पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनंत-भाई तुम तो मुझे अच्छी तरह जानते (पुरश्री ओर नरधी आती है। थे। फिर मेरा जी टटोलने के लिये फेरवट के साथ पुरश्री- नरश्री मैं सच कहती हूँ कि मेरा नन्हा बात करके व्यर्थ क्यों समय नष्ट करते हो। मुझे इसका है कि तमने इस बात में सदेह किया कि सा जी इतने बड़े संसार से बहुत ही दुःसी आ गया है मै तुम्हारे लिए प्राण तक दे सकता हूँ । यदि तुम मेरी नरश्री- मेरी प्यारी सखी यह बात ना आप तब सर्वस्व हानि किए होते तब भी मुझे इतना तु:सन कहती जत्र, भगवान न करे, जैसा आपको सुख है | होता जो इस बात से हुआ । व्यर्थ आत बढ़ाने से क्या उसके बदले उतना ही दु:ख होता । परंतु न जाने क्यों | लाभ केवल इतना कटो कि मुझे तुम्हारे हेतु क्यप्राय : ऐसा देखा है कि जो बहुत धनवान हे वह भी करना होगा, मैं उसके लिये प्रस्तुत है शीघ्र संसार से पैसे ही घबड़ाये रहते हैं जैसे वह लोग भूतों बतलाओ। मरते है । इसी से निश्चय होता है कि मध्यावस्था कुछ बंसत- बिल्वमठ में एक क्यारी स्त्री रहती है साधारण भाग्य की बात नहीं । लक्ष्मी बहुत शीघ्र श्वेत जो आने माँ बाप के मर जाने से एक बड़ी रियासत की बात करती है पर मृप्ति बहुत दिन तक जिला है। स्वामिनी हुई है । उसका रूप ऐसा है कि केषन सौंदर्य पुरश्री- क्यो न हो तुमने कैसे मनोहर वाश्य के शब्द से उसकी स्तुति हो ही नहीं सकती । उसमें कहे और कैसी अच्छी तरह । अनगिनत गुण है । कुछ दिन हुए उसकी चितवन ने मुझको ऐसे प्रेम संदेह दिए थे कि मुभको उसकी ओर नरश्री-यदि उनका प्रस्ताव किया जाय तो से पूरी आशा है । उसका नाम पुरश्री है, वह सचमुच और हो। पुरनी है. पुरश्री क्या सारे संसार की श्री है । रूप में पुरश्री- यदि अच्छी बात का करना उत्तना ही श्री और गुण में सरस्वती है । संसार में ऐसा कोई दी सहज होला जितना कि उसका जानना तो सब स्थान नहीं वहाँ उसकी स्तुति की सुगंध न फैली हो । नदियाँ मंदिर और सब मोपड़ियाँ महल हो जाती । चारों ओर से बड़े बड़े राजमार और धनिक उसके अच्छा गुरु वही है जो अपनी शिक्षा पर आप भी चलता व्याह की आशा में आते हैं । भाई अनंत ! यदि मुझे है । बीस अच्छी बातें दूसरा को सिखलाना सहज है। | इतना रुपया मिलता कि यहां जाकर इन लोगों के किंतु उनमें से अपनी शिक्षा के अनुसार एक पर भी समक्ष में विवाह की प्रार्थना कर सकता तो मेरा जी चलगा कठिन है । बुद्धि स्वभाव के ठदा करने के लिये कहता है कि मैं अपने मनोरथ अवश्य विजयी बहुत से उपाय बतलाती है किंतु समय पर क्रोध की गर्मी को कब रोक सकती है । यौवन का हिरन शिक्षा के अनंत-भाई नुम अछी नरह जानते हो कि फंदे में से बहुत सहल से छूट जाता है । किंतु इस बात | मेरी सब लक्ष्मी ममुद्र में है. इस समय न मेरे पास मुद्रा से और पतिवरण करने से कोई संबंध नहीं । हाथ ! | भला मेरे वरण करने का फल ही क्या " मै तो न जिसे हैन मान निमे बेच कर रुपया मिल सकं इससे जाओ देखो तो मेरी माळ यशानगर में क्या कर सकती है। चाई उसे स्वीकार कर सकती है और न विसे न चाई तुम्हें परश्री के पास विश्वमट जाने के लिए जो रुपया उसे अस्वीकार कर सकती है। हाय! एक जीती चाहिए उसके प्रबन्ध में मैंचा नीना सब काम करने लड़की की आशा एक मरे हुए बाप के मृत-पत्र से कैसी को प्रस्तुत है । देखो अभी जाकर खोज करो कि रुपया | सक रही है । नरश्री क्या यह घोर दुख की बात नहीं कहा मिलता है और मै भी जाताई मेरे नाम या जमानत है कि न मैं किसी को स्वीकार कर सकती ॥ हूँ और न से जिस प्रकार रुपया मिले मुझे किसी बात में सोच अस्वीकार ? विचार नहीं है। नरश्री-आपके बाप बड़े अच्छे और धर्मिष्ठ (दोनो जाते है। मनुष्य थे और ऐसे महात्माओं को मरने के समय अनुभव हुआ करते हैं । इससे सोनो चाँदी और जस्ते के तीन संदकों के निश्नय करने में जो बात उन्होंने सोची थी जिसके अनुसार वह मनुष्य जो उनका बतलाया दूसरा दृश्य हुआ सदक ग्रहण करेगा उसी का वियाह आपसे 'स्थान --विषमठ में पुरश्री के घर का एक कमरा | होगा) वह कभी बुराई न करेगी । मुझे निश्चय केला DOM CA दुर्लभ बन्धु४९१ 34.