पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४१

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दृष्टि न करें पुरश्री- वृद्ध गोप हाथ है। कुछ नहीं हो सकता. इसलिये या तो आप इस इच्छा ही प्रकार का भूत है यदि मैं जैन के पास से भाग को छोड़ दें या यदि चुनना चाहे तो पहिले इस बात की जाता हूँ तो भूत की आज्ञा पर चलता हूँ जो कि शपथ खाय कि यदि आप झूठे मंजूषा को चुनें तो फिर (स्वामी की प्रतिष्ठा में अंतर नहीं डालता) आप ही आमरण किसी स्त्री की ओर व्याह करने के अभिप्राय से भूत है । निस्संदेह जैन तो निज भूत का अवतार इसे खूब सोच लीजिए। है इसलिये मेरी जान में तो मेरा धर्म बड़ा कठोर है जो इस जैन के साथ ठहरने की सम्मति देता है। मोरकुटी- हमें यह प्रतिज्ञा स्वीकार है । चलो भूत की सम्मति बहुत भली जान पड़ती है, तो ले अपने भाग्य की परीक्षा करें। भूत मैं भागने को उपस्थित हूँ. मेरे पाँव तेरी आज्ञा - पहिले मन्दिर में चलिए । तीसरे में हैं, मैं अवश्य भागूंगा । पहर संदक चुनिएगा। - साहिब नेक कृपा कर के परदेसी महाजान के घर का मार्ग तो बत देते मोरकुटी-ऐ भाग्य सहाय हो, मुझे सबसे गोप-आगे के मोड़ पर पहुँच कर अपने दाहिने अधिक प्रसन्न या सबसे अधिक अभागा बनाना तेरे ही हाथ को फिर जाना. और सब से आगे को मोड़ पर जब पहुंचो तो अपने बायें हाथ को मुड़ना, फिर दूसरे सोड़ (तुरहियाँ बजती हैं । सब जाते हैं) पर किसी ओर न फिरना वरंच तिरछे मुड़ कर सीधे परदेसी महाजन के घर चले जाना । (वृद्ध गोप एक टोकरा लिए हुए आता है) वृद्ध गोप- भाई समृद्ध परदेसी महाजन के घर का कौन सा मार्ग है? दुसरा दृश्य गोप-आप ही आप) ईश्वर का त्राण ! आप स्थान-बंशनगर-एक सड़क मेरे सगे बाप हैं, जो ऐसे अंधे हो गए हैं कि आपने (गोप आता है) जनमाए हुए लड़के को नहीं पहिचानते । ठहरो ननिक इन की परीक्षा लूंगा। गोप- निस्संदेह मेरा धर्म मुझे इस जैन अपने वृद्ध गोप- भगवान की शपथ है इस मार्ग का स्वामी के पास से भाग जाने की सम्मति देगा । प्रेत मेरे पाना तो कठिन होगा । भला आप को विदित है कि एक पीछे लगा है और मुझे बहकाता है कि गोप, मेरे अच्छे मनुष्य गोप नाम का जो उनके यहाँ रहता था अब वहाँ है गोप, पाँव उठाओ, आगे बड़ो, और चलते फिरते या नहीं? दिखलाई दो। मेरा धर्म कहता है नहीं खबरदार गोप- क्या तुम युवक गोप को पूछते हो ? - सच्चे गोप खबरदार, सच्चे गोप भागो मत. भागने पर (आप ही आप) अब देखो मैं कैसा खेल करता लात मारो । तो एक ओर से बली भूता बहका रहा है | हूं- क्या तुम युवा गोप महाशय का वर्णन करते कि अपनी बोरिया बंधना बाँधो, धता हो, दून हो, हो? साहस को दृढ़ करो और नौ दो ग्यारह हो जाओ - वृद्ध गोप- 'महाशय' न कहिए वरंच एक दूसरी ओर से धर्म मेरे चित्त को, गल्ले का हार हो कर, दरिद्र का बेटा । उसका बाप एक बहुत ही धर्मात्मा इस प्रकार से शिक्षा देता है - मेरे धर्मिष्ट मित्र गोप ! दरिद्री है पर धन्य है ईश्वर को कि रोटी कपड़े से सुखी तुम कि एक धर्मात्मा के पुत्र हो वरंच यों कहना चाहिए | है। कि एक धर्मात्मा स्त्री के पुत्र हो अस्तु मेरा धर्म गोप- उसके बाप को कौन पूछता है वह जो कहता है कि अपने स्थान से हिलो मत - तो अब भूत चाहे सो हों, यहाँ तो इस समय युवा गोप महाशय का कहता है कि अपने स्थान से हिलो और धर्म कहता है | वर्णन है कि अपने स्थान से मत हिलो । मैं अपने धर्म से कहता वृद्ध गोप-जी हाँ वही गोप आप का मित्र । हूँ कि तुम्हारी सम्मति बहुत अच्छी है । फिर मैं भूत गोप- इसी लिये तो बूढे बाबा मैं तुमसे कहता से कहता है कि तुम्हारी राय बहुत अच्छी है । यदि मैं | हूँ, इसी लिये तो निवेदन करता हूँ कि उसे युवा अपने धर्म की आज्ञा मानता हूँ तो मुझे अपने स्वामी महाशय कहो। जैन के साथ ठहरना पड़ता है जो कि आप ही एक - आप की साहिबी बनी रहे मैं गोप) Rekk दुर्लभ बन्धु४९७ 1 वृद्ध गोप-