पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५३०

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सिंह जगे कहुँ स्वान ठहरिहै समर मंझारी । नी. दे. -क्यों नहीं? पदतल इन कहं दलहु कीट त्रिन सरिस जवनचय । नी.दे.- (शांत भाव से) कुमार तुम्हारी सर्वदा तनिकहु संक न करहु धर्म जित जय तित निश्चय । जय है । मेरे आशीर्वाद से तुम्हारा कहीं पराजय नहीं आर्य वंश को बधन पुन्य जा अधम धर्म मै । है। किंतु मां की आज्ञा मानना भी तो तुमको योग्य है । गोभक्षन द्विज श्रुति हिंसन नित जास कर्म मैं । सब क्षत्री-अवश्य अवश्य । तिनको तुरितहिं हतौ मिलें रन के घर माहीं । सोम. - (हाथ जोड़ कर) माँ, जो आज्ञा होगी इन दुष्टन सों पाप किएहुँ पुन्य सदाहीं । वही करूंगा। चिटिहु पदतल डसत हवै तुच्छ जंतु इक । नी. दे. अच्छा सुनो । (पास बुलाकर कान में ये प्रतच्छ अरि इनहिं उपेछै जौन ताहि धिक । सब विचार कहती हैं) धिक तिन कहं जे आर्य होइ जवनन को चाहै। सोम.-जो आज्ञा । धिक तिन कहे जे इनसों कछु संबध निबाहैं । (एक ओर से कुमार और दूसरी ओर से रानी जाती हैं) उठहु बीर तरवार खींचि मारहु घन संगर । (पटाक्षेप) लोह लेखनी लिखहु आर्य बल जवन हृदय पर । मारू बाजे बजै कही धौंसा घहराही । उडहिं पताका सत्रु हृदय लखि लखि थहराही । चारन बोलहिं आर्य सुजस बंदी गुन गावें । दसवाँ दृश्य छुटहि तोप घनघोर सबै बंदक चलावें । स्थान -अमीर की मजलिस चमकहिं असि भाले दमकहिं ठनकहिं तन बखतर । हीसहिं हय झनकहिं रथ गब चिक्करहिं समर थर । (अमीर गद्दी पर बैठा है। दो चार सेवक खड़े हैं। दो चार छन महँ नासहिं आर्य नीच जवनन कहं करि छय । मुसाहिब बैठे हैं । सामने शराब के पियाले. सुराही, कहहु सबै भारत जय भारत जय भारत जय । पानदान, इतरदान रक्ख है । दो गवैये सामने गा रहे सब बीर-भारतवर्ष की जय -आर्यकुल हैं । अमीर नशे में झूमता है) की जय - महाराज सूर्यदेव की जय - महारानी | गवैये- नीलदेवी की जय - कुमार सोमदेव की जय - आज यह फतह की दरबार मुबारक होए । छत्रिय वंश की जय । मुल्क यह तुझको शहरयार मुबारक होए । (आगे आगे कुमार उसके पीछे तलवार खींचकर शुक्र सद शुक्र की पकड़ा गया वह दुश्मने दीन । छत्रिय चलते हैं । रानी नीलदेवी बाहर के घर में आती फतह अब हमको हरेक बार मुबारक होए । है) हमको दिन रात मुबारक हो फतह ऐणे उरूज । नील-पुत्र की जय हो । छत्रिय कुल की जय काफिरों को सदा फिटकार मुबारक होए । हो । बेटा एक बात हमारी सुन लो तब युद्ध यात्रा करो। फत्हे पंजाब से सब हिंद की उम्मीद हुई । सोम.- (रानी को प्रणाम करके) माता! जो | मोमिनो नेक य आसार मुबारक होए । आज्ञा हो। हिंदू गुमराह हों बेघर हों बने अपने गुलाम । नी.दे.- कुमार तुम अच्छी तरह जानते हो कि | हमको ऐशो तरबोतार मुबारक होए। यवन सेना कितनी असंख्य है और यह भी भली भांति अमीर-आमी आमी । वाह वाह वल्लाही खूब जानते हो कि जिस दिन महाराज पकडे गए उसी दिन गाया । कोई है ? इन लोगो को एक एक जोड़ा दुशाला बहुत से राजपूत निराश होकर अपने अपने घर चले इनआम दो । (मद्यपान) गए । इससे मेरी बुद्धि में यह बात आती है कि इनसे (एक नौकर आता है) एक ही बेर संमुख युद्ध न करके कौशल से लड़ाई करना नौ-- खुदावंद निआमत ! एक परदेसी की गानेवाली बहुत ही अच्छी नेमे के दरवाजे पर हाजिर सो. दे.- (कुछ क्रोध कर के) तो क्या हम है। वह चाहती है कि हजूर को कुछ अपना करतब लोगों में इतनी सामर्थ्य नहीं कि यवनों को युद्ध में | दिखलाए । जो इरशाद हो बजा लाऊँ । लड़कर जीतें ? अमीर-जरूर लाओ । कहो साज मिला कर जल्द हाजिर हो।

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भारतेन्दु समग्र ४८६ अच्छी बात है। सब छत्री-क्यों नहीं?W