पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।


(मियाँ के पास जाकर)

तुरुक तुरुक तुरुक––घुरुक घुरुक घुरुक––मुरुक मुरुक मुरुक––फुरुक फुरुक फुरुक––याम शाम लीम लाम ढाम––

(मियाँ को पकड़ने दौड़ता है)

मियाँ––(आप ही आप) यह तो बड़ी हत्या लगी। इससे कैसे पिंड छुटेगा। (प्रगट) दूर दूर।

पागल––दूर दूर दूर––चूर चूर चूर––मियाँ की डाढ़ी में दोजख की हूर––दन तड़ाक छू मियाँ की माईं में मोयीं की मूँ––मार मार मार––मियाँ छार खार––

(मियाँ के पास जाकर अट्टहास करके)

रावण का साला दुर्योधन का भाई अमरूत के पेड़ की पसेरी बनाता है––अच्छा अच्छा––नहीं नहीं तैने तो हमको उस दिन मारा था न! हाँ हाँ यही है यही––जाने न पावे। मार मार––

(मियाँ की गरदन पकड़कर पटक देता है और छाती पर चढ़ कर बैठता है)

रावण का साला दिल्ली का नवाब वेद की किताब––बोल हम राजा कि तू राजा––(मियाँ की डाढ़ी पकड़कर खींचने से कृत्रिम डाढ़ी निकल आती है। विष्णु शर्मा को पहिचान कर अलग हो जाता है) रावण का साला मियाँ का भेस विष्णु के कान में शर्मा का केस। मेरी शक्ति गुरु की भक्ति फुरो मंत्र ईश्वरोवाच डाढ़ी जगावे तो मियाँ साँच।

(आँख से इगित करता है)

मियाँ––(फिर डाढ़ी लगाकर) लाहौल वला कूअत क्या बेखबर पागल है। इसके घर के लोग इसके लौटने के मुन्तजिर हैं यह यहीं पड़ा है।

पागल––पड़ा घड़ा सड़ा––घूम घाम जड़ा––एक एक बात––जात सात धात––नास नास नास––घास छास फास।

मियाँ––क्या सचमुच––दरहकीकत––यह बड़ा भारी पागल है। पागल––सचमुच नास––राजा अकास––ढाल बे ढाल मियाँ मतवाल।

(आँख से दूर जाने को इंगित करता है। मियाँ आगे बढ़ते हैं––यह पीछे धूल फेकता दौड़ता है)

मार मार मार। बरसा की धार। लेना जाने न पावे। मियाँ का खच्चर। (दोनों एकांत में जाकर खड़े होते हैं)

मियाँ––(चारों ओर देखकर) अरे वसंत! क्या सचमुच सर्वनाश हो गया?

पागल––पंडितजी! कल सबेरी रात ही महाराज ने प्राण त्याग किए। (रोता है)

मियाँ––हाय! महाराज, हम लोगों को आप किसके भरोसे छोड़ गए! अब हमको इन नीचों का दासत्व भोगना पड़ैगा! हाय हाय! (चारों ओर देखकर) हाँ, समाचार तो कहो क्या हुआ।

पागल––कल उन दुष्ट यवनों ने महाराज से कहा कि तुम जो मुसलमान हो जाओ तो हम तुमको अब भी छोड़ दें। इस समय वह दुष्ट अमीर भी वहीं खड़ा था। महाराज ने लोहे के पिंजड़े में से उसके मुँह पर थूक दिया, और क्रोध कर के कहा कि दुष्ट! हमको पिंजड़े में बंद और परवश जानकर ऐसी बात कहता है। छत्री कहीं प्राण के भय से दीनता स्वीकार करते हैं। तुझपर थू और तेरे मत पर थू।

मियाँ–– (घबड़ाकर) तब तब।

पागल––इसपर सब यवन बहुत बिगड़े। चारों ओर से पिंजड़े के भीतर शस्त्र फेंकने लगे। महाराज ने कहा इस बंधन में मरना अच्छा नहीं। बड़े बल से लोहे के पिंजड़े का डंडा खींचकर उखाड़ लिया और पिंजड़े से बाहर निकल उसी लोहे के डंडे से सत्ताईस यवनों को मारकर उन दुष्टों के हाथ से प्राण त्याग किए। हाय! (रोता है)

मियाँ––(चारों ओर देखकर) और अब क्या होता है? महाराज का शरीर कहाँ है? तुमने यह सब कैसे जाना?

पागल––सब इन्हीं दुष्टों के मुख से सुना। इसी भेष में घूमते हैं। महाराज का शरीर अभी पिंजड़े में रक्खा है। कल जशन होगा। कल सब शराब पीकर मस्त होंगे। (चारों ओर देखकर) कल ही अवसर है।

मियाँ––तो कुमार सोमदेव और महारानी से हम जाकर यह वृत्त कह देते हैं, तुम इन्हीं लोगों में रहना।

पागल––हाँ, हम तो यहीं हई है। (रोकर) हम अब स्वामी के बिना वहाँ जाकर ही क्या करेंगे!

मियाँ––हाय! अब भारतवर्ष की कौन गति होगी? अब त्रैलोक्य-ललाम सुता भारत-कमलिनी को यह दुष्ट यवन यथासुख दलन करेंगे। अब स्वाधीनता का सूर्य हम लोगों में फिर न प्रकाश करेगा। हाय! परमेश्वर तू कहाँ सो रहा है। हाय! धार्मिक वीर पुरुष की यह गति!

(उदास स्वर से गाता है)
(विहाग)

कहाँ करुनानिधि केसव सोए!

भारतेन्दु समग्र ४८४