पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४४

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चौथा दृश्य तीसरा दृश्य बसंत-नहीं नहीं मैं कब ऐसा चाहने लगा, वरच मैं तो स्वयं कहने को था कि आज की सभा में स्थान -वंशनगर - एक सड़क नियम से भी अधिक ढीठ रहो क्योंकि आज ऐसे मित्रों (गिरीश, लवंग, सलारन और सलोने आते हैं। का भोज है जो नुहल की इच्छा रखते हैं -- परंतु इस लवंग नहीं, वरंच हम लोग खाने के समय समय विदा हो क्योंकि मुझे कुछ काम है । खिसक देंगे और मेरे घर पर आकर भेस बदल कर सब गिरीश-और मैं लवंग प्रभृति के पास जाता लोग लौट आवेंगे । एक घंटे में सब काम हो जायगा । पर भोजन के समय हम सब अवश्य उपस्थित गिरीश-- हम लोगों ने अभी सब तैयारी नहीं होंगे। की है। सलारन-अब तक मशाल्चियों का भी कुछ (दोनों जाते हैं। प्रबंध नहीं हुआ 1 सलोने जब तक कि स्वांग का उत्तमता के साथ प्रबंध न हो वह निरा लड़कों का खेल होगा और मेरी सम्मति में ऐसी अवस्था में उसका न करना ही उत्तम होगा। स्थान - वंशनगर, शैलाक्ष के घर की एक कोठरी लवंग- अभी तो केवल चार बजा है - अभी (जसोदा और गोप आते हैं) हमें तैयारी के लिये दो घंटे का अवकाश है (गोग हाथ में पत्र लिए आता है) जसोदा-- मुझे खेद है कि तू मेरे बाप की कहो जी गोप क्या समाचार लाए ? नौकरी छोड़ता है । यह घर मुझे नरक समान लगता है गोप-यदि आप इसे खोलेंगे तो आप ही सब पर तुम ऐसे हँसमुख भूत के कारण थोड़ा बहुत जी समाचार विदित हो जायगा । बहल जाता था । अस्तु, विदा हो; यह ले यह एक लवंग-मैं इन अक्षरों को पहिचानता हूँ. ईश्वर रुपया तेरे लिये पारितोषिक है । और सुन गोप ! थोड़ी की सौगंध कैसे सुंदर अक्षर है, और जिस कोमल हाथ देर में तेरे नये स्वामी के यहाँ लवंग भोजन करने ने इन्हें लिखा है वह इस पत्र से भी अधिक गोरा है । जायगा उसे चुपके से यह पत्र दे देना - बस गिरीश-निस्संदेह यह तुम्हारी प्यारी का पत्र जा - मैं नहीं चाहती कि मेरा बाप मुझे तुझसे बात करते देख ले। गोप- साहिब अब मुझे आज्ञा होती है ? गोप-तुम्हें ईश्वर को सौंपता हूँ आँसुओं लवंग-कहाँ जाते हो? के मारे तो मेरे मुँह से शब्द नहीं निकलने पाता । ऐ अपने पुराने स्वामी जैन को अपने नये सुंदरी कामिनी, ऐ प्यारी जैनिन, यदि कोई आर्य तुझे आर्य स्वामी के साथ आज रात को भोजन करने के न ठगे और अपनी स्त्री न बनावे तो मेरा नाम नहीं । लिए निमंत्रण देने। किंतु बस, ईश्वर ही रक्षा करे । प्रेम के आँसू तो मेरे लवंग-ठहरो, यह लो, प्यारी जसोदा से कह दृढ़ चित्त पर प्रबल हुआ चाहते हैं । ईश्वर रक्षा दो कि कदापि अंतर न पड़ेगा - देखो अकेले में करे कहना-जाओ। (जाता है) (गोप जाता है) जसोदा- अच्छा बिदा हो सुहृद गोप । हाय ! महाशयो आप लोग अब तो रात के लिये स्वांग की मेरे लिये कैसे यह पाप की बात है कि मैं अपने बाप की तैयारी करेंगे ? मशाल दिखलाने वाले का प्रबंध हो लड़की होने से लज्जित होऊ ! परंतु यद्यपि मैं उसके गया। रक्त से उत्पन्न हूँ पर मेरा चित्त उसका सा नहीं है। सलारन-जी हाँ मैं अभी जाकर तैयार होता ऐ लवंग, यदि तू अपने वचन पर दृढ़ रहा तो मैं इस झगड़े को निबटा ट्रॅनी और आर्य होकर तेरी प्यारी स्त्री सलोना-- और मैं भी चला । बन जाऊँगी। लवंग-लगभग एक घंटे के गिरीश के घर पर (जाती है) मुझसे और गिरीश से मिलना । सलारना- बहुत ठीक । गिरीश-वह पत्र जसोदा ही का न था ? भारतेन्दु समग्र ५०० गोप ess