पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२४

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रहना चाहिए । आप लोग सब तरह चतुर हो मैं इसमें विशेष क्या कहूँ स्नेह कुछ कहलाए बिना नहीं रहता ।। सू.दे. .- (आदर से) प्यारी । कुछ चिंता नहीं है है अब तो जो कुछ होगा देखा ही जायगा न । (राजपूतों से)। (गजल) (उठकर सब की तरफ देख कर) इस राजपूत से रहो हुशियार खबरदार । गफलत न जरा भी हो खबरदार खबरदार ।। ईमाँ की कसम दुश्मने जानी है हमारा । काफ़िर है य पंजाब का सरदार खबरदार ।। अजदर है भभूका है जहन्नुम है बला विजली है गजब इसकी है तलवार खबरदार ।। दरबार में वह तेगे शररबार न चमके । घरबार से बाहर से भी हर बार खबरदार ।। इस दुश्मने ईमाँ को है धोखे से फंसाना । लड़ना न मुकाबिल कभी जिनहार खबरदार ।। (सब जाते हैं) सावधान सब लोग रहहु सब भाँति सदाहीं । जागत ही सब रहैं रैनहूँ सोअहिं नाहीं ।। कसे रहैं कटि रात दिवस सब बीर हमारे । अस्व पीठ सो होहिं चारजामें जिनि न्यारे । तोड़ा सुलगत चढ़े रहैं घोड़ा बंदूकन । रहै खुली ही म्यान प्रतंचे नहिं उतरें छन ।। देखि लेहिंगे कैसे पामर जवन बहादुर। आवहिं तो चड़ि सनमुख कायर कर सबै जुर ।। दैहैं रन को स्वाद तुरतहि तिनहिं चखाई । जो पै इक छन हु सनमुख वै करिहि लराई ।। (जवनिका पतन) तीसरा दृश्य पहाड़ की तराई (राजा सूर्यदेव, रानी नीलदेवी और चार राजपूत बैठे चौथा दृश्य ही गे। सू. कहो भाइयो इन मुसलमानों ने तो अब सराय बड़ा उपद्रव मचाया है। (मठियारी, चपरगट्ट खां और पीकदान अली) १ला.- तो महाराज ! जब तक प्राण है तब तक चप.- क्यों भाई अब आज तो जशन होगान" लड़ेंगे। आज तो वह हिंदू न लड़ेगा न । २रा.-महाराज! जय पराजय तो परमेश्वर के पीक.-मैंने पक्की खबर सुनी है । आज ही तो हाथ है परन्तु हम अपना धर्म तो प्राण रहे तक निबाह | पुलाव उड़ाने का दिन है । चप.-मई मैं तो इसी से तीन चार दिन दरबार सू.- हाँ हाँ, इसमें क्या संदेह है। मेरा कहने में नहीं गया । सुना वे लोग लड़ने जायेंगे । मैंने कहा का मतलब यह है कि सब लोग सावधान रहें। जान थोड़ी ही भारी पड़ी है । यहाँ तो सदा मागतों के ३ग.- महाराज ! सब सावधान हैं । धर्म युद्ध आगे मारतों के पीछे । जबान तेग कहिए दस हजार में तो हमको जीतनेवाला कोई पृथ्वी पर नहीं है । हाथ मारूं नी. दे. पर सुना है कि ये दुष्ट अधर्म से पीक.-भई इसी से तो कई दिन से मै भी खेमों बहुत लड़ते हैं । तर्फ नहीं गया । अभी एक हफ्ता हुआ मैं उस गाँव में सू. प्यारी । वे अधर्म से लड़ें हम तो अधर्म एक खानगी है उसके यहाँ से चला आता था कि पाँच नहीं न कर सकते । हम आर्यवंशी लोग धर्म छोड़ | हिन्दुओं के सवारों ने मुझे पकड़ लिया और तुरक तुरक कर लड़ना क्या जानैं ? यहाँ तो सामने लड़ना जानते | करके लगे चपतियाने । मैंने देखा कि अब तो बेतरह हैं । जीते तो निज भूमि का उद्धार और मरे तो स्वर्ग। फैसे मगर वल्लाह मैं भी अपने कौम और दीन की हमारे तो दोनों हाथ लइड्र है; और यश तो जीते तो भी इतनी मज़म्भत और हिन्दुओं की इतनी तारीफ की कि हमारा साथ है और मरें तो भी । उन लोगों को छोड़ते ही बन आई । ले ऐसे मौके पर ४था. महाराज ! इसमें क्या सदेह है, और और क्या करता ? मुसल्मानी के पीछे अपनी जान हम लोगों को एकाएकी अधर्म से भी जीतना कुछ दाल | देता ? भात का गस्सा नहीं है। चप.-- हाँ जी किसकी मुसल्मानी और किसका तो भी इन दुष्टों से सदा सावधान ही कुफ्र । यहाँ अपने माई हलुए से काम है। भारतेन्दु समग्र ४८० नी.दे.