पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५३७

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की इच्छा के विरुद्ध चलना है। पुरश्री- इसी से मैं तुम से कहती है कि जिस मंजूषा में भूत की मूर्ति है, उसके ऊपर एक उत्तम मद्य से भरा हुआ पात्र रख दो क्योंकि भीतर भूत ऊपर मद्य बस वह उसी सन्दूक को चुनेगा । जैसे हो उस समुन्द्र सोख अगस्त से बचाने का कोई उपाय करना ही पड़ेगा। नरश्री-सखी आप इस बात का भय मत कीजिए कि इन लोगों में से किसी से आप को विवाह करना पड़ेगा क्योंकि मैं सब के जी का हाल ले चुकी हूँ। यदि आप अपने बाप की आज्ञा के अनुसार मंजूषा के चुनने ही पर अपना निश्चय रक्खेंगी और कोई इसरी प्रतिज़ा न करेंगी तो यह सब के सब यहाँ से चले जायगे और फिर विवाह की इच्छा प्रकट कर के आपको ओकर मालिक आज राती के इहाँ पहुंची हैं। पुरस्त्री- यदि यह पांचवां मनुष्य ऐसा होता है कि मैं उसके आने पर वैसा ही प्रसन्नता प्रकट कर सकती जैसे प्रसन्नता से इन चारों को विदा करती हूँ तो क्या बात थी । परंतु यदि इसका रूप भूत का सा है और चित देवता का सा तो मैं उसका शाप देना इसका अपेक्षा उत्तम समझूगी कि वह मुझसे व्याह करे । नरश्री चलो । नौकर तू आगे ना । एक नाहक जाने डो नहीं पाता कि दूसरा आ उपस्थित होता । (सब जाने हैं। तीसरा दृश्य कष्ट न देंगे। (बंसत औ शैलाय आते हैं) पुरधी- तुम निश्चय जानो कि यदि मुझे मारकंडेय की आयु मिले तो भी मैं अम्बालिका की तरह क्वारी मर जाऊँगी पर अपने पूज्य पिता की इच्छा के विरुद्ध कभी ब्याह न करूंगी । मुझको बड़ा आनंद है कि इन सन्दूकों में ऐसी चातुरी है कि यह सब आपत्ति बिना मंत्र जंत्र के आप से आप दूर हो जाती है क्योंकि इन में से ऐसा कोई नहीं जिसका मैं घड़ी भर रहना भी 1 सह सकती नरश्री- क्यों सखी आपको स्मरण है कि नहीं आप के पिता के समय में फनित मठ के राजा के साथ वंशनगर का एक युवक बुद्धिमान और शूर मनुष्य आया था? शैलाक्ष- -छ स स मुद्रा -हूँ। बंसत-हाँ साहिब -तीन महीने के वादे पर। शैलाक्ष-तीन महीने का वादा - बंसत- और इसके लिये, जैसा कि मैं आप से कह चुका हूँ. अनंत जामिन होंगे। शैलाक्ष अनंत जामिन होंगे यंसत- तो आप मुझे देंगे ? आप से मेरा काम निकलेगा? मैं आप के उत्तर की रहा देखता हूँ। शैलाक्ष- छ सहन मुदा तीन महीने का और अनंत की जमानत । बंसत-जी हां। आप क्या उत्तर देते है ? शैलाक्ष- अनंत है तो अच्छा मनुष्य । बंसत-क्यों क्या आपने इस - हाँ वह बसन्त था -- क्यों यहीं न पुरश्री उसका नाम था? वादा- के विरुद्ध कुछ सुना है? 1 बरश्री- हाँ सखी - जहाँ तक कि मुझ मूर्ख की समझ है सुंदरी स्त्री के योग्य उससे उत्तम और कोई वर मुझे दृष्टि नहीं पड़ा । पुरश्री-- मुझको भली भाँति स्मरण है और जो कुछ तुमने उसकी प्रशंसा की बहुत ठीक है (एक नौकर आता है) क्यों क्यों ! कोई नई बात है? नौकर-बबुई साहिब ऊ चारों आदमी आप से बिदा होए कै ठाढ़ होएँ और एक पाँचवाँ का हरकारा आयल हो सो कहत हो की मोरकुटो के राजकुमार शैलाक्ष-नहीं नहीं, मेरा अभिप्राय उनके अच्छे होने से यह है कि उनकी जमानत ही बहुत है यद्यपि आजकल उनकी दशा हीन है क्योंकि उनका एक जहाज त्रिफुल को गया है दूसरा हिन्दुस्तान को. सुना है कि बाजार में भी कुछ व्यवहार है, एक दुर्लभ बन्धु ४९३