पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४३

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चलो- मेरे साथ बुराई की है जिसके कारण से मैं चाहता हूँ, अवश्य ब्याहने के योग्य है- बाब जाओ 'जैसा कि मेरा बाप जो मैं आशा करता हूँ कि एक वृद्ध पलक भाजते मैं जैन से बिदा हो लूँगा । (गोप और मनुष्य है आपसे सविस्तार वर्णन करेगा - वृद्ध गोप जाते हैं। वृद्ध गोप- मैं एक थाली कबूतर के मांस की वसंत लोरी इसको भली भाँति समझ लो । आपको पारितोषिक देने को लाया हूँ और मेरी प्रार्थना इन वस्तुओं को मोल लेकर और वर्दियाँ बाँट कर शीघ्र यह है कि लौट आओ क्योंकि आज ही रात को मुझे अपने परम गोप-सौ बात की एक बात यह है कि यह प्रतिष्ठित मित्र का आतिथ्य करना है । शीघ्रता करो, प्रार्थना मेरे विषय में जैसा कि आपको इस सच्चे बूढे | जाओ । के कहने से विदित होगा जो यद्यपि बूढ़ा और दीन है तो लोरी-जहाँ तक हो सकता है शीघ्र प्रबंध करके भी मेरा बाप है। उपस्थित होता हूँ। बसंत-दो के बदले एक मनुष्य बोलो - तुम (गिरीश आता है) क्या चाहते हो? गिरीश- तुम्हारे स्वामी कहाँ हैं ? गोप-सरि की सेवा करना । लोरी–महाराज, वहाँ टहल रहे हैं। वृद्ध गोप-जी हाँ यही मुख्य तात्पर्य है । (लोरी जाता है) बसंत- मैं तुम्हें भली भांति जानता हूँ. तुम्हारी गिरीश-बसंत महाशय - प्रार्थना स्वीकार हुई । तुम्हारे स्वामी शैलाक्ष ने आज ही बसत-गिरीश! तुम्हारी सिफारिश की है, यदि एक धनवान जैन की गिरीश-मेरी आपसे एक प्रार्थना है। सेवा छोड़ कर मुभ ऐसे दरिद्री की नौकरी करना चाहते बसंत-मैंने स्वीकार की कहो । हो। गिरीश-देखिए अस्वीकार न कीजिएगा गोप वह पुरानी कहावत सर्कार के और मेरे मैं आपके साथ विल्वमठ चलूँगा । स्वामी शैलाक्ष के विषय में ठीक ठीज घट गई बसंत- इसमें कौन सी बात है आनंद से है-सरि पर ईश्वर की कृपा है और उसके पास लेकिन सुनो गिरीश, तुम में ढिठाई, अनार्य्यता और असभ्यता अधिक है जो यद्यपि तुम में वसंत- यह बात तो तुमने खूब कही । बूढ़े गुण जान पड़ते है और हमारी दृष्टि में दुर्गुण नहीं बाबा अपने बेटे के साथ जाओ अपने पुराने स्वामी से ठहरते तथापि बाहरवालों की दृष्टि से धृष्टता समझी बिदा होकर मेरे घर का पता लगाकर उपस्थित हो । जाती है । नेक इसका ध्यान रखना और लज्जा के ठंढे (अपने भृत्यों से) इस मनुष्य को एक वर्दी जिसमें पानी से अपने चिलबिलेपन की गर्मी को ठंडा करने का औरों की वर्दियों से उत्तम लैस टॅकी हो दे दो, देखो अभी यत्न करना जिसमें ऐसा न हो कि जहाँ मैं जानेवाला हूँ निबटा दो। वहाँ तुम्हारी अनार्य्यता के कारण मैं भी हल्का समझा गोप-बाबा चलो -मेरे लिये कहीं नौकरी जाऊँ और मेरी सब आशाएँ धूलि में मिल जाय । की कमी हो सकती है, नहीं । मैं कभी अपने मुंह से गिरीश-बसंत महाराज, सुनिए यदि मैं प्रार्थना नहीं करता ! हाँ (अपना हाथ देख कर) क्या गंभीर बन जाऊँ, नम्रता के साथ न बोलूं, शपथ खाने मुझ से बढ़कर मारवाढ भर में किसी की हथेली का अभ्यास कम न कर दूँ, स्तोत्र की पुस्तक जेब में न निकलेगा, जो पुस्तक लेकर शपथ खाने को प्रस्तुत है | भरे रहूँ, दृष्टि नीची न रक्खू, केवल इतना ही नहीं कि तुम खूब रुपया कमाओगे ! यह देखो आयु की रेखा वरंच जिस समय स्तुति पढ़ी जाती हो अपनी टोपी की कैसी सीधी चली गई है!- और यह पत्नियों का इस तरह आँख पर अंधेरी न चढ़ा लूं, और आह भर एक साधारण लेखा है - हा केवल पंद्रह स्त्री यह तो कर एवमस्तु कहूँ, और एक बड़े विद्वान सभ्य मनुष्य -- ग्यारह रोंड़ और नौ क्वारियों से की भाँति निम्रता के साथ हर बात में चुनाचुनी न करूँ, ब्याह करना तो मनुष्य के लिये थोड़ी ही बात तो आज से मेरी बात का विश्वास न कीजिएगा । है-फिर तीन बार ड्रबते ड्रबते बचना - और फिर बसंत- वह तो देखने हो में आवेगा। 'एक तिनके से जीव का जोखिम -- यह देखो यह इन गिरीश-हाँ पर आज की रात को इस सब आपत्तियों से बचने की रेखा है - अहा ! यदि | प्रतिबंधन से दूर रखिए, आज की रात हँसी के लिये (विधाता कोई स्त्री है तो ऐसे उत्तम स्त्रीधन के साथ रुकावट न रहेगी। दुर्लभ बन्धु४९९ पुष्कल धन है। कुछ भी नहीं है