पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५४८

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1 हाय मेरी बेटी! सीसा तो अधेरी समाधि में उसके कफन के रखने के (सलारन और सलोने आते हैं) लिये भी एक बड़ी भद्दी वस्तु होगी । था यह समझू कि सलारन- अजी मैंने स्वयं बसंत को जहाज वह चाँदी में बंद है जिसका मूल्य खरे सोने से दसगुना पर जाते देखा ; उन्हीं के साथ गिरीश भी गया है, पर कम है ? ऐसा सोचना ही पाप है ! भला कभी भी ऐसा मुझे विश्वास है कि उस जहाज में लवंग कदापि नहीं अलभ्य रत्न सोने से कम मूल्य वाले पदार्थ में जड़ा गया है ? अंग मो एक सोने का सिक्का होता है जिस पर सलोने-- उस दुष्ट जैन ने वह आपत्ति मचायी पार्षदों का चित्र ख़ुदा रहता है, परंतु वह तो ऊपर खुदा कि महाराज को स्वयं बसंत के जहाज की तलाशी लेने रहता है और यहाँ सचमुच एक अप्सरा सोने के बिछौने के लिये जाना पड़ा। पर भीतर मग्न है । अच्छा मुफे ताली दो मैं इसी को सलारन- हाँ. परंतु वह देर करके पहुँचे, उस चुनता हूँ आगे जो कुछ मेरे भाग्य में हो ! समय जहाज जा चुका था और वहाँ महाराज को पुरश्री- यह लो राजकुमार यदि मेरी तस्वीर समाचार मिला कि लवंग अपनी वल्लभा जसोदा के इसके भीतर निकली तो मैं आपकी हो चुकी सहित एक छोटी सी नाव में जाता दृष्टि पड़ा था । (सोने के संदूक को खोलता है) इसके सिवाय अनंत ने महाराज को अपने भरोसे पर मोरकुटी 1- हाय अंधेर! यह क्या निकला । इस बात का विश्वास कराया कि वह दोनों बसंत के एक खोपरी जिसकी आँख के गढ़े में एक लिपटा हुआ जहाज पर नहीं हैं। पत्र खोसा है। इसे पद् तो सही सलोने-मैंने तो आज तक घबराहट और "करि विचार देखहु जिय माहों । झुंझलाहट के ऐसे बेजोड़ और बिचित्र वाक्य न सुने थे जो चमकत सो मुबरन नाही !। जैसे कि वह जैनी कुत्ता सड़क पर बक रहा कितने ही मम छवि ललचाने । था--'मेरी बेटी!- हाय मेरी अशरफियां!- हाय!-एक आर्य के साथ भाग नाहक पान देत विनु जाने ।। जे समाधिगन कनक रंगाये । गई!- हाय मेरी आर्य अशरफियाँ!-न्याय तिन में भरे कीट बहु पाये ।। कानून ! मेरी अशरफियाँ और मेरी बेटी ! एक जिमि तुअ अंग वीर रस साना । सरबमुहर तोड़ा, दो सरबमुहर तोड़े अशरफियों के तिमि होते गुन-ज्ञान निधाना ।। कलदार अशरफियों के, मेरी बेटी चुरा ले गई !- जिमि तुमरे तन जोबन जोती । और रत्न ; दो नगीने, दो अमूल्य अलभ्य नगीने, जिन्हें मेरी बेटी चुरा ले गई -- न्याय ! लड़की का पता तौसिहि बुदि वृद्ध की होती !। लगाओ! उसी के पास अशरफियां और पत्थर हैं।' तो न होत यह पढ़ि मम नासा । सलारन-अजी बंशनगर के सारे लड़के जाहु प्रनाम सरद तुअ आसा" ।। उसके पीछे दौड़ते हैं और हल्ला मचा कर चिन्द्यते सचमुच सर्द और श्रम व्यर्थ, तो अब गर्मों को विदा और सर्दी से काम -- -पुरश्री का ईश्वर रक्षक हो ! मेरा हैं -- इसके पत्थर, इसकी लड़की और इसकी अशरफियाँ । जी इतना टूट गया है कि अब एक दम ठहरने का सामर्थ्य नहीं रखता । जिसका मनोरथ पूरा नहीं होता सलोने-अनंत महाशय को चाहिए कि उससे वे ऐसे ही बिदा होते हैं । सावधान रहें और ठीक समय पर ऋण चुका दें नहीं तो (जाता है) पीछे से पछताना पड़ेगा। पुरधी- अच्छी छटी, जाओ परदों को गिराओ । सलारन-तुमने अच्छा स्मरण दिलाया, कल्ल यदि इस राजकुमार की रंगत के सब लोग मुझे इसी मैं एक फनेशवासी से बातचीत कर रहा था कि उसने भात वर तो क्या बात है। वर्णन किया कि उस छोटे समुद्र में जो फनेश और (सब जाते हैं) अंगदेश को जुदा करता है तुम्हारे देश का एक अमूल्य धन से लदा हुआ जहाज डूब गया है । मुझे इस समाचार के सुनते ही अनंत के जहाज का ध्यान आया और मन में ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि वह उनका जहाज न हो। स्थान - शनगर एक सड़क सलोने--पर तुमको यही उचित है कि जो कुछ BUAH

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भारतेन्दु समग्र ५०४ आठवाँ दृश्य