पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२५

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भदि.--तो मियां आज जशन में जाना तो दोखो सोंओ सुख निदिया प्यारे ललन । मुझको भूत मत जाना । जो कुछ इन आम मिले उस में नैनन के तारे दुलारे मेरे बारे भी कुछ देना । हाँ ! देखो मैंने कई दिन खिदमत की सोओ सुख निदिया प्यारे ललन । भई आधी रात बन सनसनात, पीक.-जरूर जरूर जान छल्ला, यह कोन | पथ पछी कोड आवत न जात, बात है तुम्हारे ही वास्ते जी पर खेलकर यहां उतरे हैं। जग प्रकृति भई मनु थिर लखात (चपरगट्ट से कान में) यह सुनिए जान झोके हम माल पातहु नहिं पावत तरुन हलन ।। चामैं नी भटियारी । यह नहीं जानतीं कि यहाँ इनकी झलमलत दीप सिर धुनत आय, ऐसी ऐसी हजारों चरा चर छोड़ दी हैं। मनु प्रिय पतंग हित करत हाय, चप.--(धीरे से) अजी कहने दो कहने से कुछ सतरात अंग आलस जनाय. दिये ही थोड़े देते हैं । भटियारी हो चाहे रडी आज तक सनसन लगी सिरी पवन वलन । तो किसी को कुछ दिया नहीं है उलटा इन्हीं लोगों का सोए जग मे सब नींद घोर, खा गए हैं (भटियारी से) वाह जान तक हाजिर है । जब जागत कामी चितित चकोर. कहो गरदन काट कर सामने रख दूं । (खुब घूरता बिरहिन बिरही पाहरू चोर, इन कह छन रैनह हाय कल न ।। सटि.-(आँखें नचाकर) तो मैं भी तो मियाँ की सिपाही -- वरसों घर छूटे हुए । देखें कब इन खिदमत से किसी तरह बाहर नहीं हौं । दुष्टों का मुंह काला होता है । महाराज घर फिरकर (दोनों गाते है) चलें तो देस फिर से बसे । रामू की माँ को देखे कितने पिकदानी चपरगट्ट है बस नाम हमारा। दिन हुए । बच्चा की खबर तक नहीं मिली (चौक कर इक मुफ्त का खाना है सदा काम हमारा ।। ऊँचे स्वर से) कौन है ? खबरदार जो किसी ने झूटमूठ उमरा जो कहै रात तो हम चांद दिखा दें। भी इधर देखने का विवार किया । (साधारण स्वर से) रहता है सिफारिश से भरा जाम हमारा ।। हां-कोई यह न जाने कि देवासिंह इस समय जोरू कपड़ा किसी का खाना कहीं सोना किसी का । लड़कों की याद करता है इससे भूला है । क्षत्री का गैरों ही सारा सरजाम हमारा । लड़का है । घर की याद आवै तो और प्राण छोड़कर हो रंज जहाँ पास न जाएँ कभी उसके । लड़े। (पुकारकर) ख़बरदार । जागते रहना। आराम जहाँ हो है वहाँ काम मारा। (इधर उधर फिर कर एक जगह बैठकर गाता है) जर दीन है कुरआन है ईमां है नबी है 1 (कलिंगड़ा) जर ही मेरा अल्लाह है जर राम हमारा ।। प्यारी बिन कटन न कारी रैन । मटि.-ले में तो मियाँ के वास्ते खाना बनाने पल छिन न परत जिय हाय दैन ।। जाती है। तन पीर बढ़ी सब छुटगो धीर, पीक.-तो चलो भाई हम लोग भी तब तक कहि आवत नहिं कछु मुखहु बैन । जरा 'रहे लाखों बरस साकी तेरा आबाद मैखाना' । बिय तड़फड़ात सब जरत गात, चपर.--चलो । टप टप टपकत दुख भरे नैन ।। (जवनिका पतन) परदेस परे तजि देस हाय, दुख मेटन हारो कोउ है न । सजि विरह सैन यह जगत जैन, मारत मरोरि मोहि पापी मैंन ।। प्यारी बिन कटत न कारी रैन । (सूर्यदेव के डेरे का बाहरी प्रान्त) (नेपथ्य में कोलाहल) (रात्रि का समय) कौन है। यह कैसा शब्द आता है। ख़बरदार । देवा सिंह सिपाही पहरा देता हुआ घूमता (नेपथ्य में विशेष कोलाहल) नेपथ्य में गान (घबड़ाकर हैं यह क्या है ? अरे क्यों एक साथ (राग कलिंगड़ा) इतना कोलाहल हो रहा है । बीरसिंह ! बीर सिंह पंचा दुश्य नील देवी ८१