पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५१९

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तुम्हें कुछ नहीं मालूम कि तुम्हारे चारों ओर क्या हो उद्यमशून्य हो केवल सूद या नौकरी पर सन्तोष कर के रहा है, यह तो तुम लोग देखो कि तुम्हारी अब क्या बैठे हैं, उद्योग किस चिड़िया का नाम है इसको मानो अवस्था हो रही है, क्या थे और क्या हो गए, एक बेर स्वप्न में भी नहीं जानते । तो भला अपने मन में विचारो, निरवलंबा शोकसागर- हाय ! जगत विख्यात हमारे पूर्व समय के पुत्रगण मग्ना, अभागिनी अपनी जननी की दुरावस्था को एक किधर गये । क्या उन की आत्मा भी यहां नहीं है जो बार तो आखें खोल के देखो । बेटा हमारा धन, इस अभागिनि दुखिया माता को इस समय सम्बोधन आभूषण बसन इत्यादि सब लुटेरे बलात्कार हर ले गये, अब हम निराधार हो रही हैं, तेल भी नहीं मिलता कह गये बिक्रम भोज राम बलि कर्ण युधिष्ठिर । कि केशों में लगावै । यह मलिन शतग्रंथि वस्त्र मैं कब चन्द्रगुप्त चाणक्य कहां नासे करि कै घिर ।। तक पहिरु हाय ! जो अंगरेजों का राज्य न होता तो कहं छत्री सब मरे बिनसि सब गए कितै गिर । अबतक तो मेरे प्राण न बचते । बेटा तुम लोग अब उठो कहां राज को तौन साज जेहि जानत हे चिर ।। और अपने इस दुखिया माता को घोर दु:ख से उदार कह दुर्ग सैन जन बल गयो, धूरहि धूर दिखात जग । करो। उठि अजौं न मेरे वत्सगन, रक्षहि अपुनो आर्य पहिला-मां फिर अब हम क्या करे ? मग ।" दूसरा- हम अपने माता के कष्ट को कैसे दूर सा पहिला–माता बड़ी भूख लगी है । करें! दूसरा-क्षुधा से उदर फटा जाता है। तीसरा-मां तुम किस्से कहती हो! हम लोग तीसरा मां कुछ खाने को दो। तो अब मनुष्य नहीं, हम लोग तो अब आलसी हो गए भारतमाता--(स्वगत) काल तू बड़ा प्रबल है, हैं. हमारी गणना तो अब अज्ञान तिमिरावृत, तुझ को कोई कार्य दुर्घट नहीं, तू सब कर सकता है, पनिवासी पिशाचगणों में हैं, तो फिर हम क्या करें ? तेरा विश्वास कभी नहीं करना (प्रकाश) बेटा मेरे पास भारतज.- हाय ! हाय । क्या सचमुच हमारे क्या है जो तुम लोगों को खाने को दूं । पुत्रों की अब ऐसी दीन दशा हो गई है कि ये लोग कुछ सब-माता दूध दो वहीं पिये । भी नहीं कर सकते । अरे मेरे इसी अंक में आगे कैसे- भारतमाता-वत्स! तुम्हारी मां के पास क्या कैसे महात्मागण हुए हैं जिन के यश सौरभ से सारी अब दूध रक्खा है जो तुम लोगों को दे. बेटा इतर पदार्थों की क्या गणना है मेरे शरीर का तो अब रक्त भी शेष पृथ्वी आमोदित थी। इसी हमारे अंक आलबाल में नहीं. यवन सब चूस ले गए । बेटा तुम लोग कब तक कैसे पुण्य कल्पतरु हुए हैं जिनकी कीर्तिशाखा दशों दिशा में भी नहीं समा सकी । इसी हमारे अंक में कैसे ऐसे पड़े रहोगे अब अपना-२ काम देखने के लिये तुम लोग शीघ्र प्रयत्न करो। कौसे लोग लालित पालित हुए है जिन का आज दिन पहिला -मां हम लोग क्या करें कैसे इस समस्त संसार आदरपूर्वक नाम ग्रहण करता है, क्षुधित उदर को पूर्ण कर आत्मा को सुख दें। जिन्होंने अपने बुद्धि बल से मुझ को सब देश ललनाओं दूसरा-मां हम लोगों की तो यहाँ तक इच्छा का शिरोमणि कर रखा था । होती है कि सेना विभाग में जा कर महारानी की ओर से "जावाली जैमिनि गरग पातञ्जलि शुकदेव । उन के शत्रुओं से प्रथम ही युद्ध करें और इस से अपने रहे हमारेहि अंक में कबहिं सबै भुवदेव ।। को प्रतिपालित करें, परंतु वह भी तो नहीं करने पाते 1 याही मेरे अंक में रहे कृष्ण मुनि व्यास । भारतमाता-बटा तुम लोग क्या कह रहे जिन के भारत गान सों भारत बदन प्रकास ।। हो ? हाय मैं ऐसी बजहृदया हूं कि यह सब सुन कर भो याही मेरे अंक में कपिल सूत दुर्वास । सुखपूर्वक अपना प्राण धारण किये हूं अब तो यह दुसह याही मेरे अंक मा कपिल सूत संन्यास । दुख सहा नहीं जाता (दीर्घ श्वास लेकर) बेटा तुम लोग याही मेरे अंक मै शाक्य सिंह संन्यास । अब क्या कर सकते हो, तुम्हारे पास अब है क्या? तब तौ तिन को करत हो आदर जग सब कोय ।।" तुम लोग अब एक बेर जगविख्याता, ललनाकुल- सो उसी भारतभूमि में अब सब हतज्ञान हो रहे हैं कमल कलिकाप्रकाशिका, राजनिचयपूजितपादपीठा, और कोई इन को सम्हालने वाला नहीं । कोई काल सरल हृदया, आर्द्रचित्ता, प्रजारञ्जनकारिणी, एवम् ऐसा था कि इस भूमि की स्त्रियां भी विद्या संभ्रम, दयाशीला आर्य्य स्वामिनी राजराजेश्वरी महारानी शौर्य, औदार्य में जगत विख्यात थीं वहां के पुरुष अब ' विक्टोरिया के चरण कमलों में अपने इस दु:ख का भारत जननी ४७५ 33