पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२१

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उत्पन्न होना अनुरजन के हेतु प्राणप्रिय आत्मपुत्रों का भी त्याग कर तुम्हारा आश्वासन करता हूं। यद्यपि मैं धैर्य हूं और सकती हैं और इतर बस्तुओं की कौन गणना । उन के विपद काल में लोगों को धीरज देने के हेतु मैंने जन्म गुण अनन्त है । उनके समान सच्चरित्रा, साध्वी, लिया है किन्तु तुम्हारे इस शोकावस्था को देख मेरे भी पतिब्रता और धर्मपरायणा स्त्री कुल में धीरज छूटे जाते हैं और अत : पर उसके धारण करने अति दुर्लभ है । वह रामचन्द्र से भी अधिक प्रजापालन को असमर्थ हूँ। मैं कैसे तुम्हारा दु:ख दूर करूं । में सदैव तत्पर रहती हैं । माता! कुछ दु :ख मत करो (संतानों से) हे भ्रातृगन अब उठो और जननी के तुम्हारी यह शोकरात्रि अब शीघ्र ही प्रभात होगी और दु:खानल के निर्वाण का प्रयत्न करो । अभिमान लोभ सुखरूपी मार्तण्ड तुम्हारे इस मुकुलित मुखकमल को | अपमान आत्मसमाज प्रशंसा परजातनिन्दा इन सब का शीघ्र ही प्रफुलित करैगा । माता! तुम ने क्या सावधान पूर्वक परित्याग करो धैर्य का अवलम्बन करो ग्लैडस्टन फासेट मानियर विलियम्स इत्यादि सब कोई धैर्य को धारण करो भाई अवश्य तुम लोगों की महात्माओं का नाम नहीं सुना ! ये लोग तो अभागे कांक्षा पूरी होगी धीरज धरो धीरज धरो । भारतसन्तानों के शोक निवारण के हेतु तन मन सब (धैर्य का प्रस्थान) अर्पण कर चुके हैं और रात दिन उसी का प्रयत्न किया भारतमाता--हे मेरे प्यारे वत्सगण! अब भी करते हैं । (सन्तानों के प्रति) भ्रातृगण ! सचमुच तुम उठो और धैर्य के उत्साह और ऐक्य के उपदेशों को मन लोगों की अब तक अत्यन्त दुर्दशा हुई है और तुम लोगों में रख इस दुखिया के दु:ख दूर करने में तन मन से ने अनेक आपत्तियों को झेली है और अनेक दु:ख तत्पर हो, अब तक हमने उसका सहन किया अब तो उठाये हैं, भाई इस में कोई क्या कर सकता है सब ऐसा उपाय करो जिसमें मेरा यह शोकनद बढ़ने न उस सृष्टिकारक परमेश्वर के आधीन हैं, उसी को पावै (हाथ जोड़कर) हे जगदीश्वर तूं सर्वशक्तिमान पुकारो, वही समस्त जगत और सब दीन दुखियों का है तुझको कोई बात दुर्घट नहीं अब मुझ अबला पर रक्षक है . जगदीश्वर तुम लोगों को इस विषदजाल से दया करके मेरा द:ख निवारण कर और मेरी इस शीघ्र ही मुक्त करें। प्रार्थना को अंगीकार कर । (दसरे साहिब का प्रस्थान) पुनि हृदय ज्ञान प्रकाश ते अज्ञान तम तुरतहि दहै ।। (धैर्य का प्रवेश) तजि द्वेष इर्ष्या द्रोह निन्दा देस उन्नति सब चहें धैर्य-जननी क्यों रोदन करती हौ धैर्य को अभिलाख यह जिय पूर्ववत धन धन्य मोहि सबही धारण करो और शोकवेग को दूर करो । देखो मैं धैर्य कहैं ।। सब जाते हैं। जवनिका पतन। - SUO 0000 भारत जननी ४७७