससि भान ।। | राजमहल के चिन्ह नहि. मिलिडे जग इत कोय । मदिरा-भगवान सोम की मैं कन्या है । प्रथम राबह बोतल ट्रक बहु. मिलिहे कीरति होय ।। वेदों ने मधु नाम से मुझे आदर दिया । फिर देवताओं | हमारी प्रवृत्ति के हेतु कुछ यत्न करने की आवश्यकता की प्रिया होने से में सुरा कहलाई और मेरे प्रचार के हेतु नहीं। मनु पुकारते है 'प्रवृत्तिरेषा भूतानां' और औजामणि यज्ञ की सृष्टि हुई । स्मृति और पुराणों में भी भागवत में कहा है 'लोके व्यवायामिषमद्यसेवा प्रति मेरी नित्य कही गई । तत्र तो केवल मेरी ही हेतु | नित्ययास्ति जतो: ।' उसपर भी वर्तमान समय की बने । ससार में चार मत बहुत प्रबल है, हिंद बोद सभ्यता की लो में मुख्यभूलसूत्र हूँ। विषयेद्रियों के मुसलमान और क्रिस्तान । इन चारों में मेरी चार | सुखानुभष मेरे कारण द्विगुणित हो जाते है । संगीत पवित्र प्रेममूर्ति विराजमान है । सोभपान, बीराचमन, साहित्य की तो एकमात्र जननी है। फिर ऐसा कौन है १. अमोरी हृदय से है, धन से नहीं है। २. सांवली सी स्त्री. लाल कपड़ा, सोने का गहना, पैर में घुबरू। 2ONAR भारत दुर्दशा ४६५ (मदिरा आती है) tok