पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४७

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सातवाँ दृश्य के साधी लोग हमारी राह देख रहे होंगे। पर फिर तो विचार करूँ । इस सीसे के संदूक पर क्या (जसोचा और सलारन के साथ जाता है) लिखा है? (अनंत आता है) "जो कोई मुझे पसंद करे वह अपनी सब वस्तुओं अनत्त--कौन है? को भय में डाले और उनसे हाथ धोवै । गिरीश-अनंत महाराज ? हाथ धोवै-किस के लिये ? सीसे के लिये ? अनत-छी छी गिरीश! और लोग कहाँ हैं? भय में डालना और सीसे के लिये ? यह संदूक तो बहुत नौ बज गया । हमारे सब मित्र तुम लोगों का बाट हो धमकाता है ; लोग जो अपनी सब वस्तुओं को जोखों जोहते हैं । आज स्वांग बंद रहा क्योंकि अभी - में डालते हैं तो अच्छे अच्छे लाभ की आशा में : सहृदय अनुकूल वायु चला और वसंत शीघ्र ही यात्रा करने कूड़े करकट की ओर कब मुक सकता है ; तो मैं सीसे जायगे । मैंने बीसियों मनुष्यों को तुम्हारी खोज में चारों के लिये न किसी वस्तु के हाथ धोऊँगा और न उसे भय ओर दौड़ाया है। में डालूँगा । अब देखो यह चांदी जिसकी रंगत अल्प- गिरीश-मैं इस समाचार से बहुत प्रसन्न वयस्क कामिनियों की सी है क्या कहती है ? "डो हुआ । मुझे स्वाग से कहीं बढ़ कर इस बात में आनंद कोई मुझे पसंद करेगा वह उतना पावेगा जितने के वह मिलेगा कि आज ही रात को पाल उड़ाऊँ और चलता, योग्य है ।" उतना जितने के वह योग्य है ? - फिरता दिखलाई । मोरकुटी के राजकुमार नेक ठहर और हाथ साध कर (जाते हैं) अपनी योग्यता को तौल । यदि अपने नाम की ख्याति के अनुसार आँका जाय तो तू निस्संदेह बहुत कुछ पाने के योग्य है, पर कौन जाने कदाचित यह कुमारी इस बहुत कुछ से बढ़ कर हो । किंतु इसी के साथ अपनी योग्यता में संदेह करना भी निर्बलता की बात है और (स्थान - विल्वमठ, पुरश्री के घर का एक कमरा) अपनी योग्यता में बट्टा लगाना है । उतना जितने के मैं योग्य हूँ। वाह वह तो यही कुमारी है; मैं अपनी (तुरहियाँ बजती हैं। पुरश्री और मोरकुटी का उत्पत्ति, अपनी लक्ष्मी, अपनी शिक्षा, अपनी राजकुमार अपने अपने साथियों के साथ आते हैं) चालचलन हर बात से उसके पाने की क्षमता रखता हूँ, पुरश्री-जाओ, पर्द उठाओ और इस प्रतिष्ठित पर सबसे बढ़ कर अपने प्रेम के ध्यान से मैं अपने को राजकुमार को तीनों संदूक दिखलाओ। अब आप उसके योग्य कह सकता हूँ। तो अब मैं आगे क्यों पसंद कर लें। भट और इसी को चुन लूँ – पर एक बार सोने के मोरकुटी पहला संदूक सोने का है जिस पर संदूक की लिपि को फिर तो देखें । 'जो कोई मुझे यह लेख लिखा है । "जो कोई मुझे पसंद करेगा वह पसंद करेगा वह उस वस्तु को पावेगा जिसको बहुत उस वस्तु को पावेगा जिसकी बहुत लोग इच्छा रखते | लोग इच्छा रखते हैं।" वाह वह तो यही कुमारी है ; सारा संसार इसकी दूसरा चाँदी का है जिस पर यह प्रतिज्ञा लिखी है । इच्छा रखता है और पृथ्वी के चारों कोनों से लोग इस "जो कोई मुझे पसंद करेगा वह उतना पावेगा जागृत महात्मा के पैर चूमने को चले आते हैं । हरिद्वार जितने के वह योग्य है। के जंगल और बीकानेर के उजाड़ मैदान दोनों आज कल तीसरा कद सीसे का है जिस पर वैसी ही धमकी भी | पुरश्री के प्रणयी राजकुमारों के लिये साधारण मार्ग हो लिखी हुई है । "जो कोई मुझे पसद कर वह अपनी रहे हैं । समुद्र जिसका अभिमानी मस्तक आकाश के सब वस्तुओं को भय में डाले और उनसे हाथ धोवै ।" मुँह पर धूकता है उसका भय भी आने वालों के साहस भला मै कैसे जानूंगा कि मैंने सही संदूक चुना है ? को नहीं तोड़ सकता और लोग पुरनी के देखने की पुरश्री- इनमें से एक में मेरी तस्वीर लालसा में उस पर से ऐसे चले आते हैं जैसे कोई एक यदि आप उसे चुनेंगे तो मैं भी उस चित्र के छोटे से नाले को पार करता हो । इन संदूकों में से एक साथ आप की हो जाऊँगी। में उसका मनोहर चित्र है । क्या यह सम्भव है कि वह मोरकुटी- कोई देवता इस अवसर पर मेरी | सीसे के भीतर हो ? ऐसा तुच्छ विचार मेरे नाशका सहायता करता ! देखू तो : मैं इस संदकों के परिलेखों कारण होगा। AXO दुर्लभ बन्धु ५०३