पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५३६

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बचावे । चिंतित संदूक को वही मनुष्य चुनेगा जिसे आप जी से पिचके । मुस्कुराना तो सपने में नहीं जानता । हँसी प्यार करती होगी । परन्तु यह तो कहिए कि इतने | मानो जुए में डार आया है । अभी जब हट्टा कट्टा साँड़ राजकुमार और धनिक जो विवाह की आशा में आए हैं बना है तब तो वह रोनी मूरत है तो बुढ़ापे में तो बात पूछते रो देगा । सिवाय हर हर भजने के और किसी नरश्री- और भला फनेश देश के नरेश को आप काम का न रहेगा । मेरा ब्याह चाहे एक मुर्दे से ही पर कैसा समझती हैं। इन भद्दे जानवरों से नहीं । भगवान इन दोनों से पुरधी--बेलगाम का ऊँट । मनुष्य के साँचे में ढन गया है बस इसी से मनुष्य कहा जाता है. नहीं तो है ब्रजपालक को आप क्या कहती हैं, निरा पशु । किसी की निन्दा करनी निस्सन्देह पाप है पुरश्री- तुम जानती हो कि मैं उसके कुछ नहीं पर सच्ची बात यह है कि नेपाल के राजकुमार से जैसा कह सकती क्योंकि न यह मेरी बात समझता है न मैं एक नाशनी बढ़कर यह घुढ़ना है वैसा ही पाटन वाले उसकी । वह न हिंदी जानता है न ब्रजभाषा न मारवारी से बढ़कर नकचढ़ा । आप तो कुछ भी नहीं है पर छाया और तुम शपथपूर्वक कह सकोगी कि मैथिल मे मुझे उसमें सब किसी की है ! अभी गौरिया बोले तो आप कितना न्यून अभ्यास है । उसकी सूरत तो बहुत अच्छी उसकी तान पर नाचने लगे और अभी अपनी परछाई है पर इससे क्या खिलौने से कोई भी बातचीत कर देखें तो तलवार लेकर उससे लड़ने चले । एक उससे सकता है ? उसका पहिनावा कैसा बेजोड़ है। उसने न व्याह किया मानों बीस मनुष्य से एक साथ व्याह अपना अंगा मारवाड़ में मोल लिया है. पाजामा मथुरा किया । यदि वह मुझसे घृणा करेगा तो मैं उससे में बनवाया है. टोपी गुजरात से मैंगनी लाया है, और कदापि अग्रसन्न न हूँगी वरंच अपना सौभाग्य समभूगी नालाल थोड़ी थोड़ी सब जगह से भीख मांग लाया है। क्योंकि यदि वह मेरे प्रेम में पागल भी हो जायगा तो मैं उसे प्यार न कर सकेंगी। नरश्री-- और उसका परोसी मालवा का अधिपति? नरश्री अच्छा, गदेश के नवयुवक धनी उनमें से किसी की अं' आपको कुछ भी स्नेह है या पुरश्री- परोसी की सी क्षमा तो उसके स्वभाव नहीं 1 में निस्संदेह है क्योंकि उस दिन जब उस अंगवाले ने उसकी कनपटी पर एक घूसा मारा था तो उसने सौगंद तुम उ के नामों को मेरे सामने कहती साई थी कि अवसर मिलेगा तो अवश्य बदला लूंगा। जाओ तो मैं प्रत्येक के वषय में अपना विचार दर्शन इस पर फनेश देशवाले ने बीच में गड़ कर भगड़ा यों करती जाऊंगी । इसी म तुम मेरे प्रेम का वृत्तांत जान निबटा दिया कि रूसो मत दहिने के बदले बायाँ भी तुमको मिल जायगा। नरश्री अच्छा तो नैपाल के राजकुमार नरश्री- और उस नवयुवक शम्मण्य देश के आरंभ कीजिए। मंडलेश्वर के भतीजे को आप कैसा पंसद करती हैं? पुरश्री-छि : छि ! वह तो निरा बछेड़ा है, पुरश्री-- राम राम ! वह तो बड़ा भारी और कोई काम नहीं, बस रात दिन अपने घोड़ों ही का वर्णन । सारे अस्तबल की बेला अपने सिर लिये रहता वनचक्कर है । सबेरे जब वह अपने आपे में रहता है है और बड़ा भारी अभिमान इस बात पर करता है कि मैं तभी बहुत बुरा रहता है तो तीसरे पहर जब मद में नूर अपने घोड़े की नाल आप ही बाँध लेता हूँ। वह तो होता है तब तो और भी बुरा हो जाता है । अच्छी दशा में बिल्कुल खोगीर की भरती है । निखट्ट नेपाली टट्ट । वह मनुष्य से कुछ न्यून रहता है और बुरी दशा में पशु से भी नीच हो ही जायगा । भगवान न करे यदि यह नरश्री- और पाटन वाला? आपत्ति पड़े कि मुझको उससे विवाह करना हो तो जैसे पुरश्री--मरकहा बैल । रात दिन फू फू किया हो सके वैसे में उससे दूर रहूँ। करता है मानो उसकी चितवन कहे देती है कि या तो नरश्री- भला यदि ऐसा हुआ कि उसने वही व्याह करो या साफ जवाब दो । सैकड़ों हँसी की बातें मंजूषा चुना जिसके चुनने से वह आपको पावे तब क्या सुनाता है पर चाहे कि तनिक भी उसका थूथन कीजिएगा क्योकि फिर तो विवाह न करना अपने बाप पुरश्री लोगी। भारतेन्द्र समग्न ४९२