पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२६

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छठवाँ दृश्य जागो । गोविंद सिंह दौड़ो! अतफाले अली के, असहाब के, लश्कर मेरा दुश्मन से नेपथ्य में बड़ा कोलाहल और मार मार का शब्द । बचाया । शस्त्र खींचे हुए अनेक यवनों का प्रवेश । अल्ला सब-अलहमदडलिल्लाह । अकबर का शब्द । देवासिंह का युद्ध और पतन । काज़ी-खाली किया इक आन में दैरों को यवनों का डेरे में प्रवेश । सनम से, शमशीर दिखा के, बुतखान : गिरा कर के पटाक्षेप । हरम तूने बनाया । सब-अलहमद् उललिरलाह । काज़ी- इस हिंद से सब दूर हुई कुफ्र की जुल्मत, की तूने वह रहमत नक्कारए ईमा को हरेक सिम्त बजाया । अमीर का खेमा सब-अलहमद् उललिल्लाह । (मसनद पर अमीर अबदुश्शरीफ खाँ सूर बैठा है काज़ी-गिरकर न उठे काफिरे बदकार जमी इधर उधर मुसलमान लोग हथियार बाँधे मोछ से, ऐसे हुए गारत । आमों कहो । पर ताव देते बड़ी शान से बैठे हैं।) सब-आमीं। अमीर-अलहमदुलिल्लाह.! इस कम्बख्त काज़ी-मेरे महबूब खूदाया । काफिर को तो किसी तरह गिरफ्तार किया । अब सब-अलहमद उललिल्लाह । बाकी फौज भी फतह हो जायगी । (जवनिका गिरती है) एक सर्दार-ऐ हुजूर जब राजा ही कैद हो गया तो फौज क्या चीज़ है । खुदा और रसूल के हुक्म से इसलाम की हर जगह फतह है । हिंदू है क्या चीज़ । एक तो खुदा की मार दूसरे बेवकूफ आनन सातवाँ दृश्य फानन में सब जहन्नुमरसीद होंगे । २सार- खुदाबंद ! इसलाम के आफताब के कैदखाना। आगे कुफ्र की तारीकी कभी ठहर सकती है ? हुजूर महाराव सूर्यदेव एक लोहे के पिंजड़े में मूर्छित पडे अच्छी तरह से यकीन रक्खें कि एक दिन ऐसा आवेगा हैं। एक देवता सामने खड़ा होकर गाता है। जब तमाम दुनिया में ईमान का जिल्वा होगा । कुफ्फार देवता- सब देखिले दोजन होंगे और पयगबरे आखिरूल जमा (लावनी) सल्लल्लाह अल्लै हुम्सल्लम का दीन तमाम रूए सब भाति देव प्रतिकूल होइ एहि नासा । जमीन पर फैल जायगा । अब तजहुं बीर बर भारत की सब आसा ।। अमीर-आमी आमी । अब सुख सूरज को उदय नहीं इत वैहे । काज़ी - मगर मेरी राय है कि और गुप्तगू के | सो दिन फिर इत समनेई नहिं ऐहैं। पेश्तर शुकरिया अदा किया जाय क्योंकि जिस | स्वाधीनपनो बल धीरज सबहि नसैहैं। हकतआला की मिहरबानी से यह फतह हासिल हुई है | मंगलमय भारत भुव मसान ह्वै जैहै ।। सबके पहिले इस खुदा का शुक्र अदा करना जुरूर है । | दुख ही दुख करिहै चारहु ओर प्रकासा ।। सब-बेशक, बेशक । अब तजहु बीर बर भारत की सब आसा ।। (काजी उठकर सब के आगे घुटने के बल सकता है | इत कलह विरोध सबन के हिय घर करिहै 1 और फिर अमीर आदि भी उसके साथ मुकते है) तम चारहु ओर पसरिहै ।। काजी- (हाथ उठाकर) काफिर पै मुसल्मा को | वीरता एकता ममता दर सिधरि है। फतहयाब बनाया । तजि उद्यम सब ही दास वृत्ति अनुसरि है ।। सब- (हाथ उठाकर) अलहमद उलिल्लाह । वे जैहै चारहु बरन शूद बनि दासा । काजी 1-की मेह बड़ी तूने य बस मेरे खुदाया । अब तजहु बीर बर भारत की सब आशा सब-अलहमद् उलिल्लाह । वैहैं सब इतके भूत पिशाच उपासी काजी सदके में नवी सैयदे मक्की मदनी के | कोऊ बनि जैहैं आपुहि स्वयं प्रकासी ।। मूरखता को भारतेन्दु समग्र ४८२