पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५१३

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तब अनेक यत्न से फिर जगाता है, अंत में हारकर उदास होकर) हाय! भारत को आज क्या हो गया है? क्या निस्संदेह परमेश्वर इससे ऐसा ही रूठा है ? हाय क्या अब भारत के फिर ये दिन न आवेंगे हाय यह वही भारत है जो किसी समय सारी पृथ्वी का शिरोमणि गिना जाता था? भारत के भुजबल जग रक्षित । मारतविद्या लहि जग शिच्छित ।। भारततेज जगत बिस्तारा । भारतभय कंपत संसारा ।। जाके तनिकहि मौह हिलाए । थर थर कंपत नृप डरपाए ।। जाके जय की उज्ज्वल गाथा । गावत सब महि मंगल साथा ।। भारत किरिन जगत उजियारा । भारतजीव जिअत संसारा ।। भारतवेद कथा इतिहासा । भारत वेदप्रथा परकासा ।। फिनिक मिसिर सीरीय युनाना । मे पंडित नहि भारत दाना ।। रह्यो रुधिर जब आरज सीसा । ज्वलित अनल समान अवनीसा ।। साहस बल इन सम कोउ नाही। तबै रह्यो महिमंडल माहीं ।। कहा करी तकसीर तिहारी । रे बिधि रुष्ट याहि की बारी ।। सबै सुखी जग के नर नारी । रे बिधना भारत हि दुखारी ।। हाय रोम तू अति बड़भागी । बर्बर तोहि नास्यो जय लागी ।। तोडे की रतियंम अनेकन । वाहे गढ़ बहु करि प्रण टेकन ।। मंदिर महलनि तोरि गिराए । सबै चिन्ह तुव धूरि मिलाए ।। कछु न बची तुव भूमि निसानी । सो बरु मेरे मन अति मानी ।। भारत भाग न जात निहारे । थाप्यो पग ता सीस उधारे ।। तोर्यो दुर्गन महल ढहायो । तिनहीं में निज गेह बनायो । ते कलंक सब भारत केरे। ठाढ़े अजहुँ लखो घनेरे ।। काशी प्राग अयोध्या नगरी । दीन रूप सम ठाढी सगरी ।। चंडालहु जेहि निरखि घिनाई। रही सबै मुष मुंह मसि लाई ।। हाय पंचनद हा पानीपत । अजहुँ रहे तुम धरनि बिराजत ।। हाय चितौर निलज तू भारी। अजहुँ खरो भारतहि मंझारी ।। जा दिन तुव अधिकार नसायो । जो दिन क्यों नहिं धरनि समायो ।। रहयो कलंक न भारत नामा । क्यों रे तू बारानसि धामा ।। सब तजि कै भजि के दुखभारी । अजहुँ बसत करि भुव मुख कारों ।। अरे अग्रवन तीरथराजा । तुमहुँ बचे अबलौं तजि लाजा ।। पापिनि सरजू नाम धराई। अजहूं बहत अवधतट जाई ।। तुम में जल नहिं जमुना गंगा । बढ़हु बेग करि तरल तरंगा ।। धोवहु यह कलंक की रासी । बोरहु किन झट मथुरा कासी ।। कुस कन्नौज अंग अरु बंगहि । बोरहु किन निज कठिन तरंगहि ।। बोरहु भारत भूमि सबेरे। मिटे करक जिय की तब मेरे ।। अहो भयानक भ्राता सागर । तुम तरंगनिधि अतिबल आगर । बोरे बहु गिरि वन अस्थाना । पे बिसरे भारत हित जाना ।। बढ़हु न बेगि धाई क्यों भाई । देहु भारत भुव तुरत डुबाई ।। घेरि छिपावहु विध्य हिमालय । करहु सफल भीतर तुम लय ।। घोवहु भारत अपजस पंका। मेटहु भारतभूमि कलंका ।। शाय! यहीं के लोग किसी काल में जगन्मान्य थे। जेहि छिन बलभारे हे सबै तेग धारे। तब सब जग धाई फेरते हे दुहाई। जग सिर पग धारे धावते रोस भारे। बिपुल अवनि जीती पालते राजनीती । भारत दुर्दशा ४६९